लखनऊ: देश में चुनाव का माहौल है। राजनैतिक दलों से लेकर नेता जीत हासिल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। ऐसे मेें राजनैतिक दलों के दिये गये नारे लोकतंत्र के इस उत्सव में काफी अहम भूमिका अदा करते हैं। वोटरों को अपनी तरफ लुभाने के लिए सभी दल ऐसे नारों का सहारा लेते है जो सीधे आम आदमी के दिल में उतर जाये और उसका मन बदल जाये। भारतीय राजनीति में नारों की भूमिका कोई नयी नहीं है। देश की आजादी के बाद से नारों ने वोटरों को लुभाने का खूब काम किया है। शायद ही देश का कोई ऐसा चुनाव रहा हो जो बिना किसी नारे के लड़ा गया हो। तो आइये हम बताते हैं इतिहास के पन्नों में दर्ज कुछ ऐसे नारों के बारे में जिसने चुनावी में फिजा ही बदल डाली।
वर्ष 1965- पाकिस्तान युद्ध के वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान जय किसान का नारा दिया था। इसका उद्देेश्य युद्ध और खाद्य संकट के दौर में देश का मनोबल बढ़ाना और एकजुट करना था। कांग्रेस ने 1967 में इस नारे का इस्तेमाल करते हुए देश में सत्ता हासिल की थी।
वर्ष 1967- इन्दिरा गांधी ने उस वक्त देश में गरीबी हाटाओ का नारा दिया था। वहीं जन संघ की तरफ से भी दो नारे सामने आये थे। पहला नारा था जनसंघ को वोट दो, बीड़ी पीना छोड़ दो। दूसरा नारा जनसंघ ने जो दिया था वह था बीड़ी में तम्बाकू है, कांग्रेस वाले डाकू हैं। खैर देश की जनता ने इन्दिरा गांधी के नारे को स्वीकर करते हुए उनको सत्ता तक पहुंचाया और इन्दिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं।
वर्ष 1971- देश में हुए आम चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस की तरफ गरीबी हाटाओ, इन्दिरा लाओ, देश बचाओ का नारा दिया। इस नारे की बदौलत इन्दिरा गांधी ने बड़ी जीत हासिल की और वह फिर से प्रधानमंत्री बनीं।
वर्ष 1977- इंदिरा गांधी द्वारा लोकतंत्र को बंधक बनाने के खिलाफ लोगों में जबरदस्त आक्रोश था। समाजवादी पुरोधा जय प्रकाश नारायण ने इंदिरा हटाओ, देश बचाओ का नारा दिया। जेपी के नेतृत्व में विपक्षी पार्टियों ने अभूतपूर्व एकता दिखाई और जनता पार्टी नाम से एक होकर 1977 के चुनाव में कांग्रेस को धूल चटा दी। जनता ने इन्दिरा गांधी को सत्ता से दूर कर दिया और गैर कांग्रेसी सरकार को सत्ता की चाभी मिली।
80 से 90 का दशक- 1977 में हुए आम चुनाव के बाद नारों में कमी आ गयी। किसी भी पार्टी के पास जनता के बीच जाने के लिए कोई ठोस नारा नहीं था। इस दशक के दौरान सभी नेताओं ने एक ही नारा फलां तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं का प्रयोग किया । बस इस नारे के आगे नेता का नाम जोड़ दिया जाता था।
1984- इन्दिरा गंाधी की हत्या के बाद कांग्रेस ने जब तक सूरज चांद रहेगा, इन्दिरा तेरा नाम रहेगा का नारा दिया। इस नारे के सहारे कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। बिहार में जहां लालू ने भूरा बाल साफ करो का नारा दिया था। वहीं यूपी में तकरीबन उसी वक्त बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने तिलक, तराजू और तलवार,………जैसा उत्तेजक नारा दिया था। वहीं बिहार में एक और नारे ने खूब चर्चा बटोरी थी, वह नारा था जब तक समोसे में रहेगा आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू।
