गलवन घाटी में 15-16 जून की रात हुई हिंसक घटना की परतें अब उखड़ना शुरू हो गई हैं। चीन की चालाकी और उसका झूठ भी अब सामने आने लगा है। सेटेलाइट से मिली तस्वीरों ने चीन के इस झूठ को सामने लाकर रख दिया है। सेटेलाइट से मिली इन तस्वीरों में 9 जून 2020 से 16 जून 2020 के बीच हुए बदलाव को आसानी से देखा जा सकता है। ये तस्वीरें इस बात का सुबूत हैं कि किस तरह से चीन के जवानों ने भारतीय सीमा में भारी मशीनरी के साथ प्रवेश किया और फिर भारतीय जवानों के मना करने पर उनसे हाथापाई भी की। इन तस्वीरों में दिखाई दे रही मशीनरी से इस बात का अनुमान लगाया जा रहा है कि शायद चीनी सैनिकों की मंशा इसकी मदद से नदी का मार्ग अवरुद्ध करना रही होगी।
14 हजार फीट की ऊंचाई पर है ये इलाका
सेटेलाइट से मिली तस्वीरों पर बात करने से पहले आपको ये भी बता दें कि गलवन समेत पूरे लद्दाख का इलाका बेहद बंजर है। यहां पर बेहद ऊंचे और भुरभुरे पहाड़ हैं। गलवन का ये इलाका इसलिए बेहद खास है क्योंकि यहां से आगे अक्साई चिन शुरू हो जाता है, जो पहले भारत के पास था लेकिन 1962 के बाद से चीन इस पर अवैध कब्जा जमाए हुए है। वर्ष 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद से ही भारत ने इस हिस्से को दोबारा अपनी सीमा में वापस लेने की मांग दोहराई है। आपको बता दें कि भारत की चीन से करीब 4056 किमी की सीमा लगती है। ये सीमा ऊंचे पहाड़, बर्फ से ढके ग्लेशियर और पूर्व में घने जंगलों से होकर गुजरती है। 15-16 जून की रात को जिस गलवन वैली में दोनों सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हुई वो जगह समुद्र से करीब 14000 फीट की ऊंचाई पर है। जून के महीने में भी रात के समय यहां का तापमान काफी नीचे होता है। सर्दी में तो यहां पर तापमान -20 तक चला जाता है।

सेटेलाइट से मिली तस्वीरों ने पकड़ा झूठ
यहां पर दोनों देशों के बीच सहमति के साथ पहले से ही सीमा निर्धारित है। इसी के तहत भारत ये कहता आया है कि चीनी सैनिकों ने अवैध रूप से भारतीय सीमा में प्रवेश किया और फिर सैनिकों पर डंडों पर कंटीले तारों से उन पर हमला किया था। हालांकि चीन बेहद शातिराना तरीके से भारत के इन दावों को झुठलाता रहा है। बीते दिनों चीन के विदेश मंत्रालय ने गलवन में सेनाओं की स्थिति और हालात की जानकारी देते हुए जो बयान दिया था उसमें गलवन को चीन का हिस्सा बताया था। इस दौरान यहां तक कहा गया कि भारतीय जवानों ने चीनी सेना में पहले घुसपैठ की और फिर हमला किया। अब इसी झूठ को सेटेलाइट से मिली तस्वीरें पकड़ रही हैं। जिन तस्वीरों का यहां पर जिक्र किया जा रहा है उन्हें प्लानेट लैब ने लिया है और इसको रॉयटर्स ने हासिल किया है।

चीन ने नदी का मार्ग बदलकर किया निर्माण
इन तस्वीरों के आधार पर विशेषज्ञों का मानना है कि इनमें गलवन घाटी में हुए बदलाव को साफतौर पर देखा जा सकता है। इसमें मशीनरी के लिए बनाया गया ट्रैक और नदी को पार करने के लिए किए गए इंतजाम भी दिखाई दे रहे हैं। इनमें सुखे और बंजर पहाड़ पर बदलाव को देखा जा सकता है।केलीफॉर्निया स्थित मिडिलबरी इंस्टिट्यूट ऑफद ईस्ट एशिया नॉनप्रोलिफिरेान प्रोग्राम के डायरेक्टर जेफरी लुइस का कहना है कि इसमें नदी को नुकसान पहुंचाकर बनाई गई सड़क को साफतौर पर देखा जा सकता है। इन तस्वीरों में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के दोनों ही तरफ वाहन खड़े दिखाई दे रहे हैं। इनमें अधिकतर वाहन चीन की तरफ से आते दिखाई दे रहे हैं। उनके मुताबिक तस्वीरों के जरिए करीब 30-40 वाहन भारत की तरफ से जबकि 100 वाहन चीन की तरफ से दिखाई दे रहे हैं। सेटेलाइट से मिली तस्वीरों में इन ऑब्जरवेशन पोस्ट का मलवा भी देखा जा सकता है। वहीं यदि इस इलाके की 9 जून को ली गई इमेज की बात करें तो वहां पर किसी भी तरह का कोई निर्माण नहीं था।

चीनी प्रवक्ता का झूठ
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के मुताबिक वो ग्राउंड पर क्या हुआ वे इससे अनजान थे लेकिन इतना तय है कि हाल के कुछ दिनों में भारतीय सैनिक चीन की सीमा में कई बार कई जगहों से दाखिल हुए। इन सैनिकों को चीन की सेना के जवानों ने भगाने की कोशिश की थी। गौरतलब है कि 1967 के बाद से गलवन में हुई घटना सबसे भीषण थी। मई से ही भारतीय सीमा पर जवान चीन की तरफ से होने वाली घुसपैठ और दुस्साहस का सामना कर रहे हैं। उन्होंने भारतीय सीमा में दाखिल होने के बाद वहां पर अस्थाई निर्माण भी किया। इन्हीं निर्माण को हटाने की वजह से तीन दिन पहले गलवन की घटना हुई थी। चीन की तरफ से यहां पर ऑब्जरवेशन टावर, टैंट बनाए गए।

1967 के बाद से नहीं चली कोई गोली
इस घटना की शुरुआत उस वक्त हुई थी जब भारत की पेट्रोल टीम रिज के दूसरी तरफ ये देखने गई थी कि चीन ने कहां तक घुसने की हिम्मत दिखाई है। इसके बाद ये जवान वहां से वापस आ गए थे। इसके बाद भारत की नाराजगी और कड़ा रुख इख्तियार करने पर चीन ने वहां से अपने कुछ टैंट और कुछ ऑब्जरवेशन पोस्ट हटा ली थीं। भारतीय जवानों ने उसनके कुछ टावर तोड़ दिए थे और टैंटों को भी नष्ट कर दिया था। तीन दिन पहले यहां पर जो घटना घटी उस दौरान समझौते के मुताबिक जवानों के पास हल्के हथियार थे। 1967 के बाद से इस पूरे क्षेत्र में कभी कोई गोली नहीं चली है। दोनों तरफ के जवान यहां पर आने से पहले अपने हथियारों को कंघे पर पीछे रखते हैं।
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