विघ्न विनाशक, विघ्नहर्ता गणपति अब घर-घर विराजेंगे। इस वर्ष 13 सितंबर गुरुवार को गणेश चतुर्थी के दिन घरों में गणेश प्रतिमा की स्थापना के साथ देश में त्योहारी सीजन की शुरुआत होगी। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के साथ आरंभ होने वाली विनायक पूजा 23 सितंबर तक चलेगी। प्रतिदिन सुबह-शाम भगवान की पूजा-अर्चना होगी और मोदक का भोग लगाया जाएगा। साथ ही सुख, समृद्धि, आरोग्य की कामना की जाएगी। देश के कई राज्यों में विशाल पंडालों में गणेश प्रतिमाओं को स्थापित किया जाएगा। खास तौर पर महाराष्ट्, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में यह उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। इन राज्यों के बाद अब उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, झारखंड, हरियाणा व अन्य में भी गणेश चतुर्थी पर प्रतिमाएं स्थापित करने की परंपरा आरंभ हो गई है।
पीओपी और प्लास्टिक प्रतिमाएं डालेंगी खराब असर
गणेश प्रतिमाओं को लेकर बाजार सजे हुए हैं। बाजारों और चौराहों पर गणेश प्रतिमाएं उपलब्ध हैं। जो देखने में बेहद आकर्षक हैं और अलग-अलग आकार में हैं। गणेश चतुर्थी के दिन प्रतिमा स्थापना के साथ दसवें दिन 23 सितम्बर को प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाएगा। हालांकि अपनी-अपनी सुविधानुसार लोग तीन, पांच और सात दिन में भी गणपति विसर्जन करते हैं। यह विसर्जन समुद्र, नदियों, नहरों और तालाबों में होगा। लाखों प्रतिमाएं जल समाधि लेंगी। पूजन सामग्री नदी की जलधारा में प्रवाहित होगी। अब यह भी जानना जरूरी हो जाता है कि ईको फ्रेंडली प्रतिमा का ही चयन करना क्यों जरूरी है-
– इस समय बाजार में उपलब्ध ज्यादातर प्रतिमाएं प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) और प्लास्टिक से बनी हैं और उन पर स्वास्थ्य के लिए खतरनाक रसायनिक रंगों का इस्तेमाल किया गया है।
– पीओपी और प्लास्टिक से बनी प्रतिमाएं जल में विसर्जित होने के बाद आसानी से घुलती नहीं। घुल भी जाएं तो पीओपी नदी अथवा तालाब की सतह पर जमा हो जाती है। रसायनिक रंग जल में शामिल हो जाते हैं। बाद में इसी जल का इस्तेमाल पीने, खाना पकाने और नहाने जैसे कार्यों के लिए किया जाता है।
– जल शोधन प्रक्रिया के दौरान इस दूषित जल को किसी भी माध्यम से पीने योग्य नहीं बनाया जा सकता। यदि इस जल का सेवन कर लिया तो बीमार होना तय है।
– कृषि प्रधान देश में बड़ी संख्या में किसान नदी, नहर और तालाबों के जल का प्रयोग सिंचाई के लिए करते हैं। यही दूषित जल खेतों में पहुंच फसलों को प्रभावित करता है। सब्जियों और अनाज के रूप में हानिकारक तत्व भी आपकी रसोई तक पहुंचते हैं।
– अगर लगातार यह परंपरा यूं ही चलती रही तो आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य पर गंभीर परिणाम देखने को मिलेंगे।
करीब 600 करोड़ का कारोबार
