क्रिप्टो पर नई सरकार ही लेगी निर्णय,अंतरराष्ट्रीय कायदा-कानून बनाने के लिए होगी विचार विमर्श!

अमेरिकी शेयर बाजार में बिटक्वाइन में निवेश की इजाजत के बाद फैसला लेने की जरूरत बढ़ी है।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो संकेत मिल रहे हैं उससे ऐसा लगता है कि जी-20 के कुछ और विकसित देशों के शेयर बाजारों में बिटक्वाइन जैसे दूसरी क्रिप्टोकरेंसी के विनिमय को इजाजत देने की तैयारी में है। आइये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

अमेरिकी शेयर बाजार की नियामक एजेंसी ने बिटक्वाइन में शेयर बाजार के जरिए निवेश की अनुमति दे कर भारत समेत उन सभी देशों को सकते में डाल दिया है जो उसके साथ मिल कर क्रिप्टोकरेंसी नियमन पर एक अंतरराष्ट्रीय कायदा-कानून बनाने के लिए विमर्श कर रहे थे।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो संकेत मिल रहे हैं उससे ऐसा लगता है कि जी-20 के कुछ और विकसित देशों के शेयर बाजारों में बिटक्वाइन जैसे दूसरी क्रिप्टोकरेंसी के विनिमय को इजाजत देने की तैयारी में है। अपनी अध्यक्षता के दौरान भारत ने इस बारे में वैश्विक सहमति बनाने की पूरी कोशिश की थी और नई दिल्ली घोषणा-पत्र में भी इसे शामिल किया गया था।

सदस्य के कुछ देशों के आगे जाने के बावजूद भारत सरकार की ऐसी कोई मंशा नहीं दिखती कि वह क्रिप्टोकरेंसी को लेकर अपने मौजूदा रूख में बदलाव करे। वैसे इस बारे में आंतरिक तौर पर सरकार के भीतर लगातार विमर्श का दौर चल रहा है।

क्रिप्टोकरेंसी को लेकर भारत का फैसला

कई जानकारों का मानना है कि क्रिप्टोकरेंसी को लेकर भारत को अब फैसला करना ही होगा क्योंकि अमेरिका में निवेश की इजाजत मिलने का विश्वव्यापी असर होगा। दुनिया के सबसे बड़े आर्थिक बाजार अमेरिका ने स्पष्ट कर दिया है कि वह इस प्रौद्योगिक आधारित निवेश विकल्प को पूरी तरह से बंद करने के बजाये इसके नियमन के पक्ष में है।

नई दिल्ली स्थित आर्थिक शोध एजेंसी जीटीआरआई की रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका में किये गये फैसले का वैश्विक फंड फ्लो, विदेशी कारोबार, सोने की कीमत पर भी असर होगा, ऐसे में भारत के लिए यह संभव नहीं है कि वह कोई फैसला ही नहीं करे।

रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि आरबीआई भी बदलेगा और नियमन के लिए कोई रास्ता निकालेगा। आरबीआइ की तरफ से इससे जुड़े जोखिम को कम करते हुए उनके नियमन के लिए प्रौद्योगिक आधारित कोई उपाय किया जा सकता है।

मनी-लांड्रिंग या संगठित अपराध में क्रिप्टो का उपयोग

आरबीआई इस बात को लेकर ज्यादा चिंतित है कि क्रिप्टोकरेंसी में निवेशकों के गुममान रहने का जो मसला है उससे मनी-लांड्रिंग या संगठित अपराध के लिए पैसा देने जैसे काम किये जा सकते हैं। अमेरिका में भी इसका कोई समाधान नहीं निकाला गया है लेकिन उसने निवेश का रास्ता खोल दिया है।

भारत में क्रिप्टोकरेंसी को वैधानिक मान्यता नहीं है। आरबीआई गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास कई मौकों पर कह चुके हैं कि इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाई जानी चाहिए। अमेरिकी शेयर बाजार में उठाये गये कदम के बाद भी उन्होंने कहा है कि हो सकता है जो दूसरों के लिए अच्छा हो वह अपने लिए अच्छा नहीं हो।

वैसे सीधे तौर पर क्रिप्टो को प्रतिबंधित करने का कोई भी कानून भारत में नहीं है लेकिन दूसरे कई नियमों के जरिए इससे उत्पन्न खतरों को कम करने की कोशिश की गई है। जैसे वर्ष 2018 में आरबीआइ ने वर्चुअल करेंसी से जुड़े किसी भी तरह की सेवा देने से बैंकों को रोक दिया था।

भारत में क्रिप्टो को प्रतिबंधित किये जाने के बावजूद केंद्र सरकार ने पिछले वर्ष क्रिप्टो से होने वाली पूंजीगत प्राप्तियों पर 30 फीसद का टैक्स लगा दिया था। मार्च, 2023 से क्रिप्टोकरेंसी को मनी-लॉड्रिंग कानून के तहत भी लाया गया है। इस अनिश्चितता के बावजूद ऐसी सूचना है कि बड़ी संख्या में भारतीय क्रिप्टो कारोबार से जुड़े हुए हैं। नई प्रौद्योगिकी की वजह से यह संभव है और सरकार ना तो इन पर प्रतिबंध लगा सकती और ना ही इन्हें निगमित कर सकती।

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