कैदियों के बनाए गए प्रोडक्ट अब देश भर की दुकानों में बेचे जाएंगे। इसमें तिहाड़ और दूसरी जेलों में बनाए गए उत्पाद विशेष रूप से शामिल होंगे। 27 फरवरी को साबरमती आश्रम में खादी ग्रामोद्योग आयोग की बैठक में यह फैसला लिया गया। खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष वी।के सक्सेना मुताबिक कैदियों द्वारा बनाए गए ये उत्पाद पूरे देश की खादी की दुकानों में बेचे जाएंगे।
ये सामान बिकेगा खादी की दुकानों पर खादी आउटलेट्स पर मिलेंगे कैदियों के बनाए प्रोडक्ट कैदियों के बनाए गए प्रोडक्ट अब देश भर की दुकानों में बेचे जाएंगे। इसमें तिहाड़ और दूसरी जेलों में बनाए गए उत्पाद विशेष रूप से शामिल होंगे।
सक्सेना के मुताबिक- ‘ हम तिहाड़ व गुड़गांव जेलों के कैदियों द्वारा बनाए गए उत्पादों को खादी ब्रिकी केंद्रों में बेचेंगे। इसके बाद हम दूसरी जेलों के प्रोडक्ट भी बेचेंगे।’ बेचे जाने वाले इन प्रोडक्ट्स में रेडिमेड गारमेंट्स के अलावा हथकरघा, कंबल, फर्नीचर व स्टेशनरी उत्पाद भी शामिल होंगे। तिहाड़ में कैदी रेडीमेड कपड़े, हैंडलूम, स्टेशनरी आइटम, फर्नीचर, कंबल सहित कई तरह के दूसरे प्रोडक्ट बनाते हैं।
खास बात यह है कि जेल परिसर में इन फैक्ट्रियों का साल भर में टर्नओवर करोड़ों में रहता है। इस कदम से आर्थिक फायदा भी पहुंचेगा। कैदियों के बनाए खादी के उत्पादों को बेचने का उ्देश्य कैदियों का समाज से जुड़ाव बढ़ाना है।
सक्सेना के मुताबिक जेलों में बने उत्पादों को ब्रिकी मंच देने से कैदियों को खुद में बदलाव का अवसर मिलेगा और वे समाज से जुड़ाव महसूस करेंगे। खादी कमीशन ने जुलाहों की सैलरी बढाने का भी फैसला किया गया है। नई सैलरी कुकड़ी (लच्छे) के लिए मेहनताना 5।50 रुपए से बढाकर 7।00 रुपए किया जाएगा, जो कि एक अप्रैल 2017 से लागू होगा।
तिहाड़ में कई तरह के काम करते हैं कैदी तिहाड़ में कैदियों को तनाव से दूर रखने के लिए कामकाज दिया गया। इसके लिए 1962 में फैक्ट्री लगाई गई थी। बाद में कैदियों उनकी रुचि के हिसाब से प्रोडक्शन की ट्रेनिंग भी दी गई। इसमें कपड़ा बुनने लेकर फर्नीचर बनाने जैसे काम शामिल थे। फिलहाल अब 800 से ज्यादा कैदी फैक्ट्री में काम कर रहे हैं और कई तरह के प्रोडक्ट बना रहे हैं। यही नहीं तिहाड़ में बेकिंग स्कूल है, जिसमें बिस्किट, ब्रेड और केक बनाना भी कैदियों को सिखाया जाता है।