चुनावी वीडियो में दिखेगा अखिलेश यादव का परिवार और कम्प्यूटर, मुलायम नदारद

लखनऊ: वर्ष 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद समाजवादी पार्टी को बहुमत मिलने पर यादव परिवार और सरकार का नया चेहरा बनाए गए अखिलेश यादव के लिए वर्ष 2017 के चुनाव से पहले जारी यादवों की अंदरूनी लड़ाई ही सत्ता से बेदखल होने का खतरा पेश करती नज़र आ रही है…
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सोमवार को अखिलेश उनके जन्मदिन पर उनकी बड़ी बेटी टिम्सी द्वारा बनाए केक का टुकड़ा चख रहे थे, जब बेहद चतुराई से विवादों से पल्ला बचाते हुए उन्होंने कहा, “मैं उस घोड़े की तरह दौड़ शुरू कर रहा हूं, जिसकी आंखों पर ब्लिंकर (पट्टी, जिसकी वजह से घोड़ा सिर्फ सीधा देख पाता है) बंधे हैं… मुझे आने वाले चुनाव के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है…”

अखिलेश यादव चुनाव अभियान के लिए तैयार किए गए खास रथ (जो वास्तव में एक बस है, जिसका रूप ज़रूरत के हिसाब से बदला गया है) पर बैठकर 3 नवंबर को चुनावी बिगुल बजाएंगे, और कई हज़ार किलोमीटर की यात्रा करेंगे… किस रास्ते पर जाकर किन मुद्दों पर प्रचार किया जाएगा, यह अभी गुप्त रखा गया है…
इस अभियान के लिए ऐसा कुछ खास भी तैयार किया गया है, जो आमतौर पर समाजवादी पार्टी के स्टाइल से मेल नहीं खाता है – एक वीडियो और एक ऑडियो… वीडियो में सिर्फ अखिलेश यादव नज़र आ रहे हैं, उनके पिता व पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव या पार्टी का कोई भी अन्य नेता नहीं…

दोनों ही क्लिप एक बेटे के ‘योद्धा’ पिता की छत्रछाया से बाहर निकलने की गवाही दे रही हैं, और इस बात की भी कि पार्टी की अपील ‘यादवों’ के सिमटे हुए बक्से से बाहर तक पहुंच चुकी है… यह वीडियो इस लिहाज़ से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में हमेशा से जातियों और समुदायों की ‘कड़ाही खौलती’ रही है, और किसी भी नेता या पार्टी ने इस तरह वीडियो के ज़रिये दिलों को छूने की कोशिश पहले कभी नहीं की…
इसका नेतृत्व कर रहे हैं अखिलेश, जिन्होंने वर्ष 2012 से अब तक अपने आईपैड पर काम करते-करते कम्प्यूटरों से चिढ़ने वाली समाजवादी पार्टी को उस दल में तब्दील कर दिया, जो पढ़ने वालों को लैपटॉप बांटती है…

वीडियो शुरू होते ही सुनाई देता है – “मैं हर रोज़ उत्तर प्रदेश के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए खुद को तैयार करता हूं…”, और फिर दिखाई देते हैं नाश्ते की मेज़ पर पत्नी डिंपल और बच्चों के साथ बैठे अखिलेश यादव… वीडियो का थीम है – परिवार, लोग, प्रगति, और अंत में संदेश दिखता है – “उत्तर प्रदेश, भारत… मेरा परिवार…”


तीन मिनट से कुछ ज़्यादा समय का यह वीडियो कई घंटे की फुटेज में से छांट-छांटकर बनाया गया है… और वह फुटेज ली गई थी ड्रोन कैमरों सहित कई खास कैमरों से, जिन्हें कुछ विशेषज्ञ कई दिन तक अपने साथ लेकर अखिलेश के साथ-साथ, और पीछे-पीछे भी घूमे…
 
मर्सिडीज़ एसयूवी में सवार होकर मुख्यमंत्री के कार्यालय तक जाना एक ऐसा दृश्य है, जो समाजवादी पार्टी के इतिहास से बिल्कुल अलग है, क्योंकि अब तक यही समझा जाता रहा है कि खादी को छोड़कर अगर कुछ भी महंगा इस्तेमाल किया, तो चुनाव में भारी पड़ेगा…

इसके बाद चमचमाते नए ऑफिस में बैठे अखिलेश कुछ उदास-से दिखते हैं, और खिड़की से बाहर ठीक सामने मौजूद पुराने विधानसभा भवन को निहार रहे हैं… रोज़ किए जाने वाले कामकाज के बारे में अखिलेश को स्लो मोशन में चलाए गए कई अलग-अलग दृश्यों में विद्यार्थियों से बातचीत करते, भीड़ का अभिवादन करते, मीडिया को संबोधित करते, और योजनाओं का आकलन करते दिखाया जाता है…

अखिलेश यादव वीडियो में मुज़फ़्फ़रनगर दंगा पीड़ितों को राहतसामग्री बांटते तो दिखाई देते हैं, लेकिन इस मुद्दे पर ज़्यादा ज़ोर नहीं दिया गया है, जो समाजवादी पार्टी के ‘मुस्लिम-समर्थक रुख’ से कुछ अलग है…

आमतौर पर समाजवादी पार्टी की अपील ग्रामीण उत्तर प्रदेश तक सीमित समझी जाती है, लेकिन अभियान के लिए तैयार वीडियो में शहरी एहसास भी है, जिससे संकेत मिलता है कि अखिलेश का इरादा शहरों तक भी पहुंच, पहचान, और प्रभाव बनाने का है.

वीडियो के अंत में काम करते मुख्यमंत्री को उनके बच्चे आकर टोकते हैं, और वह सब कुछ छोड़कर उनके साथ क्रिकेट खेलना शुरू कर देते हैं… यह पारिवारिक प्यार उस कड़वाहट-भरे ‘विवाद’ से बिल्कुल उलट है, जो पिछले कई दिन से अखिलेश और उनके पिता व चाचा शिवपाल यादव के बीच जारी है…

प्रचार के लिए तैयार किए ऑडियो का असर ग्रामीण इलाकों में पड़ने की ज़्यादा संभावना है… इसमें मुलायम सिंह यादव को दिग्गज समाजवादी नेताओं की पांत में शुमार किया गया है, और उनकी विचारधारा को प्रेरणा की ‘गंगा-जमुना’ बताया गया है… कोई फिल्मी गीत इसमें नहीं बज रहा है, बल्कि चुनावी जिंगल बुंदेलखंड के ‘आल्हा-ऊदल’ के किस्सों से प्रभावित है… बुंदेलखंड के राजा के सेनापति रहे आल्हा और ऊदल एक ऐसी मां की कोख से जन्मे थे, जो ‘अहीर’, यानी यादव समुदाय से थीं…

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