नई दिल्ली : LOC पर चीन और PKAISTAN की तरफ से हलचल बढ़ने के बाद अब INDIA भी जंग की तैयारी में है। RUSSIA इस तैयारी में उसकी मदद करेगा।
भारत कुछ ही हफ़्तों में रूस के साथ अपने रक्षा सहयोग को आगे बढ़ाते हुए एक और बड़ा रक्षा ख़रीद अनुबन्ध करने जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि भारत का रक्षा मन्त्रालय रात के अन्धेरे में देखने वाली थर्मल दूरबीनों और दुश्मन का मुक़ाबला करने के लिए अर्ध-स्वचालित निर्देशित हथियारों से लैस अत्याधुनिक टी-90 टैंकों के नवीनतम संस्करण को खरीदने में दिलचस्पी दिखा रहा है।
भारत की सेना ने रक्षा ख़रीद परिषद के सामने इस सिलसिले में एक प्रस्ताव रखा है। आजकल इस सौदे पर रक्षा ख़रीद परिषद की मोहर लगने की प्रतीक्षा की जा रही है।
इण्डियन मिलिट्री रिव्यू के मुख्य सम्पादक रिटायर मेजर जनरल आर० के० अरोड़ा का कहना है — हम अभी तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि हमारा अपना लड़ाकू टैंक किस तरह का होगा। फिर, अर्जुन-2 टैंक के विकास में कुछ समय भी ज़्यादा लग रहा है। इस तरह जब तक हम ख़ुद अपने टैंकों का विकास करेंगे, तब तक की क़रीब पाँच साल की अवधि के लिए हमें कुछ टैंकों की ज़रूरत है।
इसलिए सीमित मात्रा में हम टी-90 टैंक ख़रीदना चाहते हैं। अभी हमें कम से कम 800 टैंकों की ज़रूरत है। लेकिन हमारी सरकार ने तय किया है कि वह 460 टैंक अधिक ख़रीदेगी। इस तरह हमें क़रीब 1300 टी-90 टैंकों की ज़रूरत होगी।
इन अतिरिक्त 460 टी-90 टैंकों की क़ीमत अधिक से अधिक 2 अरब 10 करोड़ डॉलर के लगभग होगी और इनका निर्माण ’मेक इन इण्डिया’ कार्यक्रम के तहत भारत में किया जा सकेगा। समाचार समिति स्पूतनिक का कहना है कि भारत का आर्मी डिजाइन ब्यूरो इन टी-90 टैंकों का डिजाइन तैयार कर सकता है और भारत में इन टैंकों का उत्पादन किया जा सकता है। तमिलनाडु की हैवी व्हीकल फैक्टरी में पहले भी टी-90 टैंकों की जुड़ाई की गई थी। इस फ़ैक्टरी में टी-72 टैंकों का उत्पादन भी किया जाता है।
लेकिन अभी तक यह तय नहीं किया गया है कि अतिरिक्त रूप से ख़रीदे जाने वाले टी-90 टैंकों का उत्पादन भारत में ही हैवी व्हीकल फ़ैक्टरी में किया जाएगा या उनके उत्पादन की ज़िम्मेदारी निजी क्षेत्र की कम्पनियों को दे दी जाएगी।
रिटायर हो चुके ब्रिगेडियर रुमेल दहिया ने, जो भारत के रक्षा और सुरक्षा विश्लेषण संस्थान के उपमहानिदेशक हैं, इस सौदे पर अपने विचार रखते हुए कहा — शुरू में हमने रूस के साथ टी-90 टैंकों को ख़रीदने के बारे में जो मूल समझौता किया था, उसके अनुसार रूस हमें इस टैंक के उत्पादन की तकनीक भी सौंप देगा। इसमें कुछ समय लगा, लेकिन अब यह तकनीक हमें मिल चुकी है। इसलिए यह भी सम्भव है कि हम ख़ुद ही इन टैंकों का उत्पादन करेंगे। टैंक के ज़्यादातर हिस्सों का उत्पादन भारत में किया जा सकता है और कुछ हिस्सों का आयात करके हम टैंक की जुड़ाई भारत में ही कर सकते हैं। बाद में धीरे-धीरे हम टैंक के सभी हिस्सों का उत्पादन भारत में शुरू कर सकते हैं।