क्या नोटबंदी सच में खोदा पहाड़, निकली चुहिया साबित हुई है? बुधवार को रिजर्व बैंक के आंकड़ों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी वाले पसंदीदा प्रयोग को करीब करीब फ्लॉप शो साबित कर दिया है. 500 रुपये और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बंद करने की जो पसीना छुड़ा देने वाली कसरत हुई, उस कसरत की कीमत सिर्फ़ 16 हजार करोड़ रुपये ही निकली है. जमा हुए बंद नोट गिनने में 8 महीने लगा देने वाले रिजर्व बैंक ने फाइनली जब नोट गिनकर बताए तो ये पता चला कि ज़्यादातर नोट तो वापस जमा हो गए. ऐसे में सवाल उठने शुरू हो गए हैं कि क्या नोटबंदी के जरिए कालेधन को सफेद किया गया?
रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया की सालाना रिपोर्ट में दिए आंकड़ों के मुताबिक:
-नोटबंदी से पहले 1000 रुपये के 633 करोड़ नोट थे, जिसमें से नोटबंदी के बाद 98.6 फीसदी नोट वापस जमा हो गए
-1000 रुपये के सिर्फ़ 8 करोड़ 90 लाख नोट जमा नहीं हुए, यानी 8900 करोड़ रुपये वापस नहीं लौटे
-आरबीआई ने 500 रुपये के पुराने नोट पर कोई आंकड़ा नहीं दिया है और ये कहा है कि अभी वेरीफिकेशन चल रहा है
-कुल आंकड़े के मुताबिक बंद हुए 15 लाख करोड़ रुपये के नोटों में सिर्फ 16 हज़ार करोड़ रुपये के नोट जमा नहीं हुए
-रिज़र्व बैंक ने ये भी बताया कि 500 रुपये के बंद हुए हर 10 लाख नोट में औसत 7 नोट नकली थे
– 1000 रुपये के बंद हुए हर 10 लाख नोट में औसत 19 नोट नकली थे…
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विपक्ष ने शुरू किया अटैक
इन आंकड़ों के बाद सवाल उठाए जा रहे हैं कि जब करीब-करीब 99 फीसदी बंद नोट वापस आ गए तो फिर नोटबंदी की इतनी बड़ी कसरत का मतलब क्या निकला. नकली नोट का आंकड़ा भी उम्मीद से बहुत कम निकला. यही वजह है कि अब विपक्ष सरकार पर फुल अटैक कर रहा है. पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि नोटबंदी से रिज़र्व बैंक को 16 हज़ार करोड़ रुपये मिले, लेकिन नए नोट छापने में 21 हज़ार करोड़ रुपये लग गए. सरकार के अर्थशास्त्रियों को तो नोबल अवॉर्ड मिलना चाहिए. वहीं राहुल गांधी ने ट्वीट करके कहा कि नोटबंदी की वजह से कई लोगों की जान गई और आर्थिक नुकसान भी हुआ. ऐसे में क्या प्रधानमंत्री अब इसकी जिम्मेदारी लेंगे.
A colossal failure which cost innocent lives and ruined the economy. Will the PM own up? #DemonetisationDisaster https://t.co/YXNdW8xBTL
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 30, 2017
98.6% नोट लौट आए, तो नोटबंदी से हुआ क्या?
98 फीसदी से ज़्यादा बंद नोट वापस जमा हो जाने के आंकड़े पर सरकार की ज़बरदस्त आलोचना हो रही है. यह कहा जा रहा है कि नोटबंदी का कोई बड़ा मतलब नहीं निकला. हालांकि इन आंकड़ों के बावजूद सरकार ये मानने को तैयार नहीं है कि वो नोटबंदी के तय टारगेट में फेल हुई है. रिज़र्व बैंक की सालाना रिपोर्ट आने और उसमें नोटबंदी के आंकड़े के सामने आने के बाद हो रही आलोचनाओं की वजह से ही वित्त मंत्री अरुण जेटली को तुरंत मीडिया के सामने आना पड़ा. सरकार का कहना है कि नोटबंदी के फेल हो जाने की बात करने वाले और उसकी आलोचना करने वाले कंफ्यूज़ हैं. ऐसे लोग नोटबंदी के पूरे उद्देश्य को समझ नहीं पा रहे हैं.
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आयकर विभाग जांच कर रहा है
जेटली का कहना था नोटबंदी के बाद उसके संबंध में कुछ लोग टिप्पणी कर रहे हैं कि नोटबंदी का एक मात्र उद्देश्य ये था कि लोग पैसा जमा ना कराएं और पैसा जब्त हो जाएगा. जिन लोगों ने जीवन में कभी काले धन के खिलाफ जंग नहीं लड़ी, वो शायद इस पूरी प्रक्रिया का उद्देश्य समझ नहीं पाए. ये किसी का पैसा जब्त करने का उद्देश्य नहीं था. बैंकिंग सिस्टम में पैसा आ जाए तो इसका मतलब ये नहीं कि वो पूरा पैसा वैध है. इस पैसे के खिलाफ आयकर विभाग पूरी जांच करता है. यही कारण है लाखों लोगों को नोटिस पर डाला गया है. जिसका एक प्रत्यक्ष असर हुआ है कि डायरेक्ट टैक्स बेस बढ़ा है. उससे जीएसटी का प्रभाव भी बढ़ा है.
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‘हर जमा रकम वैध नहीं होती’
अरुण जेटली ने बताया कि नोटबंदी का उद्देश्य था कि टैक्स बेस बढ़े. इसका यह भी ये उद्देश्य था कि कालेधन जमा करने वाले लोगों के खिलाफ कार्यवाही हो. साथ ही व्यवस्था से जाली नोट अलग कर पाएं. साथ ही मकसद था लेस कैश व्यवस्था बनाना. साथ ही नोटबंदी से अलगाववादियों को भी आर्थिक चोट पहुंची है. आतंकवादियों के पास पैसे जब्त हुए हैं. ऐसे में पैसा व्यवस्था में आ जाए तो वो वैध पैसा नहीं हो जाता है. अरुण जेटली ने कहा कि सरकार के सारे उद्देश्य ट्रैक पर हैं.