कोरोना को मात देने के लिए IIT पलक्कड़ ने एक ऑटोमेटेड लंग अल्ट्रासाउंड (LUA) किया विकसित….

देशभर में कोरोना को मात देने वाली भविष्य की योजनाओं पर काम चल रहा है। इसी क्रम में आईआईटी पलक्कड़ ने एक ऑटोमेटेड लंग अल्ट्रासाउंड (एलयूएस) विकसित किया है, जो कोरोना स्क्रीनिंग में सहायक साबित हो सकता है। इसके माध्यम से क्लाउड आधारित इमेज का विश्लेषण किया जा सकेगा। शोधकर्ताओं का दावा है कि यह भारत में पहला ऐप होगा, जिसका इस्तेमाल क्लीनिशियंस कर सकेंगे। क्लीनिशियंस इसकी मदद से अल्ट्रासाउंड वीडियो को अपलोड कर उसका विश्लेषण कर सकते हैं। आईआईटी पलक्कड़ के वैज्ञानिकों का कहना है कि एलयूएस कोरोना रोगियों के इलाज में हेल्थ प्रोफेशनल के लिए काफी कारगर होगा, क्योंकि इससे चिकित्सक कम समय में अधिक रोगियों के अल्ट्रासाउंड वीडियो का विश्लेषण कर सकेंगे।

ऐसे बना एलयूएस

आईआईटी ने ला पाज अस्पताल- मैड्रिड ( स्पेन), श्री चित्रा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी और सरकारी मेडिकल कॉलेज, कोट्टायम के साथ मिलकर ऐप विकसित किया है। प्रोफेसर महेश आर पनिकर के नेतृत्व में आईआईटी की टीम ने ला पाज अस्पताल यूनिवर्सिटारियो में अल्ट्रासाउंड डिवीजन के निदेशक डॉ येल तुंग चेन द्वारा प्रदान की गई एलयूएस छवियों का उपयोग करके जांच शुरू की। डॉ येल, जिन्होंने SARS-CoV-2 के लिए सकारात्मक परीक्षण किया है, उन्होंने 13 दिनों की रोग प्रगति पर अपनी एलयूएस इमेज को साझा किया।

कोविड-19 रोगियों में एलयूएस की प्रासंगिकता और महत्व को दर्शाने वाले आशाजनक परिणामों से प्रेरित होकर आईआईटी टीम ने इमेज प्रोसेसिंग और न्यूरल नेटवर्क का उपयोग करते हुए सामान्य, वायरल और बैक्टीरिया से संक्रमित फेफड़ों का एलयूएस विश्लेषण किया और एक स्वचालित एलयूएस विश्लेषण उपकरण विकसित किया।

ऐसे करता है काम

आईआईटी, पलक्कड़ के प्रोफेसर महेश आर पनिकर ने बताया कि एक नर्सिंग सहायक (एक कुशल चिकित्सक की अनुपस्थिति में) एलयूएस के सहयोग से एक साधारण प्रोटोकॉल का पालन करते हुए, फेफड़ों की इमेज प्राप्त करता है। वह इन इमेज को क्लाउड में स्थानांतरित करता है (pulecho.in/alus/)। इमेज का विश्लेषण क्लाउड पर किया जाता है। इसके बाद रोग की गंभीरता और इंफेक्शन के अनुसार स्कोर निर्धारित किया जाता है।

फेफड़ों के संक्रमण में भी कारगर

पनिकर का कहना है कि इसका इस्तेमाल कोरोना के अलावा अन्य रोगों की पहचान आदि में भी किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल फेफड़ों के संक्रमण, ओडिमा, न्यूमीनिया, सीओपीडी या अस्थमा जैसे रोगों की पहचान करने में भी किया जाता है। डॉ पनिकर का कहना है कि अपलोड की गई छवियों को स्वस्थ फेफड़े, वायरल संक्रमण और जीवाणु संक्रमण में वर्गीकृत किया गया है। लेकिन संक्रमण की गंभीरता के मामले में छवियों को बढ़ती गंभीरता के स्तरों में वर्गीकृत किया गया है।

एलयूएस के फायदे

-यह पोर्टेबल है। इसे ले जाना आसान है।

– इसमें रेडिएशन एक्सपोजर का डर नहीं है

-इसकी कीमत कम है

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