गोरखपुर व फूलपुर लोकसभा क्षेत्रों के हाई प्रोफाइल उपचुनाव में विपक्षी दलों की सोशल इंजीनियरिंग की जीत हुई है। दोनों सीटों पर सपा ने जातीय समीकरणों को वोटों में तब्दील किया। सपा के लिए बसपा व अन्य दलों का समर्थन टर्निंग पॉइंट रहा। इससे पिछड़ा-दलित गठजोड़ बनाने में मदद मिली। उपचुनावों के नतीजों से उत्साहित विपक्षी दलों का महागठबंधन बना तो 2019 में सत्तारूढ़ भाजपा के सामने कड़ी चुनौती पेश आ सकती है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफों से खाली हुई लोकसभा सीटों को छीनकर विपक्ष, खासतौर से सपा ने भाजपा को तगड़ा झटका दिया है। सपा की जीत इसलिए और अहम हो जाती है कि इन सीटों पर 2014 में भाजपा ने तीन-तीन लाख से ज्यादा मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी। सपा ने गोरखपुर व फूलपुर संसदीय उपचुनाव के लिए सोशल इंजीनियरिंग को दुरुस्त किया। सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखकर पिछड़े वर्ग की निषाद व कुर्मी बिरादरी के प्रत्याशी उतारे।
गोरखपुर में निषाद तो फूलपुर क्षेत्र में कुर्मी (पटेल) समाज के वोट सर्वाधिक हैं। यही निषाद और पटेल समाज 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में मजबूती से खड़ा हुआ था। इनका रुझान भाजपा से हटकर सपा की तरफ होते ही नतीजों का रुख बदल गया। बसपा ने सपा उम्मीदवारों का समर्थन करके सपा की सोशल इंजीनियरिंग को मजबूत कर दिया। इससे सपा को पिछड़ा, दलित व काफी हद तक मुस्लिम गठजोड़ बनाने में मदद मिली। यही समीकरण भाजपा पर भारी पड़ गया।
जातीय लामबंदी ने जीत की नींव तैयार की
गोरखपुर में निषाद के अलावा दलित, यादव और मुस्लिम मतों की तादाद सबसे ज्यादा है। साथ ही कुछ अन्य पिछड़ी जातियों का बड़ा हिस्सा सपा के पक्ष में लामबंद दिखाई दे रहा था। फूलपुर में पटेल के बाद मुस्लिम, यादव, दलित व अन्य पिछड़े वोटों की अच्छी संख्या है। सपा ने इन्हें जोड़ने पर पूरा ध्यान दिया। सपा का चुनाव अभियान भी दलितों, पिछड़ों के इर्द-गिर्द सिमटा रहा।
अखिलेश ने खुद कहा, उनके (भाजपा के) जातिवाद को सोशल इंजीनियरिंग कहा जाता था। अब हम भी पिछड़े हो गए हैं। हम प्रोगेसिव पिछड़े हैं। पहले वे सोशल इंजीनियरिंग करते थे, अब हम कर रहे हैं। नतीजों ने उनकी सोशल इंजीनियरिंग पर मुहर लगा दी। सपा ने जाति के साथ ही उप जाति और लोकल पिछड़ा बनाम बाहरी पिछड़ा तक के सामाजिक अतर्विरोधों को भुनाया। फूलपुर में सपा के नागेंद्र पटेल स्थानीय और भाजपा के कौशलेन्द्र पटेल बाहरी उम्मीदवार थे।
अतीक फैक्टर नहीं आया काम
फूलपुर सीट पर पूर्व सांसद अतीक अहमद ने जेल में रहते हुए चुनाव लड़ा। आरोप लगे कि पर्दे के पीछे से भाजपा अतीक का समर्थन कर रही है। भाजपा मान रही थी कि अतीक जितनी मजबूती से चुनाव लड़ेंगे, उसे उतना ही लाभ मिलेगा। हालांकि अतीक को 40 हजार से ज्यादा वोट मिले लेकिन बहुसंख्यक मुसलिम सपा के पक्ष में रहे। गोरखपुर में कांग्रेस की डॉ. सुरहिता करीम के बजाय मुसलमानों ने सपा के प्रवीण निषाद का साथ दिया।