वर्ष 1996- 11 वीं लोकसभा आम चुनाव में बीजेपी ने अटल बिहारी वाजपेयी को अपना चेहरा बनाया और जनता के बीच जाने के लिए नारा दिया सबको देखा बारी बारी, अबकी बार अटल बिहारी। चुनाव में बीजेपी सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने लेकिन सिर्फ 13 दिन के लिए।
वर्ष 1996- 11 वीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने वोटरों को लुभाने के लिए जात पर न पात पर ,मोहर लगेगी हाथ पर का नारा देश को दिया था।
वर्ष 1997- इस दशक में गठबंधन फार्मूला काम करना शुरू कर चुका था। इस बीच उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम एक साथ हुए। तब उस वक्त यूपी में मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गये जय श्रीराम का नारा दिया गया।
वर्ष 2004- 14 वीें लोकसभा चुनाव में भाजपा को अटल बिहारी के कामकाज पर काफी भरोसा था और भाजपा को लगा था कि इसी आधार पर फिर से लोगों का दिल जीत सकते हैं। इसी के चलते भाजपा ने शाइनिंग इण्डिया का नारा दिया था। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने देश के आम लोगों के बीच अपनी छवि को बेहतर बनाने के लिए कांग्रेस का हाथ ,आम आदमी के साथ का नारा दिया था।
वर्ष 2009- 15 वीं लोकसभा चुनाव में फिर से सत्ता की चाभी हासिल करने के लिए कांग्रेस ने सोनिया गांधी को आगे किया सोनिया नहीं यह आंधी है, दूसरी इन्दिरा गांधी है का नारा दिया। इस नारे से कांग्रेस ने सोनिया गांधी को इन्दिरा गांधी की तरह पेश किया और बहुमत हासिल की।
वर्ष 2014- 16 वीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से पूरी रोटी खायेंगे, 100 दिन काम करेंगे, दवाई लेंगे और कांग्रेस को जितायेंगक का नारा दिया। कांग्रेस के इस नारे के मुकाबले भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को सामने पेश किया और देश को अबकी बार मोदी सरकार और अच्छे दिन आने वाले हैं का नारा दिया। इस नारे की हवा देश में ऐसी चली कि भाजपा ने प्रचंड बहुत हासिल करते हुए केन्द्र की दिल्ली सरकार पर कब्जा जमा लिया।
वर्ष 2017- उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के दौरान अखिलेश यादव ने अटल बिहारी की तरह अपने किये गये कामों पर विश्वास करते हुए काम बोलता है और युवा जोश का नारा दिया, पर यह नारा लोगों के दिल तक नहीं पहुंचा और यूपी में भाजपा ने भारी बहमुत के साथ अपनी सरकार बना ली।
वर्ष 2019- 17 वीं लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में अभी तक कांग्रेस या फिर विपक्षी दलों की तरफ से कोई नारा तो सामने नहीं आया है, पर अगर भाजपा की बात की जाये तो भाजपा ने चुनाव से पहले मोदी है तो मुमकिन है का नारा दिया। यह नारा उतना प्रभावी नहीं हुआ। बस इसके बाद भाजपा ने विपक्षी पार्टी कांग्रेस के चौकीदार चोर के नारे से चौकीदार शब्द चोरी करते हुए मै भी चौकीदार हुं का नारा दिया। इस नारे ने सोशल मीडिया पर ऐसी तेजी पकड़ी की भाजपा के सभी नेताओं ने अपने नाम के आगे चौकीदार लगा लिया।
भारत ही नहीं विदेश में भी है नारों की अहमियत
भारतीय राजनीति में नारों की जितनी अहमियत है, शायद ही किसी और देश में होगी, पर भारत के अलावा अन्य देशों में भी चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियां वोटरों तक पहुंचने के लिए नारे जरूर निकालती है। वर्ष 2012 में अमेरिका में फॉरवर्ड , बीलीव इन अमेरिका, रीस्टोर और फ्यूचर का नारे सामने आया। वहीं ब्रिटेन में वर्ष 2017 में हुए चुनाव में फॉरवर्ड टूगेदर, स्ट्रांग स्टेबिन और फार दी मेनी नाट दी फ्यू के नारे दिये गये थे।