स्टील मंत्री चौधरी बिरेंद्र सिंह ने कहा है कि उत्खनन उद्योगों के उत्पादन में होने वाले अवशिष्ट पदार्थो के निस्तारण में पर्यावरण का ख्याल रखा जाना चाहिए। इकोलॉजिकल बैलेंस सुनिश्चित किया जाना अत्यंत जरूरी है।अभी-अभी: सरकार ने लिया बड़ा फैसला, SUV और मिड-लार्ज साइज की कार पर 2 से 7 % तक बढ़ाया सेस…
नेशनल उत्खनन उद्योग एवं सतत विकास पर एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि तेल व गैस और खनन जैसे उत्खनन उद्योगों में बड़े निवेश आ रहे हैं। इससे आर्थिक विकास का दायरा व्यापक होने की संभावना काफी अच्छी हैं। लेकिन इन उद्योगों के साथ आसपास के समुदायों, प्रदूषण और पर्यावरण को क्षति जैसी समस्याएं भी साथ आती हैं। उन्होंने आगाह किया कि आर्थिक व सामाजिक विकास के लिए इन संसाधनों का फायदा उठाते समय संतुलन बनाये रखना चुनौती है। आर्थिक व सामाजिक विकास के साथ ही पर्यावरण पर नकारात्मक असर रोकने की जरूरत है। प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना नुकसानदायक हो सकता है।
मंत्री ने कहा कि उद्योग और प्रकृति के बीच संतुलन के लिए सरकार और इस क्षेत्र के संगठनों का दायित्व है कि किसी भी तरह का असंतुलन रोका जाए। स्टील कंपनियों को संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल के लिए कहा गया है ताकि अवशिष्ट बिल्कुल न हो या न्यूनतम हो। उन्होंने कहा कि सतत विकास के लिए सरकार स्क्रैप आधारित स्टील प्लांटों की संभावनाओं पर विचार कर रही है ताकि स्टील उत्पादन के अवशिष्ट का इस्तेमाल किया जा सके और नये संसाधनों पर दबाव कम हो। इस बात के प्रयास हो रहे है कि स्टील उद्योग से कम से कम कार्बन पैदा हो। राष्ट्रीय इस्पात निगम लि. (आरआइएनएल) ने हाल में ऐसे पावर प्लांट की स्थापना की है जो स्टील प्लांट की अवशिष्ट गैसों से चलेगा।
उन्होंने कहा कि वह इसका भी पता लगा रहे है कि क्या स्टील प्लांटों से निकलने वाली गैसों से मेथनॉल बनाई जा सकती है या नहीं। हाल में कुछ खदानों में उत्पादन शुरू करते समय गैस की किल्लत का सामना करना पड़ा। नेचुरल गैस, कोयला और नवीकरणीय स्नोतों जैसे शहरों के कचरे, बायोमास और रिसाइकिल्ड कार्बन डायोऑक्साइड से मेथनॉल का उत्पादन किया जा सकता है।
स्टील मंत्रालय क्षमता के उपयोग और तकनीकी उन्नयन पर ध्यान दे रहा है। इससे खनिजों के समुचित इस्तेमाल में मदद मिलती है। राष्ट्रीय स्टील नीति में विदेशों से कोकिंग कोल के आयात पर निर्भरता कम करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कोल वाशरीज स्थापित करने पर ध्यान दिया जाएगा। भारत को अपनी जरूरत का 80 फीसद कोकिंग कोल ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से आयात करना पड़ता है। इसकी कीमत 70 से 300 डॉलर प्रति टन के बीच होती है। यह हमारे लिए नुकसानदायक है। वाशरीज खुलने से आयात में कमी आएगी।