साखी सिख धर्म की स्थापना और फसल पकने के प्रतीक के रूप में मनाई जाती है। इस महीने खरीफ फसल पूरी तरह से पक कर तैयार हो जाती है और पकी हुई फसल को काटने की शुरुआत भी हो जाती है। ऐसे में किसाना खरीफ की फसल पकने की खुशी में यह त्यौहार मनाते हैं। आज ही के दिन पंजाबी नये साल की शुरुआत भी होती है।

बैसाखी का आगमन प्रकृति के परिवर्तन को दर्शाता है
बैसाखी का आगमन प्रकृत्ति के परिवर्तन को दर्शाता है। इस दिन सूर्य मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करता है। सूर्य के प्रवेश से सोलह घड़ी पहले ही पुण्यकाल शुरू हो जाएगा और 16 घड़ी बाद तक रहेगा। बैसाखी का यह खूबसूरत पर्व अलग अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। केरल में यह त्योहार ‘विशु’ कहलाता है।
बंगाल में इसे नब बर्षा, असम में इसे रोंगाली बीहू, तमिलनाडु में पुथंडू और बिहार में इसे वैषाख के नाम से जाना जाता है। बैसाखी का पर्व पंजाब के साथ-साथ पूरे उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है।
मौसम में परिवर्तन का पर्व
बैसाखी का पर्व जब आता है उस समय सर्दियों की समाप्ति और गर्मियों का आरंभ होता है। इसी के आधार स्वरूप लोक परंपरा धर्म और प्रकृति के परिवर्तन से जुड़ा यह समय बैसाखी पर्व की महत्ता को दर्शता है।
व्यापारियों के लिए भी अहम दिन
इस दिन देवी दुर्गा और भगवान शंकर की पूजा होती है। कई जगह व्यापारी लोग आज के दिन नये वस्त्र धारण कर अपने बहीखातों का आरंभ करते हैं। इस दिन देवी दुर्गा और भगवान शंकर की पूजा होती है। कई जगह व्यापारी लोग आज के दिन नये वस्त्र धारण कर अपने बहीखातों का आरंभ करते हैं।
इसी दिन हुई थी खालसा पंथ की स्थापना
बैसाखी के ही दिन 13 अप्रैल 1699 को सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। सिख इस त्योहार को सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं।
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