किनारे से गुजरने पर नाक पर रुमाल रखना पड़ता है।जारी हो गयी समाजवादी पार्टी के प्रत्याशिर्यो की सूची,49 मुसलमानों को भी मिला टिकट
मुगलों की राजधानी आगरा की पेयजल व्यवस्था यमुना नदी पर निर्भर है। मुगल काल से ही यमुना नदी से जलापूर्ति होती थी लेकिन अब हालात खराब होते जा रहे हैं।
यमुना नदी वर्ष में आठ महीने सूखी रहती है। मथुरा के गोकुल बैराज से प्रतिदिन 1200 क्यूसेक पानी का डिस्चार्ज होता है जो पर्याप्त नहीं है। ऊपर से नदी में गिरते नालों ने
यमुना को और प्रदूषित कर दिया है। बदहाली का आलम यह है कि यमुना के किनारे पर बदबू उठ रही है। जगह-जगह गंदगी पड़ी हुई है लेकिन इस तरफ किसी का ध्यान
नहीं है। यह केवल धर्म, अध्यात्म या आस्था का मामला ही नहीं है बल्कि आगरा शहरवासियों केजीवन से भी जुड़ा मुद्दा है।
दिनोदिन बढ़ती जा रही क्लोरीन की मात्रा
यहां 80 पीपीएम तक पहुंच जाती है, जोकि स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। सरकारी अमला सो रहा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड केवल प्रदूषण की मात्रा और सुप्रीम कोर्ट के
आदेश का हवाला देकर प्रदूषण के आंकड़े इकट्टा कर लेता है। जल संस्थान मथुरा से पानी नहीं मिलने का हवाला देकर चुप्पी साध लेता है। जनप्रतिनिधि संकल्प लेकर चुप
बैठ जाते हैं। जनता पीने के शुद्ध पानी के लिए तड़प रही है लेकिन साहब से लेकर सेवकों तक के कान में रूई पड़ी हुई है।
सुधार नहीं है। यमुना में नालों का गिरना बदस्तूर जारी है। आगरा में प्रवेश करते ही फिर बदबूदार नालों का पानी यमुना में बहा दिया जाता है। कैलाश मंदिर से लेकर
ताजगंज तक सैकड़ों नाले यमुना में गिर रहे हैं।
महज 260 एमएलडी की है सप्लाई
और जीवनी वाटर वर्क्स क्षमता 224 एमएलडी है। विभागीय सूत्रों के मुताबिक शहर की डिमांड करीब 325 एमएलडी है। लेकिन दिक्कत यह कि जल शोधन में 10-20
प्रतिशत पानी वेस्ट हो जाता है। इस तरह सिकंदरा वाटर वर्क्स 90 एमएलडी और जीवनी मंडी वाटर वर्क्स से 170 एमएलडी पानी शोधित होता है। यानी कुल 260
एमएलडी पानी वाटर वर्क्स से शहर को सप्लाई होता है। उल्लेखनीय है कि यह विभागीय आंकड़े हैं जबकि शहर में पानी की डिमांड इससे दो गुना अधिक है।
केवल 114 एमएलडी का ही ट्रीटमेंट
एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) की क्षमता केवल 114एमएलडी है। करीब 96 एमएलडी सीवर को सीधे यमुना में जा रहा है।