गुजरात में बीजेपी को घेरने के लिए इस बार कांग्रेस नई रणनीति के साथ उतरने की तैयारी कर रही है. लगातार 2003, 2008 और 2013 में मोदी मुख्यमंत्री के तौर पर कांग्रेस को पटखनी दे चुके हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बने तो गुजरात ने 26 की 26 सीटें बीजेपी की झोली में डाल दी. अब कांग्रेस को लगता है कि पटेल समाज की नाराजगी, बीजेपी सरकार के करीब 18 सालों की सत्ता विरोधी लहर के साथ हो मोदी का मुख्यमंत्री नहीं होना उसके हक में जा सकता है. हालांकि एक डर है जो कांग्रेस को सता रहा है. वो है, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का. दरअसल, कांग्रेस मानती है कि गुजरात के विधानसभा चुनाव रहे हों या 2014 का लोकसभा चुनाव रहा हो या फिर हाल में यूपी का विधानसभा चुनाव, इन सब में बीजेपी की सफलता की बड़ी वजह हिन्दू- मुस्लिम मतों का बंटवारा भी बनी.अभी-अभी: तेजप्रताप यादव की और भी बढ़ी मुश्किलें, चुनाव आयोग में झूठा शपथ पत्र देने का लगा आरोप
कांग्रेस अब बिहार विधानसभा चुनाव से सीख लेकर गुजरात विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही है. चुनाव में ध्रुवीकरण ना होने पाए इसलिए कांग्रेस ने गुजरात के लिए खास प्लान तैयार किया है. प्लान को इतना सीक्रेट रखा गया है कि खुलकर कांग्रेस के नेता ना ही इस पर बात कर रहे हैं और ना ही इस प्लान में उनकी कोई खुली भूमिका होगी. कांग्रेस के रणनीतिकार पर्दे के पीछे से इस रणनीति को अंजाम देंगे.
‘शांति प्लान’ तैयार
सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस गुजरात में ‘शांति प्लान’ अंजाम देने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस के नेताओं ने अल्पसंख्यक समाज के जाने माने ऐसे लोगों की सूची तैयार कर ली है, जिनकी अपने इलाके के समाज में पैठ हैं. इनके साथ ही संजीदा लोगों के छोटे छोटे ग्रुप बना दिये गए हैं और उनको उनका काम समझा दिया गया है.
ये ग्रुप मुस्लिम इलाकों में चुपचाप, बिना शोर शराबे के जाएंगे. ये लोगों को समझाएंगे कि चुनाव के वक्त आक्रामक ना हों और किसी के उकसावे में ना आएं. मतदान के दिन खास तौर पर हल्ला-हुड़दंग करके वोट देने ना जाएं. सामान्य तरीके से चुपचाप मतदान करें. हिन्दू- मुसलमान के बीच वैमनस्य फैला सकने वाली किसी घटना पर प्रतिक्रिया ना दें. कुल मिलाकर कांग्रेस की कोशिश है कि जैसे बिहार में हिन्दू- मुस्लिम वोटों के बीच ध्रुवीकरण रोका गया वैसा ही गुजरात में दोहराया जाए.
सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस को यह भी लगता है कि पिछले चुनाव में आखिर में मोदी ने सीधे मियां अहमद पटेल कहकर ध्रुवीकरण किया था. जबकि वो सीएम उम्मीदवार दूर दूर तक नहीं थे. अबकी बार भी कांग्रेस को डर है कि जिस तरह अहमद पटेल ने मोदी और अमित शाह की किलेबंदी को भेदते हुए राज्यसभा का चुनाव जीता, उसके बाद बीजेपी आखिरी मौके पर ये बात कह सकती है कि कांग्रेस मियां अहमद पटेल को बैकडोर से गुजरात का सीएम बनाना चाहती है.
इस दांव की काट के लिए खुद अहमद पटेल ने तय किया है कि वो अपने हर भाषण और साक्षात्कार में बार बार क्लियर करेंगे कि वो ना सीएम कैंडिडेट थे, ना हैं और ना होंगे. गुजरात में लगातार मोदी के हाथों हारती आई कांग्रेस अबकी बार इस नऐ तीर को भी आजमाने की तैयारी कर रही है. असल में तो गुजरात की जनता ही बताएगी कि ये तीर निशाने पर लगेगा या नहीं.