चुनाव में शुचिता और विकास को लेकर बात तो हर पार्टी करती है। मगर, जब मामला जीत का हो, तो दागी उम्मीदवारों पर भी दांव लगाने से राजनीतिक दल पीछे नहीं हटते हैं। कर्नाटक चुनाव को भाजपा और कांग्रेस ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। मगर, इस चुनाव में जीत के लिए दोनों दलों ने दागी नेताओं को बड़ी संख्या में टिकट दिए हैं।
दागी उम्मीदवारों को टिकट देने के मामले में पहले नंबर पर भाजपा, दूसरे नंबर पर कांग्रेस और फिर जेडी (एस) हैं। सोमवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने जहां 4 जनसभाएं कर कर्नाटक में बीजेपी की धाक जमाई। मगर, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट सामने आने के बाद भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इसमें सामने आया है कि कर्नाटक चुनाव में बीजेपी ने बड़ी संख्या में दागी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।
कर्नाटक के चुनाव में कुल 2560 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिनमें से 391 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें 254 ऐसे उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आपराधिक केस दर्ज हैं। इनमें से 4 उम्मीदवारों के खिलाफ हत्या और 25 के खिलाफ हत्या की कोशिश के मामले दर्ज हैं।
56 सीटें संवेदनशील हैं
एडीआर की रिपोर्ट में कहा गया है कि बीजेपी के 224 उम्मीदवारों में से 83 यानी 37 फीसद के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। वहीं, कांग्रेस के 220 उम्मीदवारों में से 59 यानी 27 फीसद के खिलाफ मामले दर्ज हैं। इतना ही नहीं, 23 उम्मीदवारों ने महिलाओं के खिलाफ अपराध की घोषणा अपने हलफनामे में की है। एडीआर ने विधानसभा की 56 सीटों को संवेदनशील बताया है।
वहीं, जेडीएस के 199 में से 41 उम्मीदवार ऐसे मामलों का सामना कर रहे हैं। एडीआर के अनुसार, साल 2013 विधानसभा चुनाव के मुकाबले साल 2018 में आपराधिक मामलों में फंसे उम्मीदवारों की संख्या 334 से बढ़कर 391 हो गई है।
सबसे ज्यादा करोड़पति भी भाजपा में
करोड़पति उम्मीदवारों की बात की जाए, तो चुनाव में भाग्य आजमा रहे 2560 उम्मीदवारों में 883 करोड़पति हैं। इनमें से बीजेपी के 93 प्रतिशत उम्मीदवार करोड़पति हैं। चुनाव में हर उम्मीदवार के पास औसतन 7.54 करोड़ की संपत्ति है।
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एडीआर के फाउंडर और ट्रस्टी त्रिलोचन शास्त्री ने कहा कि लोगों को उम्मीद है कि पार्टियां कानून का पालन करने और ईमानदारी के संदर्भ में सुधार दिखाएं। मगर, राजनीतिक पार्टियों ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट देने में बढ़ोतरी की है। अब मतदाताओं के ऊपर है कि इन्हीं में से सर्वश्रेष्ठ को वह चुनें।
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