कोरोना के दौरान में इंटरनेट से पढ़ाई में हुआ सुधार, तो कुछ बुरी आदतों ने भी जकड़ा

कोरोना महामारी के दौरान दैनिक गतिविधियां बनाए रखने के लिए इंटरनेट एक बुनियादी जरूरत बन गई है। पढ़ाई हो या दफ्तर का कामकाज। या फिर घरेलू सामान मंगाने के लिए ऑनलाइन ऑर्डर करना हो। मतलब इंटरनेट जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है। पिछले साल तो ऐसे हालात बने कि स्कूल-कॉलेजों की पूरी पढ़ाई ही इंटरनेट पर निर्भर हो गई।

इसके मद्देनजर इंटरनेट एक्सेस बढ़ाने के लिए निवेश तथा उसके प्रभाव और दुष्परिणामों को लेकर शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन किया है। इसमें कहा गया है जहां कहीं छात्रों ने इंटरनेट पर ज्यादा समय बिताया, उनकी पढ़ाई में तो सुधार आया, लेकिन इसके साथ ही कुछ बुरी आदतें भी उनमें घर कर गईं। जिसके आर्थिक नफा-नुकसान का भी आकलन किया गया है। जर्नल ऑफ मार्केटिंग रिसर्च में प्रकाशित इस शोध अध्ययन के अनुसार, इंटरनेट के सहारे गणित सीखने, सामाजिक अध्ययन में रुचि बढ़ने और पढ़ने-लिखने जैसी गतिविधियां बढ़ी हैं। खास बात यह कि ये सुधार उन क्षेत्रों के छात्रों में ज्यादा देखे गए, जहां इंटरनेट एक्सेस मजबूत है।

अमेरिका की राइस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर व शोधकर्ता विकास मित्तल कहते हैं, इंटरनेट एक्सेस बढ़ाने के लिए किया जाना वाला निवेश शिक्षा के क्षेत्र में सीधे तौर पर सार्थक और लाभदायक हैं, लेकिन इसके साथ ही छात्रों में बढ़ रही अनुशासनहीता समेत कुछ अन्य बुरी आदत से निपटने के लिए स्कूलों को एक नीति भी बनाए जाने की जरूरत है। खासकर साइबर बुलिंग की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए इस पर तत्काल ध्यान दिया जाना चाहिए।

अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने टेक्सास के 1,243 स्कूल जिलों के नौ हजार से ज्यादा स्कूलों के वर्ष 2000-14 के बहुस्तरीय डाटा एकत्र किए। शोध टीम ने इसके आधार पर इंटरनेट पर बिताए गए समय, शैक्षणिक प्रदर्शन के 11 संकेतकों तथा स्कूलों में अनुशासनहीनता के 47 प्रकार के मामलों का अध्ययन किया। इंटरनेट पर खर्च और उससे पढ़ाई में सुधार तथा अनुशासनहीनता की समस्याओं का अनुमान लगाने के लिए इकोनॉमेट्रिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया। इसमें छात्रों की आमदनी के आधार पर इंटरनेट पर वार्षिक खर्च में बढ़ोत्तरी और उसके प्रभाव को आकलित किया गया। इसकी भी गणना की गई कि छात्र को इंटरनेट एक्सेस का जीवन में कितना आर्थिक फायदा मिल सकता है। पाया गया कि इंटरनेट एक्सेस के लिए खर्च में सालाना छह लाख डॉलर की वृद्धि से प्रति स्कूल जिला को करीब 8.2 लाख से लेकर 18 लाख डॉलर तक का फायदा होगा, जबकि अनुशासनहीनता से जुड़ी समस्याओं के कारण 25,800 डॉलर से लेकर 53,440 डॉलर तक का नुकसान भी है।

 

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