जन लोकपाल बिल पर मोदी सरकार की चुप्पी अब सुप्रीम कोर्ट को खटकने लगी है. सामाजिक कार्यकर्त्ता अन्ना हजारे ने जन लोकपाल बिल के लिए दिसम्बर 2011 में दिल्ली के रामलीला मैदान में एक बड़ा अन्दोलन किया था. जिसका समर्थन करके भाजपा सत्ता तक आ गयी.
भाजपा सरकार ने उस वक्त घोटालों से घिरी यूपीए नीत सरकार का इस मुद्दे पर विरोध करके सत्ता तक पहुंची और फिर अपने ही किये वादे को भूल गयी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तब अपनी रैलियों में एक प्रभावशाली जन लोकपाल बिल लाने की बात करते थे लेकिन सरकार बनने के करीब तीन वर्ष बाद भी इस दिशा में कोई बेहतर काम नहीं किया गया.
जनलोकपाल बिल के परिपेक्ष में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज मोदी सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि सरकार के पास जन लोकपाल बिल रोकने की कोई औचित्य नहीं है, सरकार जल्द से जल्द इस दिशा में आगे बढे और हमें बताये कि उसने क्या किया.
सुप्रीम कोर्ट ने जनलोकपाल बिल के मुद्दे पर कहा कि सरकार को यह बताना होगा कि राज्यों में लोकपालों की नियुक्तियों को क्यों रोक रखा है? जन लोकपाल बिल को अभी तक कानूनी मान्यता प्रदान करने में सरकार क्यों विफल रही है? भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल एक बड़ा कदम हो सकता है लेकिन सरकार का ध्यान इस बात की तरफ क्यों नहीं जा रहा.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले इस मुद्दे पर सुनवाई करते हुए कहा था कि सरकार बताये कि क्या लोकपाल की नियुक्ति बिना जन लोकपाल बिल को कानूनी मान्यता दिए ही की जा सकती है? लोकपाल की नियुक्ति के लिए कानून में प्रस्तावित परिवर्तनों को मंजूरी क्यों नहीं दी? क्या इसके बिना ये नियुक्तियां की जा सकती हैं?
भाजपा ने हर जिले में बनाए प्रभारी मंत्री, केशव प्रसाद मौर्य को आजमगढ़ का जिम्मा इस सवाल का जबाब देते हुए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा था कि लोकपाल अधिनियम में विपक्ष के नेता के द्वारा बार-बार परिभाषाओं किया जा रहा है जिसके कारण यह बिल संशोधन के लिए संसद के पास लंबित है. वर्तमान में कानून के साथ एक समस्या है जिसके कारण लोकपाल का चयन नहीं हो सकता. विपक्ष के नेताओं की अनुपस्थिति में यह नियुक्ति नहीं की जा सकती.’