आकाश मंडल में कोई भी ग्रह जब सूर्य से एक निश्चित दूरी के अंदर आ जाता है, तो सूर्य के तेज से वह ग्रह अपनी शक्ति खोने लगता है। इसे ही ग्रह का अस्त होना माना जाता है। जब कोई ग्रह अस्त हो जाता है, तो उसके फल देने की स्थिति में कमी आ जाती है।
यानी यदि वह शुभ फल देने वाला है, तो पूर्ण शुभ फल नहीं दे पाता है। यदि अशुभ फल देने वाला है, तो उसके अशुभ फल देने में कमी आ जाती है। सूर्य के समीप आने पर छहों ग्रह अस्त हो जाते हैं, लेकिन राहु और केतु कभी अस्त नहीं होते हैं।
इतने करीब होने पर होते हैं अस्त
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, चंद्रमा सूर्य के दोनों ओर 12 डिग्री या इससे अधिक करीब आने पर अस्त माने जाते हैं। वहीं, सूर्य के दोनों ओर 11 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर गुरू अस्त माने जाते हैं। शुक्र, सूर्य के दोनों ओर 10 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर अस्त माने जाते हैं। वक्री शुक्र यदि सूर्य के दोनों ओर 8 डिग्री या इससे अधिक करीब हो, तो अस्त माना जाता है।
सूर्य के दोनों ओर 14 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर बुध अस्त माने जाते हैं। वक्री बुध यदि सूर्य के दोनों ओर 12 डिग्री या इससे अधिक करीब हो, तो अस्त माने जाते हैं। सूर्य के दोनों ओर 15 डिग्री या इससे अधिक समीप आने पर शनि अस्त माने जाते हैं।
अतिरिक्त बल देने की जरूरत
अस्त ग्रहों सही फल दें, इसके लिए उन्हें अतिरिक्त बल देने की जरूरत होती है। कुंडली के आधार पर यह निर्णय किया जाता है कि अस्त ग्रह को अतिरिक्त बल कैसे प्रदान किया जा सकता है। यदि वह ग्रह शुभ फल देने वाला है, तो उसे अतिरिक्त बल प्रदान करना चाहिए। इसके लिए जातक को संबंधित ग्रह का रत्न धारण करवाया जाता है।
हालांकि, यदि किसी अस्त ग्रह अशुभ फल देने वाला है या अकारक है, तो उसे अतिरिक्त बल नहीं देना चाहिए। इस स्थिति में संबंधित ग्रह का रत्न नहीं पहनाना चाहिए। इस स्थिति में उस ग्रह के मंत्र, बीज मंत्र या सामान्य पूजा से उसे ठीक करना चाहिए।