कोरोना वायरस को अब एक साल हो चुका है। अब तक इसे लेकर हजारों अध्ययन हो चुके हैं, लेकिन कई नए अध्ययन पुराने को खारिज कर रहे हैं। यानी अभी तक कुछ भी पुख्ता नहीं मिल पा रहा है। इन सबके बीच अब शोधकर्ताओं ने पाया है कि कोरोना रोगियों में निमोनिया की वजह से प्रतिरक्षा प्रणाली की टी कोशिकाएं प्रभावित हो रही है। ऐसे में अगर इस पर काबू पा लें तो कोरोना वायरस के कारण होने वाले फेफड़ों के गंभीर संक्रमण से बचा जा सकता है।

इस शोध का प्रकाशन फ्रंटियर्स इन इम्यूनोलॉजी जर्नल में किया गया है। इसमें बताया गया है कि गंभीर रूप से बीमार कोरोना रोगियों में प्रतिरक्षा प्रणाली की अधिकता का अनुभव होता है, जबकि वास्तव में टी कोशिकाओं की संख्या रक्त में काफी कम हो जाती है। टी कोशिकाएं ही प्रतिरक्षा कोशिकाओं के लिए कमांड सेंटर का काम करती हैं।जापान स्थित कुमामोटो विश्वविद्यालय के विज्ञानियों का कहना है कि टी कोशिकाएं विशिष्ट विषाणुओं (वायरस) को पहचान कर प्रतिरक्षा प्रणाली की गतिविधि को नियंत्रित करती हैं। साथ ही वायरस को खत्म करने और प्रतिरक्षा प्रणाली को फिर से ठीक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
इस अध्ययन में विज्ञानियों ने कोरोना रोगियों में गंभीर निमोनिया के कारणों को निर्धारित करने के लिए टी कोशिकाओं का आकलन किया। उन्होंने पाया कि सीडी 4 + टी कोशिकाएं (सहायक टी कोशिकाएं) साइटोटॉक्सिक टी कोशिकाओं और बी कोशिकाओं को सक्रिय कर देती हैं। साइटोटॉक्सिक टी कोशिकाएं शरीर से वायरस को खत्म करने का काम करती हैं, जबकि बी कोशिकाएं शरीर में एंटीबॉडी का उत्पादन करती हैं।विज्ञानियों ने यह भी पाया कि कुछ सीडी 4+ टी कोशिकाएं अत्यधिक सक्रिय हो जाती हैं तो वे नियामक टी कोशिकाओं की तरह काम करने लगती हैं, जिससे टी कोशिकाओं का काम प्रभावित होता है।
इस तरह किया शोध
शोध के लिए विज्ञानियों ने चीन के वुहान से कोरोना के मरीजों के फेफड़े से लिए गए तरल पदार्थ के सैंपल का विश्लेषण किया और उनके खून में मौजूद सीडी 4 + टी कोशिकाओं के बारे में जानकारी हासिल की गई। उन्होंने पाया कि गंभीर रूप से निमोनिया के रोगियों के फेफड़ों में टी कोशिकाएं स्पष्ट रूप से सक्रिय पाई गईं, लेकिन इनके ब्रेकिंग फंक्शन ने काम करना बंद कर दिया था।
क्या हैं टी कोशिकाएं
जब भी हमारे शरीर पर किसी तरह के वायरस का हमला होता है तो उससे लड़ने और बीमारी को शरीर से बाहर निकालने का काम ये टी-कोशिकाएं ही करती हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में एक माइक्रोलीटर रक्त में आमतौर पर 2000 से 4800 टी-सेल होती हैं, जिसे मेडिकल की भाषा में टी-लिम्फोसाइट्स भी कहा जाता है। विज्ञानियों ने अपने टेस्ट में पाया कि कोरोना के मरीजों में इनकी संख्या 200 से 1000 तक पहुंच जाती है। इसीलिए उनकी हालत गंभीर हो जाती है।
TOS News Latest Hindi Breaking News and Features