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इस बीच मंगलवार को शिवसेना मुख्यालय से सोशल मीडिया पर एक संदेश वायरल हुआ जिसमें कहा गया है कि यदि बीएमसी चुनाव में मनसे को बिना शर्त समर्थन देना है तो अपने उम्मीदवार न उतारें और मनसे का शिवसेना में विलय कर दें। संदेश में कहा गया है कि जिस तरह लोकसभा में नरेंद्र मोदी के समर्थन में मनसे ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था उसी तरह बीएमसी चुनाव में भी शिवसेना को बिना शर्त दे, तो मनसे पर विश्वास किया जा सकता है। अन्यथा समझा जाएगा कि मनसे ने बीजेपी की सुपारी ली है।
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पार्टी ने मराठी राष्ट्रवाद के एजेंडा तय किया और फिर 2008 में उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसक आंदोलन छेड़ दिया था। इससे 2009 के विधानसभा चुनाव में मनसे ने 13 सीटों पर जीत दर्ज की। लेकिन, 2014 के विधानसभा चुनाव में पार्टी साफ हो गई। अब तक मनसे के पूर्व विधायकों व पार्षदों सहित पार्टी के 150 से ज्यादा पदाधिकारी पार्टी छोड़ चुके हैं।
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