उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था के मामले में जरा भी भी लापरवाही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बर्दाश्त नहीं है। प्रयागराज में अपराध नियंत्रण के साथ ही कानून व्यवस्था बनाने में भी फेल साबित होने वाले एसएसपी अभिषेक दीक्षित को सीएम योगी आदित्यनाथ ने निलम्बित कर दिया है। निलम्बन की अवधि में अभिषेक दीक्षित डीजीपी कार्यालय से अटैच रहेंगे।
सीएम योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर निलम्बित होने वाले आइपीएस अधिकारी अभिषेक दीक्षित के बारे में गृह विभाग के प्रवक्ता ने बताया कि अभिषेक दीक्षित पर प्रयागराज के एसएसपी के रूप में तैनाती की अवधि में अनियमित्ताएं करने के साथ शासन के निर्देशों का अनुपालन सही ढंग से नहीं करने का आरोप है।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने प्रयागराज के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर दिया है। उन पर अपराध नियंत्रण, कानून-व्यवस्था में शिथिलता व भ्रष्टाचार आदि के गंभीर आरोप हैं। उन पर पोस्टिंग में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का भी गंभीर आरोप है। शासन एवं मुख्यालय के निर्देशों के अनुरूप नियमित रूप से फुट पेट्रोलिंग के साथ बैंक व व्यवसायिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा में अपेक्षित कार्रवाई नहीं की गई। इसके साथ ही प्रयागराज में बाइकर्स गैंग की बढ़ती घटनाओं की रोकथाम में भी एसएस की कार्रवाई लगभग शून्य के बराबर रही।
अभिषेक दीक्षित पर प्रयागराज जैसे बड़े जिले में चेकिंग व पर्यवेक्षण का काम भी सही ढंग से नहीं किया गया। प्रयागराज में तीन माह में लंबित विवेचनाओं में भी निरंतर वृद्धि हुई। इसके साथ कोरोना महामारी के संबंध में भी शासन/मुख्यालय से सोशल डिस्टेसिंग का पालन कराने के निर्देशों का सही ढंग से पालन नहीं कराया गया। जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी नाराजगी व्यक्त की गई।
तीन माह में जितने तबादले,शायद ही कभी हुए हों
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अभिषेक दीक्षित को यूं ही मुख्यमंत्री ने निलंबित नहीं किया। तीन माह में जितने तबादले जिले में हुए, शायद ही कभी हुए हों। सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर तक इतने तबादले हुए कि खुद पुलिस महकमे में ही हड़कंप मच गया था। अभिषेक दीक्षित ने जिले की कमान संभालने के कुछ ही दिन बाद पुलिसकर्मियों के स्थानांतरण करने शुरू किये। शुरुआती दौर में दो-चार ही तबादले हुए, लेकिन इसके बाद इसमें ऐसी तेजी आई कि यह लगातार बरकरार रही। 25 थानेदार एक ही दिन में बदल दिए गए। दर्जनों चौकी प्रभारी इधर से उधर हो गए। अधिकांश तो लाइन हाजिर हुए। इतना ही नहीं सिपाहियों पर भी गाज गिरी और बड़ी संख्या में सिपाही लाइन हाजिर किए गए। ये तो लिखा पढ़ी में था, बाकी काफी संख्या में ऐसे भी पुलिसकर्मी थे, जिनके बारे में मीडिया को कोई जानकारी नहीं दी गई और सीधे कार्रवाई की गई। एसएसपी आफिस से फोन कर इनको लाइन हाजिर किया गया। इन्हें बाद में तैनाती भी दी जाती रही।
मामला तब फंसा जब घूरपुर में सब्जी दुकानदारों की दुकानों को पुलिस की गाड़ी से रौंदने वाले दारोगा को एसएसपी ने अरैल चौकी का प्रभारी बनाया। बस यही से गणित उल्टी हो गई। आइजी रेंज केपी सिंह खुद मैदान में आ गए। उन्होंने साफ कहा कि ऐसे दारोगा को चौकी कैसे दे दी गई, जिस पर इतने गंभीर आरोप थे। तत्काल इसे हटाकर जिले से बाहर भेजा जाए। बात यहीं खत्म नहीं हुई। अपराध नियंत्रण काे लेकर भी एसएसपी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। मौके पर जाने के बजाय सिर्फ गुडवर्क को लेकर प्रेस कांफ्रेंस करते थे। चाहे छोटी घटना हो या बड़ी। आला अफसर भी यह सब जान रहे थे, लेकिन वे भी सामने आकर कुछ नहीं बोल पा रहे थे। वो तो आइजी रेंज थे, जिन्होंने अरैल में निलंबित दारोगा की तैनाती को लेकर अंगुली उठा दी थी। यही नहीं करीब दो सप्ताह पहले एडीजी जोन प्रेम प्रकाश ने मऊआइमा थाने पहुंचकर इंस्पेक्टर समेत कई पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया था। इन पर कार्य में लापरवाही बरतने का आरोप था। साथ ही कोरोना महामारी को लेकर खुद ये पुलिस कर्मी मास्क नहीं लगाए थे। एडीजी जोन की इस कार्रवाई को लेकर एसएसपी भीतर ही भीतर नाखुश थे और वे इन पुलिस कर्मियों को किसी भी तरह से बचाने की कोशिश में लगे थे, लेकिन एडीजी जोन प्रेम प्रकाश ने भी तत्काल कार्रवाई करते हुए रिपोर्ट आगे बढ़ा दी थी।
दोषी पुलिसकर्मियों के बचाव का आरोप
माफिया अतीक अहमद से जुड़ी 18 वर्ष पुरानी केस डायरी गायब होने की लापरवाही करने वाली प्रयागराज पुलिस के पुलिस के बचाव में उतरे एसएसपी अभिषेक दीक्षित निपट गए। एक तरफ प्रयागराज पुलिस अहमदाबाद जेल में बंद बाहुबली पूर्व सांसद अतीक अहमद के अवैध साम्राज्य को ध्वस्त करने में जुटी है, तो वहीं इस बीच खबर है कि माफिया के केस से जुड़ी कई अहम फाइलें धूमनगंज थाने से गायब हो गई हैं। पुलिस के लिए भी अतीक अहमद के खिलाफ दर्ज मुकदमों की गायब केस डायरी अबूझ पहेली बन गई है। ऐसे में खुद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के लिए गायब फाइलों को लेकर कुछ भी बताना मुश्किल हो गया है।
एसएसपी अभिषेक दीक्षित का कहना है कि कई बार वर्षों पुरानी फाइलें थानों में मिस प्लेस हो जाती हैं, लेकिन उसकी कॉपी कोर्ट और सीओ ऑफिस में मौजूद रहती है। जिससे नई केस डायरी रीकन्स्ट्रक्ट की जा सकती है। एसएसपी ने पुलिसकर्मियों का बचाव करते हुए कहा कि केस डायरी गायब होने के मामले में प्रथम दृष्टया पुलिसकर्मियों की कोई लापरवाही नजर नहीं आ रही है, कई बार फाइलें पुरानी हो जाने से भी उन्हेंं ढूंढ पाना बेहद कठिन हो जाता है। सरकार के सख्त होने पर एसएसपी ने अतीक अहमद के केस में 2002 में दर्ज मुकदमे के दौरान सीओ सिविल लाइन और थानाध्यक्ष रहे पुराने लोगों ने जानकारी जुटाने का प्रयास किया।