क्या कम होगी होम लोन की EMI? राहत देने के लिए RBI की बैठक शुरू

देश की केंद्रीय बैंक आम आदमी को लेकर बड़ा फैसला लेने जा रही है। इस मीटिंग के दौरान ये फैसला लिया जाएगा कि आने वाला लोन सस्ता होगा या महंगा? हालांकि ये बैंकों पर भी निर्भर करता है कि वे रेपो रेट में कटौती या बढ़त के बाद लोन और एफडी का ब्याज दर बदलता है या नहीं।

10 बजे हुई मीटिंग की शुरुआत
RBI के एमपीसी मीटिंग (RBI MPC Meeting Live) की शुरुआत आज 10 बजे से हुई है। इस मीटिंग के तहत लिया गया फैसला 6 जून 2025 को सुबह 10 बजे सुनाया जाएगा। रिजर्व बैंक की चल रही एमपीसी मीटिंग को आप सेंट्रल बैंक के यूट्यूब चैनल पर देख सकते हैं।

इसके साथ ही एक्स प्लेटफॉर्म बने रिजर्व बैंक के प्रोफाइल पर भी मीटिंग का लाइव देखा जा सकता है।

कितनी होगी Repo Rate में कटौती?
Basic Home loan के सीईओ एवं सह-संस्थापक बताते है कि इस साल फरवरी एवं अप्रैल में रेपो रेट में बैक-टू-बैक 25 बेसिस पॉइन्ट्स की कटौती के बाद बेंचमार्क रेट 6 फीसदी तक कम हो गई है, ऐसे में मुझे उम्मीद है कि आरबीआई विकास को बढ़ावा देने के लिए अपने उदार रुख को बनाए रखेगा क्योंकि इन्फ्लेशन कंट्रोल में है।

उन्होंने आगे कहा हाल ही में रेट में कटौती के चलते होम लोन सस्ते हो रहे हैं। हालांकि इसका वास्तविक प्रभाव तभी महसूस होगा जब बैंक इन फायदों को उपभोक्ताओं तक पहुंचाएं। इन्फ्लेशन में गिरावट को देखते हुए मुझे उम्मीद है कि रेट में 25 बीपीएस की कटौती और होगी। स्थिर और कम ब्याज़ दर से लोन और अफॉर्डेबल होंगे।

Square Yards के को-फाउंडर और सीईओ ने कहा कि यह केंद्रीय बैंक के लिए कुछ साहसिक कदम उठाने का एक उपयुक्त समय है। रियल इस्टेट के लिए ये कटौती अभी काफी महत्वपूर्ण है। रेपो रेट में कटौती निवेश को बढ़ावा देगी। उन्होंने कहा कि ब्याज दरों में 1% की कमी भी घर खरीदने वाले की क्रय शक्ति को लगभग 10% तक बढ़ा सकता है।

रेपो रेट का कैसे पड़ता है ब्याज दर पर प्रभाव
रेपो रेट (Repo Rate) वे ब्याज दर होती है, जिसके जरिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया वाणिज्यिक बैंकों को शॉर्ट टर्म लोन ऑफर करता है।

ये लोन एक समय सीमा के लिए निर्धारित किया जाता है। वहीं बैंक रेपो रेट के हिसाब से ब्याज देती है। अगर बैंक लंबे समय के लिए लोन लेना चाहे, तो ये बैंक रेट के आधार पर लिया जाएगा।अगर रेपो रेट में बढ़ोतरी होती है, तो
इसका मतलब है कि बैंकों को लोन महंगा पड़ने वाला है, जिससे लोगों का लोन मिलना भी महंगा हो जाता है।

वहीं अगर रेपो रेट में गिरावट आती है, तो इससे बैंकों को लोन सस्ता पड़ता है। वहीं लोग भी कम ब्याज दर पर लोन ले पाते हैं।

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