केदारनाथ में आठ हजार साल के जलवायु परिवर्तन का रिकार्ड सख्त मिट्टी के टुकड़े से मिला है।
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सरस्वती नदी के पास हिमनद पर मिले ठोस मिट्टी (पीट) के पांच मीटर लंबे इस टुकड़े की जांच से पता चला है कि जब-जब मानसून मजबूत हुआ है भारत की सभ्यताएं समृद्ध हुई हैं।
वैदिक काल, सिंधू घाटी, गुप्त वंश की समृद्धता मजबूत मानसून से प्रभावित रही है। इसके साथ ही एक और नया राज खुला है कि भारतीय मानसून पर उत्तरी अक्षांश का असर आता है।
इस मिट्टी में दबे पराग कणों की जांच की गई तो आठ हजार साल के जलवायु परिवर्तन और मानसून की स्थिति के रिकार्ड की परतें खुलने लगीं।
सैंपल की जांच पोलैंड में कार्बन-14 तकनीक से कराई गई। इसमें यह भी पता चला कि केदारनाथ में आठ हजार सालों के बीच किस-किस तरह की वनस्पतियां रही हैं।
इन रिकार्ड को जब इतिहास से जोड़कर देखा गया
साथ ही मानसून के बदले मिजाज की भी जानकारी हुई।शोध में यह भी पाया गया कि केदारनाथ के जलवायु परिवर्तन का रिकार्ड ग्रीन लैंड से मेल खाता है। हिमनद पर मिली मिट्टी से निकले रिकार्ड पेरू के समुद्री तलछट से भी मेल खाते हैं।
अटलांटा से भी हिमालय का ‘टेली कनेक्शन’ पाया गया। इन रिकार्ड को जब इतिहास से जोड़कर देखा गया तो पता चला कि स्वर्ण युग (वैदिक काल) में मानसून बहुत मजबूत रहा है। सिंधू घाटी की सभ्यता की विविधताएं जलवायु परिवर्तन की ही देन रही हैं। इस पूरे काल में मानसून कभी कम और कभी बहुत अधिक हुआ है। इससे यहां अनाज और वनस्पतियों की विभिन्न प्रजातियां पनपीं। जलवायु के बदलाव से जब भी मानसून मजबूत हुआ सभ्यताएं समृद्ध हुई हैं।
हिमनद पर मिले पीट से निकाले गए पराग कणों से आठ हजार साल के जलवायु परिवर्तन का रिकार्ड मिला है। इसमें बहुत सी नई चीजें पता चली हैं जो आने वाले समय में शोध में मदद करेंगी। लघु हिम काल (1500-1800 ईसा पश्चात) की निशानियां भी पाई गई हैं। जलवायु परिवर्तन का मानव सभ्यता के विकास पर प्रभाव पता चला।
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