क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड? सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगायी रोक,जाने पूरा मामला

इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) कहा कि, सर्वसम्मति से हम निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। इसपर दो राय है एक मेरी और दूसरी जस्टिस संजीव खन्ना की। दोनों ही एक ही निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। लेकिन तर्क में थोड़ा अंतर है।

यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाया। पीठ में CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना (Justice Sanjeev Khanna), जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी परदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र का नाम शामिल है।

Electoral Bond क्या है?

इलेक्टोरल बॉन्ड की घोषणा केंद्र सरकार ने 2017 में की थी। इस कानून को सरकार ने 29 जनवरी, 2018 को लागू कर दिया था। इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक माध्यम है। यह एक वचन पत्र की तरह है। जिसे भारत का कोई भी नागरिक भारतीय स्टेट बैंक के किसी भी शाखा से खरीद सकता है और गुमनाम तरीके से किसी भी पार्टी को दान दे सकता है।

किसे मिलता है इलेक्टोरल बॉन्ड

देश में सभी रजिस्टर्ड राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड मिलता है। लेकिन यहां शर्त यह है कि उस पार्टी को पिछले आम चुनाव में कम-से-कम एक फीसदी या उससे अधिक वोट मिले हों। ऐसी रजिस्टर्ड पार्टियां इलेक्टोरल बॉन्ड पाने की हकदार होंगी। सरकार के अनुसार इलेक्ट्रोल बॉन्ड के माध्यम से ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा इसके साथ ही चंदे के तौर पर दिए जाने वाली रकम का हिसाब-किताब रखा जा सकेगा।

English News

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com