गणेश प्रतिमाओं का ही देशभर में इन 10 दिन की अवधि में करीब 600 करोड़ रुपये का कारोबार रहेगा। चीन से भी इस त्योहार के लिए प्लास्टिक से बनी मूर्तियों का भारतीय बाजार आयात किया जाता है। वहीं प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की एक फीट से लेकर 10-12 फीट ऊंची प्रतिमाएं बाजार में उपलब्ध हैं। मूर्ति विक्रेता रामनरेश यादव का कहना है कि एक फीट की प्रतिमा 200 से 250 रुपये की है। वहीं 10 फीट की प्रतिमा की कीमत 6000 रुपये तक की है। प्रतिमा पर की गई कलाकारी, सजावट और उसके वजन के हिसाब से दाम तय होते हैं। छोटी प्रतिमाओं की बिक्री ज्यादा है। गणेश चतुर्थी से एक दिन पहले खरीदारों की भीड़ लगी रही। जबकि बड़ी प्रतिमाओं के खरीदार आरडब्यूए, अपार्टमेंट, कॉलोनियों और सोसाइटियों से ज्यादा हैं। पूरे अपार्टमेंट में एक विशाल प्रतिमा स्थापित कर 10 दिन तक लगातार पूजा आयोजित होगी। वहीं महाराष्ट् एवं छत्तीसगढ़ में विशालकाय प्रतिमाएं पूजा-पंडालों में सजेंगी। इन्हें बनाने के लिए विशेष रूप से कारीगर बुलाए जाते हैं, जो तरह-तरह की सामग्री से प्रतिमाओं का निर्माण करते हैं।
ईको फ्रेंडली गणपति से कैसे मिलेंगी खुशियां
सबसे बेहतर यही है कि पुराने समय से चली आ रही मिट्टी की प्रतिमाओं को ही चुना जाए। इसके पीछे वजह है कि यह प्रतिमाएं पानी में तेजी से घुलनशील हैं। साथ ही इनको सजाने संवारने में कच्चे रंगों का प्रयोग किया जाता है। इनको बनाने में पंरपरागत रूप से आज भी कलाकार जुटे हैं। ये प्रतिमाएं पीओपी से बनी मूर्तियों के मुकाबले थोड़ी महंगी जरूर हो सकती हैं, लेकिन पर्यावरण के लिए नुकसानदायक नहीं। यही भगवान गणेश का भी वरदान साबित होंगी, जो आने वाली पीढ़ियों और पर्यावरण को सालों-साल तक सुरक्षित रखेंगी।
सक्रिय हो गईं पर्यावरण संरक्षण संस्थाएं
गणेश चतुर्थी के अवसर पर पर्यावरण संरक्षण संस्थाएं भी सक्रिय हो गई हैं। वे नागरिकों को जागरुक कर रही हैं कि पीओपी और प्लास्टिक से बनी प्रतिमाओं का प्रयोग न करें। सामाजिक एवं पर्यावरण संबंधी संस्था लोकस्वर के अध्यक्ष राजीव गुप्ता ने बताया कि आस्था से जुड़ा यह मसला है इसलिए किसी की भावनाओं को आहत करना हमारा उद्देश्य नहीं। हमारी अपील यह है कि मिट्टी से बनी प्रतिमाओं को अपनाया जाए। साथ ही जिला प्रशासन से भी यह अपेक्षा है कि विसर्जन के दिन नदी किनारे छोटे ताल बनाकर प्रतिमाएं विसर्जित कराई जाएं। इसके दो लाभ होंगे। पहला यह कि नदी का पानी दूषित नहीं होगा और दूसरा नदी में लोगों के डूबने की घटनाएं नहीं होंगी। साथ ही लोग पूजन सामग्री नदी या घाटों पर छोड़ जाते हैं। उसकी तुरंत सफाई कराई जाए।
बीते बरसों में गणेश चतुर्थी पर पीओपी से बनी मूर्तियों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की मांग उठती रही है। प्रयास किए गए, लेकिन ये व्यर्थ साबित हुए। इस तरह के प्रतिबंध को लागू करने में सबसे बड़ी बाधा यह है कि पर्यावरण पर पीओपी के प्रभाव पर कोई निश्चित और व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन नहीं है। भोपाल, जबलपुर और बेंगलुरु जैसे स्थानों में मूर्ति विसर्जन के प्रभाव पर हुए अध्ययन भारी धातुओं, अपशिष्ट ठोस और एसिड सामग्री घुलनशील ऑक्सीजन की एक बूंद की तीव्रता में तेज वृद्धि जैसे कई महत्वपूर्ण प्रभाव दिखाते हैं। पीओपी पर रसायनिक रंगों का प्रभाव भारी हो सकता है। विसर्जन के दौरान पानी की गुणवत्ता में पहले और बाद में किए गए अध्ययन में खतरनाक भारी धातुओं जैसे लैड, पारा और कैडमियम में वृद्धि दर्ज हुई है। जर्नल ऑफ एप्लाइड साइंसेज एंड एन्वायरमेंटल मैनेजमेंट में प्रकाशित वर्ष 2007 के अध्ययन में भोपाल के ऊपरी झील में विसर्जन से भारी धातुओं की सांद्रता 750 फीसद बढ़ी हुई दर्ज की गई थी।