आज गुप्त नवरात्रि का छठा दिन है। इस दिन मां दुर्गा के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा-उपासना की जाती है। धार्मिक ग्रंथों में इनका नाम गौरी, काली, उमा, कात्यायनी, हैमावती और इस्वरी हैं। इस दिन साधक का मन और मस्तिष्क आज्ञा चक्र में अवस्थित होता है। गुप्त नवरात्रि के छठे दिन साधक अपनी साधना मां कात्यायनी के चरणों में समर्पित करता है।
इससे मां प्रसन्न होकर साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है। ऐसा कहा जाता है कि गुप्त नवरात्रि इच्छाओं को पूर्ण करने वाली नवरात्रि है। इस दिन साधक मां की भक्ति कठिन साधना से करते हैं, जिससे उनकी मनोकामनाएं मां अवश्य पूर्ण करती हैं। आइए, अब कात्यायनी का स्वरूप, पूजा-विधि, मुहूर्त, मंत्र एवं महत्व जानते हैं-
मां कात्यायनी का स्वरूप
मां कात्यायनी समस्त आभूषणों से सुभोषित है। इनकी सवारी सिंह है। मां का स्वरूप विहंगम और अनुपम है। मां के दर्शन मात्र से सभी प्रकार के दुःख और दर्द दूर हो जाते हैं। साथ ही जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। मां चार भुजाधारी है। इनके दो हाथ वरमुद्रा स्थिति में है। इसका अर्थ है कि मां अपने दोनों हाथ से भक्तों का कल्याण करती हैं। जबकि एक हाथ में अस्त्र है और दूसरे हाथ में कमल पुष्प है।
महत्व
ऐसा माना जाता है कि जो भक्त मां को जिस रूप में पुकारता है, मां उस रूप में प्रकट होकर भक्त का कल्याण करती हैं। मां मानव जगत का कल्याण करती है। समस्त प्राणी मात्र को संकटों से बचाती है और उनके दुःख, दर्द, रोग, संताप, शोक और भय को दूर करती हैं। अतः साधकों को मां की सेवा के लिए हमेशा आतुर रहना चाहिए। मां की कृपा से भक्तों का उद्धार होता है।
मुहूर्त
चौघड़िया पंचांग के अनुसार आप हर समय मां कात्यायनी की पूजा कर सकते है। जबकि हिंदी पंचांग के अनुसार दोपहर बाद षष्ठी है। इससे पहले पंचमी भी है। अतः साधकों के लिए यह अति शुभ दिन है।
पूजा विधि
इस दिन प्रातः काल में स्कन्दमाता की पूजा करें। जबकि दोपहर बाद मां कात्यानी की पूजा-उपासना करें। इसके लिए शाम का मुहूर्त अति उत्तम है। इस समय गंगाजल युक्त पानी से स्नान कर लें। इसके बाद मां कात्यायनी की स्तुति निम्न मंत्र से करें।
‘या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
अब मां की पूजा फल फूल, ताम्बूल, दूर्वा,धूप-दीप आदि से करें। मां को लाल रंग की चुनरी अवश्य भेंट करें। पूजा के अंत में आरती और प्रार्थना करें। साधक दिनभर व्रत रखें। शाम में आरती करने के बाद फलाहार करें।