भाजपा की चुनौती बढ़ी, विपक्षी दल पास
सपा को बसपा, रालोद, पीस पार्टी, निषाद पार्टी, वामपंथी दलों, पीएमएसपी समेत अन्य छोटे दलों ने समर्थन दिया था। इसे 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों के महागठबंधन का रिहर्सल माना जा रहा है। इस रिहर्सल में विपक्षी दल पास हुए हैं। संभावना है कि सपा-बसपा व अन्य दल इस प्रयोग को 2019 के लोकसभा चुनाव में दोहरा सकते हैं। विपक्षी दलों का महागठबंधन बना तो दलित, पिछड़ों व अल्पसंख्यकों के समीकरण से भाजपा की चुनौती बढ़ सकती है।
गोरखपुर व फूलपुर की जीत देश के लिए राजनीतिक संदेश
वहीं, सपा अध्यक्ष एवं पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने उपचुनाव में मिली विजय को सामाजिक न्याय की जीत बताया है। उन्होंने देश की अहम लड़ाई में सहयोग एवं समर्थन के लिए सभी दलों के साथ ही बसपा सुप्रीमो मायावती का खासतौर पर आभार जताया। अखिलेश ने कहा कि गोरखपुर व फूलपुर की जीत देश के लिए राजनीतिक संदेश हैं। यूपी वैसे भी देश के लिए संदेश देता है। गोरखपुर मुख्यमंत्री का क्षेत्र है, कई सालों से उन्हें किसी ने हराया नहीं था। दूसरा क्षेत्र उप मुख्यमंत्री का है। उनके क्षेत्रों की जनता में इतनी नाराजगी है तो देश के आम चुनाव में क्या होने वाला है, समझा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि किसानों की कर्जमाफी नहीं हुई, नौजवानों को रोजगार नहीं मिला, नोटबंदी व जीएसटी से व्यापार चौपट हो गया, रोजगार छिन गए, भय का वातावरण बना हुआ है। किसी सरकार ने संविधान और कानून की ऐसी धज्जियां नहीं उड़ाईं, जैसी भाजपा सरकार ने उड़ाई हैं।
अखिलेश ने कहा, सीएम व भाजपा नेताओं ने सपा नेताओं व बसपा सुप्रीमो के लिए क्या-क्या अपमानजनक बातें नहीं कहीं। सपा को बसपा ने समर्थन दिया तो इसे सांप-छछूंदर का गठबंधन बताया, चोर-चोर मौसेरा भाई और सपा को औरंगजेब तक की पार्टी कहा। मुझे खुशी है कि गरीबों, किसानों, दलितों की मदद से ऐतिहासिक जीत मिली।
खत्म नहीं हुई भाजपा की परीक्षा, कैराना व नूरपुर भी चुनौती
भाजपा की परीक्षा का दौर खत्म नहीं हुआ है। भाजपा के सामने लोकसभा की कैराना और विधानसभा की नूरपुर सीट के रूप में सामने एक और परीक्षा खड़ी है। गोरखपुर और फूलपुर संसदीय सीटों के उपचुनाव के नतीजों को देखते हुए यह परीक्षा अधिक चुनौतीपूर्ण मानी जा रही है। लोकसभा की कैराना सीट पर भाजपा के हुकुम सिंह 2014 में जीते थे।
