दरअसल, गाय के दूध में एक्सोसम्स की खोज हुई है, जो कैंसर की दवा को डिलीवर करने का जबरदस्त स्रोत है। इससे कैंसर की दवा नैनो तकनीक में तब्दील कर ज्यादा असरदार बन जाती है। पीयू में नैनो साईटेक में अमेरिका से आए प्रो. रमेश गुप्ता ने इस तकनीक का खुलासा किया। उन्होंने बताया कि इस तकनीक का सफल प्रशिक्षण हो चुका है। अब अगले कदम में दवा को सीधा शरीर के प्रभावित क्षेत्र पर असर करने के लिए काम किया जा रहा है।
इसके अलावा जामुन और ब्लूबेरी का इस्तेमाल कर कैंसर की दवा बनाने पर काम किया जा रहा है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ लुइसविले के प्रो. रमेश गुप्ता ने बताया एक रिसर्च में पाया गया कि दूध में एक्सोसम्स होता है, जो गाय के दूध में ज्यादा प्रभावी है। एक्सोसम्स ड्रग डिलीवरी का बेहतरीन जरिया है। किसी भी प्रकार के कैंसर की दवा को एक्सोसम्स के जरिए शरीर में डिलीवर किया जाए तो दवा ज्यादा असर करती है।
चूंकि नैनो तकनीक से कैंसर के इलाज में बड़े स्तर पर रिसर्च चल रही है। उसी के तहत दूध के एक्सोसम्स को ड्रग डिलीवरी में इस्तेमाल करने पर काम किया गया। जो काफी असरदार पाया गया। हालांकि, यह तकनीक उस स्तर पर नहीं पहुंची की सीधे बीमारी की जड़ पर दवा पहुंचाई जा सके। यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के प्रो. रूडनी जेवाई के मुताबिक नैनो तकनीक से बनी दवा, आम दवा के मुकाबले ज्यादा असरदार होती है। ये किसी बीमारी पर जल्दी और कई गुणा मात्रा में असर करती हैं।
गौरतलब है कि इससे पहले भी गाय का दूध पीने से कैंसर तक की बीमारी खत्म होने का दावा किया गया है, यह खुलासा हरियाणा के करनाल में मौजूद नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक रिसोर्सिज (NBAGR) में हुए अभी तक के शोध में हुआ है। शोध में पता चला है कि वैचूर नस्ल की गाय के दूध में ए-2 बीटाकेसीन तो है ही, साथ ही इसके दूध में कैंसर जैसी घातक बीमारी से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी है।
वैदिक मान्यता के मुताबिक, भारतीय गोवंश समुद्र मंथन से उत्पन्न हुआ, इसी वजह से जंगली प्रवृत्ति से दूर रहा। दूध की गुणवत्ता के वैज्ञानिक आंकलन में भी भारतीय गोवंश की प्रामाणिकता सिद्ध हुई है। संस्थान की प्रधान वैज्ञानिक डॉ. मोनिका सोढी की मानें तो इस गाय के लैक्टोकेरिन में आरजीनो की मात्रा अधिक होती है। यही कारण है कि इसके दूध में कैंसर प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा है। वैसे तो वैचूर नस्ल की यह अनोखी गाय केरल में पाई जाती है, लेकिन कारसगुड़ इसका गढ़ बताया जाता है।
दूध उत्पादन की बात करें तो स्थानीय लोग आठ किलो तक का दावा करते हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि यह गाय छह किलो तक दूध देती है। खास बात यह भी है कि इसके रख-रखाव का खर्च भी बेहद कम है। इसको विशेष डाइट देने की जरूरत नहीं होती। बाहर से ही घास-फूस खाकर अपना पेट भर लेती है। गाय की वैचूर प्रजाति दुनिया की सबसे छोटी नस्ल है। इस प्रजाति की गाय में सर्वाधिक 7 फीसदी वसा पाई जाती है, किंतु संख्या बढ़ाने पर सरकारों ने कोई रुचि नहीं ली।
भारतीय पशुओं की नस्लीय विशेषता हमेशा सम्मान का पात्र रही है। गोवंश के मूत्र में रेडियोधर्मिता सोखने की क्षमता पायी जाती है, जो भोपाल गैस त्रासदी के दौरान भी सिद्ध हो चुकी है। गोबर से लीपे हुए घरों पर कम असर हुआ। अमेरिका ने भी गोमूत्र में कैंसर विरोधी तत्व होने को लेकर पेटेंट दिया है। गाय के दूध में स्वर्ण भस्म भी बनता है। मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया ने भी गाय के दूध को सर्वोत्तम माना है। गाय का घी खाने से कोलेस्ट्रोल नहीं बढ़ता।