नई दिल्ली। पिछले एक महीने से सपा में चले आ रहे विवाद पर अाज चुनाव आयोग के सामने सुनवाई के दौरान मुलायम सिंह यादव झुक गए। सूत्रों से हवाले से खबर है कि आयोग के सामने मुलायम ने माना कि वह पार्टी के मार्गदर्शक हैं । साथ ही उन्होंने कहा कि इसके बाद अब पार्टी में कोई विवाद नहीं है और यह पूरी तरह से आंतरिक मामला है।
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मुलायम के अचानक इस यू-टर्न के बाद अखिलेश का दावा आयोग के सामने मजबूत हो गए हैं और उन्होंने चुनाव चिन्ह पर दावा ठोकने की तैयारी कर ली है।
इससे पहले आयोग के सामने अखिलेश का दावा पेश कर रहे वकील कपिल सिबल ने कहा कि मुलायम के समर्थन में केवल 12 विधायक हैं वहीं अखिलेश के साथ बहुमत है। ऐसे में चुनाव चिन्ह उसे मिलना चाहिए जिसके पास बहुमत है। आयोग बहुमत को आधार मानते हुए फैसला सुनाए।
इस तरह चली सुनवाई
चुनाव आयोग के सामने बहस की शुरुआत रामगोपाल यादव के हलफनामे से हुई, जिसमें आयोग को बताया गया था कि समाजवादी पार्टी के नए अध्यक्ष अखिलेश यादव बने हैं। पार्टी के आधे से ज्यादा सांसद, विधायक और एमएलसी का समर्थन अखिलेश को है। इनके समर्थन वाले हलफनामे आयोग में जमा किए जा चुके हैं।
इसलिए पार्टी और पार्टी के चुनाव चिन्ह पर उनका हक है, लेकिन इसको चुनौती देते हुए मुलायम के वकील ने कहा कि रामगोपाल के हलफनामे में कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं है कि पार्टी का विभाजन हुआ है या बंटवारा हुआ है, तो फिर जब पार्टी में कोई विभाजन हुआ ही नहीं तो पार्टी और चुनाव चिन्ह दोनों पर ये दावा कैसे कर सकते हैं।
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दूसरी बात मुलायम सिंह यादव 2014 में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे और पार्टी अध्यक्ष का कार्यकाल तीन साल का होता है। न तो मुलायम सिंह यादव का कार्यकाल पूरा हुआ, और न ही पार्टी में विभाजन हुआ, न ही मुलायम ने पार्टी छोड़ी तो ऐसी स्थिति में कोई दूसरा व्यक्ति कैसे पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बन सकता है, कैसे चुनाव चिन्ह पर दावा कर सकता है।
मुलायम के वकील ने ये भी सवाल उठाया कि रामगोपाल गुट हलफनामे जो दावा कर रहे हैं कि अखिलेश पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, तो आज सुनवाई के दौरान खुद चुनाव आयोग में अखिलेश क्यों नहीं आए। मुलायम के वकील ने ये भी दावा किया कि सारे हलफनामों में खुद अखिलेश का हलफनामा नहीं है।
रामगोपाल यादव को पार्टी से निकाला जा चुका है, वो आयोग में अखिलेश की तरफ से दावा करने आए हैं, जिसका कोई औचित्य नहीं है। आयोग के सामने पहले दौर की 2 घंटे की बहस में मुद्दा यही रहा कि पार्टी में कोई विभाजन हुआ है या पार्टी में कोई विभाजन नहीं हुआ है।
आयोग यही जानना चाह रहा था कि पार्टी में विवाद की स्थिति है या विभाजन हुआ है या नहीं। मुलायम के वकील पूरी बहस के दौरान ये दावा करते रहे की पार्टी में न तो कोई विवाद है, न ही कोई विभाजन हुआ। लिहाजा पार्टी और चुनाव चिन्ह को लेकर भी कोई दावा नहीं कर सकता है।
अखिलेश और मुलायम दोनों के दावे बड़े
आयोग के सामने इससे पहले पेश हुए अखिलेश यादव और मुलायम सिंह के गुट ने अपने-अपने दावे पेश किए थे। जहां अखिलेश ने पार्टी के 90 प्रतिशत विधायक, सांसद और एमएलसी के समर्थन की बात कही थी, वहीं मुलायम ने दावा किया था कि अखिलेश राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं ही नहीं। रामगोपाल यादव को सपा से निकाल दिया गया था और ऐसे में वो राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाने के अधिकारी ही नहीं थे इसलिए उनका अधिवेशन वैध नहीं है।
जारी रही सुलह की कोशिशें
सपा में शुरू हुए विवाद के बाद से ही सुलह की कोशिशें हो रही थीं। बीच में कई बार ऐसी स्थिति बनी की मुलायम कोई बड़ा कदम उठाते लेकिन आजम खान दोनों के बीच लगातार सुलह की असफल कोशिशें करते नजर आए। जहां अखिलेश गुट अमर सिंह को खलनायक बताने में लगा रहा, वहीं मुलायम गुट रामगोपाल को झगड़े की जड़ बताता आ रहा है।
मुलायम सिंह बाद में थोड़े मुलायम भी नजर आए और उन्होंने अखिलेश को पार्टी का सीएम उम्मीदवार बताते हुए सुलह के लिए बेटे को मिलने भी बुलाया लेकिन इन मुलाकातों में भी दोनों पिता-पुत्र राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए।
अखिलेश का कहना था कि उन्हें सिर्फ चुनाव तक के लिए अघ्यक्ष बने रहने दिया जाए और उसके बाद पार्टी मुलायम सिंह की होगी लेकिन मुलायम का तर्क था कि उन्हें इतना सम्मान तो मिलना चाहिए कि वो अध्यक्ष बने रहें भले ही अखिलेश चुनाव में टिकट बंटवारे की कमान संभाल लें।