अखिलेश सरकार की महत्वाकांक्षी योजना गोमती रिवर फ्रंट में हर कदम पर लूट हुई। अफसरों ने मनमाने ढ़ंग से परियोजना में नए-नए कामों को शामिल किया और सार्वजनिक धन का बड़े पैमाने पर अपव्यय किया गया। यह खुलासा हुआ है परियोजना की न्यायिक जांच में।
रिटायर्ड जस्टिस आलोक कुमार सिंह की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सीएम योगी आदित्यनाथ को सौंप दी है। कमेटी ने इस योजना को सार्वजनिक धन की बर्बादी की बड़ी योजना बताया है।
रिपोर्ट देखने के बाद सीएम ने आगे की कार्रवाई के लिए इसे मुख्य सचिव को सौंप दिया है। इस परियोजना में अखिलेश सरकार के कई अफसरों का फंसना तय माना जा रहा है।
इस मामले में शुरूआती जांच में घपला मिलने पर योगी सरकार ने प्रोजेक्ट से जुड़े एक सहायक अभियंता को निलंबित कर दिया था। साथ ही जांच पूरी होने तक परियोजना के लिए किसी भी तरह का फंड जारी करने पर रोक भी लगा दी।
अखिलेश के अफसरों तक जांच की आंच
सरकार के सूत्रों के मुताबिक, जांच की आंच सपा सरकार के कई आला अधिकारियों तक पहुंच गई है। इस प्रोजेक्ट से जुड़े सिंचाई विभाग के अधिकतर इंजीनियरों का नपना भी तय है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दोषियों ने खिलाफ कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
ये है जांच रिपोर्ट में
सूत्रों के मुताबिक, जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं अपनाई गई। जल्दबाजी में चहेते ठेकेदारों को काम दे दिया गया। पारदर्शी प्रक्रिया होती तो कम लागत आती।
वाटर बस और फव्वारों से लेकर जरूरत का हर सामान काफी महंगी दरों पर खरीदा गया, ताकि कमीशनखोरी से परियोजना से जुड़े आला अधिकारियों और अन्य लोगों की जेबें भर सकें।
डीपीआर बनाने में भी गड़बड़ की गईं। राजधानी में तो इसे साफ करने के लिए भारी-भरकम राशि का प्रोजेक्ट स्वीकृत किया गया, पर यहां से महज 8 किलोमीटर आगे निकलते ही गोमती में मिलने वाले नालों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
जांच कमेटी में शामिल बीएचयू के प्रोफेसर यूके चौधरी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि प्रोजेक्ट में तकनीकी मानदंडों का रत्तीभर भी ख्याल नहीं रखा गया। वहीं आईएमएम के प्रोफेसर एके गर्ग ने फिजूलखर्ची को सुबूतों के साथ सामने रखा है।