अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत के विकास और प्रधानमंत्री मोदी की खुलकर प्रशंसा करने के बाद अमेरिका के पूर्व सीआईए विशेषज्ञ ने संभावना जताई है कि अगले सप्ताह से मनीला में शुरू हो रहे एशिया पेसिफिक इकोनॉमिक कोऑपरेशन (एपेक) शिखर सम्मेलन में ट्रंप भारत को इस संगठन का 21वां सदस्य बनाने का पुरजोर समर्थन करेंगे।
वाशिंगटन स्थित जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में एशियाई अध्ययन के प्रोफेसर और पूर्व में सीआईए के उच्च रैंकिंग विशेषज्ञ डेनिस विल्डर ने कहा कि मनीला में ट्रंप और नरेंद्र मोदी भी साथ-साथ होंगे। उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी के बीच बेहद अच्छे ताल्लुकात हैं और जब वे मनीला में मिलेंगे तो एपेक पर चर्चा जरूर करेंगे।
इस दौरान अमेरिका, भारत को एपेक के सदस्य देश के बतौर शामिल करने का महत्वपूर्ण कदम उठाएगा। खासतौर पर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत के बीच बनने वाली धुरी को देखते हुए इन देशों में काफी निकटता आ गई है। एपेक में भारत के शामिल होने पर अमेरिका का समर्थन सिर्फ मोदी सरकार के प्रति ट्रंप प्रशासन का एक बड़ा संकेत ही नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि यह एक ऐसा कदम भी होगा जो भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देगा और भारत को चीन के साथ संबंधों में तुलनात्मक दृष्टि से और मजबूत करेगा।
विल्डर ने कहा कि एपेक में भारत को शामिल करने की अमेरिकी रणनीति का मकसद सामरिक भी है क्योंकि ऐसा होने पर भारत को चीन के मुकाबले खड़ा करने में मदद मिलेगी। एपेक एशिया-प्रशांत इलाके में आपसी आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देता है।
नई ताकत बनकर उभरेंगे चार लोकतांत्रिक देश
भारत को एपेक की पूर्णकालिक सदस्यता के अतिरिक्त ट्रंप प्रशासन मालाबार नौसेना अभ्यास के विस्तार को लेकर भी उत्सुक है, जिसमें भारत, जापान और अमेरिका शामिल हैं। पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान मनीला में भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच चतुष्कोणीय बैठक की भी उम्मीद है।
ये चार क्षेत्रीय लोकतंत्र मिलकर दक्षिण एशियाई सागर से पूरे भारत और अफ्रीका के बीच मुक्त व्यापार और रक्षा सहयोग के रूप में एक नई ताकत बनकर उभर सकते हैं।
भारत से करीबी रक्षा संबंध के इच्छुक हैं ट्रंप
सीआईए के पूर्व विशेषज्ञ डेनिस विल्डर ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के भारत-प्रशांत वैश्विक दृष्टिकोण के मुताबिक ट्रंप प्रशासन बहुत जल्द भारत के साथ भी एक करीबी रक्षा संबंध पेश करने जा रहा है। इसके तहत भारत को अमेरिका सिर्फ सैन्य घटकों की ही पेशकश नहीं करेगा बल्कि इसमें आर्थिक, भू-राजनीतिक और सांस्कृतिक घटकों को भी शामिल करेगा। इससे वाशिंगटन और नई दिल्ली के बीच मजबूत रणनीतिक साझेदारी का विकास होगा।