पिछले दिनों उनकी मृत्यु के कारण यह सीट खाली हो चुकी है। विधानसभा की नूरपुर सीट से भाजपा के विधायक चुने गए लोकेंद्र सिंह चौहान का भी पिछले दिनों सड़क हादसे में निधन हो गया। निकट भविष्य में इन दोनों ही सीटों पर उपचुनाव होना है। जिस तरह गोरखपुर व फूलपुर में बसपा के समर्थन ने सपा के लिए जीत की राह आसान बनाई है, उससे तय है कि कैराना व नूरपुर में विपक्ष और अधिक एकजुट होकर तथा बढ़े मनोबल के साथ भाजपा का मुकाबला करने उतरेगा।
ध्यान रखने वाली बात यह भी है कि कैराना व नूरपुर में मुस्लिम और दलित समीकरण काफी मजबूत हैं। कैराना में लगभग 40 प्रतिशत प्रतिशत आबादी दलितों और मुसलमानों की है। नूरपुर में भी 35 प्रतिशत दलित और मुस्लिम हैं।
फूलपुर और गोरखपुर में बसपा के समर्थन से इन वर्गों का वोट सपा को जाने के बाद यह तय हो गया है कि विपक्ष कैराना और नूरपुर में भी यही प्रयोग आजमाएगा। जाहिर है कि इससे भाजपा की मुश्किलें बढ़ेंगी।
16 लोकसभा चुनावों में से 9 चुनाव गोरक्षपीठ के भाजपा उम्मीदवार जीते
गोरखपुर संसदीय क्षेत्र गोरक्षपीठ के जरिए भाजपा का गढ़ रहा है। 16 लोकसभा चुनावों में से 9 चुनाव गोरक्षपीठ, पीठ के भाजपा उम्मीदवार ने जीते। गोरक्षनाथ पीठ के तत्कालीन महंत दिग्विजयनाथ ने 1967 में निर्दलीय चुनाव जीतकर पहली बार गोरखपुर में पीठ का परचम फहराया था। गोरखपुर क्षेत्र 1989 से गोरक्षनाथ पीठ के तत्कालीन महंत अवैद्यनाथ ने हिन्दू महासभा के बैनर पर चुनाव जीता।
1991 में अवैद्यनाथ ने भाजपा में शामिल होकर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा। अवैद्यनाथ 1991 और 1996 में भाजपा सांसद रहे। 1998 में अवैद्यनाथ ने योगी आदित्यनाथ को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित करते हुए उन्हें 1998 में चुनाव लड़ाया।
योगी आदित्यनाथ 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में सांसद रहे। योगी ने भी 2014 में सर्वाधिक रिकार्ड 3,12,783 मतों से चुनाव जीता था। 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उप चुनाव में पीठ और भाजपा दोनों सीट नहीं बचा सके।
फूलपुर : पांच साल भी कब्जा नहीं रहा बरकरार
आजादी के बाद पहली बार 2014 में मोदी लहर के बूते फूलपुर क्षेत्र में रिकॉर्ड मतों से जीती भाजपा पांच साल भी इस पर कब्जा बरकरार नहीं रख सकी। 1996 से 2004 तक चार लोकसभा चुनाव में फूलपुर पर काबिज रहने वाली सपा ने फिर सीट पर कब्जा जमा लिया है।
पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के संसदीय क्षेत्र फूलपुर में भाजपा ने पहली बार 2014 में ही जीत हासिल की थी। केशव प्रसाद मौर्य 3,12,783 मतों से चुनाव जीते थे, जो फूलपुर के चुनावी इतिहास में सबसे बड़ी जीत थी।
पंडित नेहरू 1957 और 1962 में फूलपुर से सांसद चुने गए। सीट 1957 से 1971 तक और 1984 में कांग्रेस के पास रही। 1971 में पूर्व पीएम वीपी सिंह ने चुनाव जीता था। 1980 में पहली बार जनता पार्टी (एस) के बीडी सिंह जीते। 1989 और 1991 में सीट जनता दल के पास गई। 2009 में पहली बार बसपा के कपिलमुनि करवरिया विजयी हुए थे।