दिल्ली। राज्यों द्वारा लोकलुभावन नीतियों के तहत किसानों के कर्ज माफी के फैसले का खामियाजा देश के आर्थिक विकास की रफ्तार और अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला है। ये हम नहीं कह रहे है बल्कि ये कहा गया है वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार द्वारा तैयार किये गए आर्थिक सर्वे में। नोटबन्दी के चलते वैसे ही देश का सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी घट गया अब कर्ज माफी ने अर्थव्यवस्था के सामने नई चुनौती पेश कर दी है। आर्थिक सर्वे के मुताबिक किसानों के कर्ज माफी के चलते देश के जीडीपी में 0.7 फीसदी की कमी आ सकती है। यही नहीं आर्थिक सर्वे के मुताबिक कर्ज माफी के चलते मांग में भी कमी आ आएगी।
मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम विवाद से बचने के लिये किसानों के कर्ज माफी पर सीधी कोई भी टिप्पणी करने से बच रहे हैं। लेकिन उन्होंने आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल के बयान का सहारा लेकर इशारों में जरूर कर्ज माफी पर अपनी असहमति जता दी। उर्जित पटेल ने किसानों के कर्ज माफी के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा था कि इस फैसले से बैंक से कर्ज लेकर वापस नहीं करने की प्रवृत्ति बढ़ेगी।
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अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा कि यूपी में कर्ज माफी के चलते प्रदेश के कैपिटल एक्सपेंडिचर में 13 फीसदी की कमी आयी है। क्योंकि सरकार को कर्ज माफी के वायदे को पूरा करने के लिए धन उधर आवंटन करना पड़ा।
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कैपिटल एक्सपेंडिचर घटने का मतलब विकास और आधारभूत ढांचों के कार्यों पर कम खर्च, जिससे राज्य का बिकास प्रभावित होगा। और देश के सभी राज्य कर्ज़ माफी का एलान करें तो 2.2 लाख करोड़ से 2.7 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सत्ता मिलने पर बीजेपी ने किसानों को कर्ज माफ करने का वायदा किया था। इस वायदे की बदौलत बीजेपी 14 साल के वनवास के बाद यूपी के सत्ता पर काबिज भी हो गयी, लेकिन बीजेपी के यूपी में कर्ज़ माफी के मॉडल का असर ये हुआ कि अब हर राज्य में किसानों के कर्ज माफी की मांग उठ रही है । योगी सरकार के यूपी में किसानों के कर्ज माफी के बाद कर्नाटक और पंजाब की सरकार ने भी किसानों के कर्ज माफी का एलान कर दिया। महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार भी किसानों का कर्ज माफ करने जा रही है।
बहरहाल वोट के लिए कर्ज माफी के लॉलीपाप का सहारा लिया गया तो ग्रोथ रेट कम होगा पर इसका असर रोजगार और औद्योगिक विकास पर पड़ना तय है।