परंपराओं के साथ फैशन, ग्लैमर का फ्यूजन बन चुका करवाचौथ का त्योहार हर किसी को प्रिय है। निरजला व्रत रहकर भी चांद के दीदार के लिए जब सुहागिनें तैयार होती हैं तो उनकी सुंदरता, उनके चेहरे का तेज और खुशी देखते ही बनती है।
यूं तो करवाचौथ की तैयारियां नवरात्र के साथ ही शुरू हो गई थीं और त्योहार तक जारी रहती है। आज जब एकल परिवार हावी होते जा रहे हैं, परंपराओं को प्रतीकात्मक बनाया जा रहा है, इन सबके बीच तीन पीढ़ियों का एक साथ करवाचौथ मनाना सुखद है। खास है कि हर नई पीढ़ी इसमें नई ऊर्जा भर रही है।
पोते की बहू आने से त्योहार का रंग हुआ और गहरा
लालबाग निवासी किरन वर्मा के घर का माहौल एकदम अलग है। यहां उनकी सास शकुंतला वर्मा और उनकी बहू निधि भी उनके साथ व्रत रखती हैं। साथ ही उनकी देवरानी मंजू भी इसमें शामिल हैं। इस परिवार में सबसे बड़ी हैं शकुंतला वर्मा, जो 50 साल से व्रत रख रही हैं। कहती हैं कि मुझसे भाग्यवान कौन होगा जिसकी बहू और पोता बहू दोनों साथ में व्रत रख रही हों। किरन कहती हैं कि हम लोग अक्सर सोचते थे कि बहू आएगी तो क्या वो इन परंपराओं को निभा पाएगी, पर हम गर्व से कह सकते हैं कि उसके आने से पर्व का रंग और गहरा हो गया। आजकल के बच्चे गिफ्ट, सेल्फी कल्चर में भरोसा करते हैं, तो इसमें बुरा क्या है। हम सब साथ में व्रत रखते हैं, सिंगार करते हैं, पूजा करते हैं और पता ही नहीं चलता की कब चांद निकल आया। शकुंतला कहती हैं कि हर पीढ़ी की एक सोच होती है, जिसे हम बड़ों को स्वीकार करना चाहिए।
थोड़ा सा फिल्मी अहसास, पर बहुत खास
अलीगंज निवासी सीमा चंद्रवंशी कहती हैं कि ये उनकी बहू साक्षी का पहला करवाचौथ है। तैयारियां भी उसी तरह से हैं, हम सब अपने देवर के घर पर पूजन कर व्रत खोलेंगे। साक्षी के आने से करवाचौथ हमारे लिए और खास हो गया, क्योंकि वो भी सारे तौर-तरीकों को मानती है। साक्षी कहती हैं कि हमारी पीढ़ी के लिए करवाचौथ थोड़ा सा फिल्मी अहसास लिए होते है, पर ऐसा नहीं कि हम परंपराओं में यकीन नहीं रखते। हमें भी निरजला व्रत रखना उतना ही अच्छा लगता है जितना हमारी मम्मी और सासु मां को।