मानसिक तनाव, भावनाओं का उतार-चढ़ाव, भय, क्रोध, नर्वस होना, अवसाद महसूस करना आदि-आदि। इन दिनों ये चर्चा के आम विषय बन चुके हैं। इनसे संबंधित शिकायतों की बाढ़-सी आई हुई है। लोगों का न सिर्फ मानसिक, बल्कि भावनात्मक एवं शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है। मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अस्थमा, हृदय में तकलीफ जैसी शिकायतों में वृद्धि हो गई है। कोविड से ग्रसित या उससे उबर चुके बहुसंख्य लोग साइकोसोमैटिक समस्याओं से जूझ रहे हैं और उन विकल्पों को तलाश रहे हैं, जो उन्हें तन के साथ मन का सुकून दे सकें।
वरिष्ठ मनोचिकित्सक एवं मेडिटेशन प्रैक्टिशनर डा. गिरीश पटेल बताते हैं कि हम तब तक तनाव का अनुभव नहीं करते हैं, जब तक कि उसके बारे में हमारे चेतन व अवचेतन मन में कोई विचार न चलता हो। जब हमारे विचार नकारात्मक होते हैं, उसमें बेचैनी, ईर्ष्या, भय अथवा अवसाद का एहसास होता है, तो वह तनाव उत्पन्न करता है। इनके बारे में चिंतन बंद कर देने से संभव है कि हमें तनाव का अनुभव भी न हो। अगर हम प्रतिकूल या कथित तौर पर तनावपूर्ण वातावरण में भी शांत, खुश एवं रिलैक्स रहते हैं, तो हमारा मन भी सकारात्मक रहता है। मेडिटेशन एवं माइंडफुलनेस आदि का अभ्यास ऐसा करने में मदद करता है। यही कारण है कि इन दिनों बड़ी संख्या में लोग मेडिटेशन समूहों से जुड़ रहे हैं। अनेक शोधों से भी प्रमाणित हुआ है कि मेडिटेशन शरीर एवं आत्मा दोनों के लिए कितने लाभकारी हैं। इससे मस्तिष्क के उन हिस्सों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है,जो एक मनुष्य को शांतचित्त एवं खुश रख सकते हैं।
हार्वर्ड की न्यूरोसाइंटिस्ट सारा लेजर के अनुसार, मेडिटेशन ब्रेन के चार हिस्सों-लेफ्ट हिप्पकैंपस,पोस्टेरियर सिंगुलेट, पान्स एवं द टेम्पेरो पेरिएटल जंक्शन पर गहरा प्रभाव डालता है। इससे सोचने की शक्ति बढ़ जाती है। ग्रे-मैटर वाल्यूम अधिक होने से दिमाग की क्षमता बढ़ जाती है। एकाग्रता आती है। किसी कार्य पर अधिक फोकस कर पाते हैं। स्कूली बच्चों के लिए मेडिटेशन के संज्ञानात्मक एवं भावनात्मक लाभ हैं। मनोचिकित्सक नियामत बावा कहती हैं, जिस प्रकार गाड़ी को चलाने के लिए डीजल या पेट्रोल के साथ समय पर सर्विसिंग की आवश्यकता पड़ती है, उसी प्रकार मनुष्यों को चलाने वाले मस्तिष्क के लिए मेडिटेशन सर्विसिंग का काम करता है। वैज्ञानिक शोध के मुताबिक, मानव मस्तिष्क में दिन में साठ से सत्तर हजार से भी अधिक विचार उत्पन्न होते हैं, जिनमें नकारात्मक एवं फिजूल विचार अधिक होते हैं। मेडिटेशन दिमाग में चल रहे विचारों पर विराम लगाकर उसे शांत करने में मदद करता है।
डा. गिरीश का कहना है कि जिस प्रकार किसी पौधे के बढ़ने के लिए उसकी जड़ों में पानी डाला जाता है न कि पत्तों में, वैसे ही हमें मन को शांत करने के लिए सर्वप्रथम अपने संकल्पों को श्रेष्ठ एवं सकारात्मक बनाना चाहिए। अपनी आंतरिक एवं आध्यात्मिक शक्ति को जाग्रत करना होगा। इस शक्ति की मदद से जब हम अपने मन को परमसत्ता से जोड़ते हैं,तो आसपास के लोग, स्थान, संसाधन, वस्तु, परिस्थितियां, प्रकृति जैसे बाह्य तत्व हमारे सहयोगी बन जाते हैं। योग गुरु सर्वेश उपाध्याय के अनुसार, आध्यात्मिक दृष्टिकोण से योग का अर्थ ही परमात्मा से स्वयं को जोड़ लेना है। ध्यान-साधना अर्थात् मेडिटेशन से मनुष्य न सिर्फ अन्य मनुष्यों, बल्कि प्रकृति एवं परमसत्ता के साथ एक सद्भाव स्थापित कर लेता है, जिससे उसके तन एवं मन की व्याधियां अपने आप छूटने लगती हैं। सर्वांगीण स्वास्थ्य का मूल आधार भी आंतरिक उपचार है, जो योग एवं ध्यान से फलीभूत हो सकता है।