चिकनगुनिया मादा एडीज मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारी है। इसके मच्छर ज्यादातर दोपहर में काटते हैं। मच्छरों की लार में मौजूद चिकनगुनिया वायरस शरीर में पहुंचकर बीमारी का कारण बनता है। बीमारी का सबसे अधिक दुष्प्रभाव लिवर पर पड़ता है। जिससे लिवर में पित्त रस बनना बंद हो जाता है। जो पाचनतंत्र से जुड़े विकार दूर करता है।
लक्षण जोड़ों में तेज दर्द, बुखार, कमजोरी, शरीर में सूजन, खुजली, पसीना न आना, बेचैनी, सर्दी-खांसी होना और खाने में स्वाद न आना जैसी परेशानी होती है। बढ़ाएं शरीर की इम्यूनिटी यह बीमारी बरसात के मौसम में शुरू होती है। इससे बचने के लिए जुलाई की शुरुआत में फलात्रिकादीकसाय का काढ़ा तीन दिनों तक सुबह-शाम लें। इसमें आठ औषधि हरड़, बहेड़ा, आंवला, कुटकी, चिरायता, वासापत्र, नीमपत्र व गिलोय होता है।
यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर चिकनगुनिया, डेंगू, मलेरिया के साथ शुगर और पीलिया के मरीजों को भी लाभ पहुंचाता है। ऐसे बनाएं फलात्रिकादीकसाय काढ़ा हरड़, बहेड़ा, आंवला, कुटकी, चिरायता, वासापत्र, नीमपत्र और गिलोय को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण तैयार कर लें। रोजाना १० ग्राम चूर्ण मात्रा लेकर एक गिलास पानी में उबालें। एक चौथाई पानी बच जाए तो गुनगुना पिएं।
बीमार हैं तो लें ये दवा बुखार में –
त्रिभुवन कीर्ति की एक गोली और दो-दो ग्राम गोदांति भस्म व लालीसादि चूर्ण दिन में दो बार सात दिनों तक लें। जोड़ों में दर्द – योगराज गुग्गल की दो व विषतिंदूक वटी की एक गोली सुबह-शाम लें। साथ में पंच गुण तेल जोड़ों पर लगाएं। बचाव पानी को उबाल कर ही पिएं। इसमें लौंग या नीम पत्ती भी मिला सकते हैं। ये जीवाणुनाशक होते हैं। ठंडा, बासी और प्रिजर्वेटिव मिला फूड न खाएं।
जूस में केवल अनार, पपीता और सेब का ही उपयोग करें। मौसमी और संतरे के जूस से दूर रहें। ये फल खट्टे और ठंडे होते हैं जो गले में खराश पैदा कर सकते हैं। मुनक्का और खजूर अधिक लें, ये शरीर में ऊर्जा और ब्लड में लाल रक्त कणिकाओं की संख्या बढ़ाते हैं। चावल की जगह दूध-दलिया या मंूग की खिचड़ी खाएं। नीम गिलोय, नीम कोपल, तुलसी के पत्ते लेते रहें। मच्छरों से बचाव के लिए घर में नीम पत्ती और गुग्गल का धुआं करें।