बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले हर जनसभा में लालू प्रसाद यादव को अपना बड़ा भाई बताते हों, लेकिन कुर्सी तो कुर्सी है, मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कोई गलती से भी नहीं बैठ सकता। एक सार्वजनिक कार्यक्रम में लालू को नीतीश कुमार के लिए रखी कुर्सी पर बैठना महंगा पड़ा। लालू यादव को कुर्सी ख़ाली कर दूसरी कुर्सी पर बैठना पड़ा।
पटना के एक सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्हें बड़ी विनम्रता से नीतीश की कुर्सी को यह कहते हुए खाली करने के लिए कह दिया गया कि कुर्सी मुख्यमंत्री के लिए रिजर्व्ड है।
नीतीश से पहले पहुंचे लालू, बैठ गए नीतीश की कुर्सी पर
दरअसल हुआ यूं कि कार्यक्रम के आयोजकों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लालू यादव दोनों को निमंत्रण दिया था। लालू यादव कार्यक्रम में नीतीश कुमार से पहले पहुंच गए और मंच पर एक कुर्सी पर जाकर बैठ गए। थोड़ी देर में आयोजकों ने जैसे ही बताया कि वो गलत कुर्सी पर बैठ गए हैं, लालू तुरंत बगल की कुर्सी पर जाकर बैठ गए।
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हालांकि ये पूरा मामला चंद सेकंड का था लेकिन राजैनतिक गलियारों में ये चर्चा का विषय बन गया। नीतीश इस कार्यक्रम में थोड़ी देर बाद आए और दोनों एक दूसरे के अगल बगल में बैठे।
निश्चित रूप से लालू यादव और उनके समर्थकों को ये पूरा मामला अच्छा नहीं लगा होगा लेकिन जानकर बताते हैं कि भले ही लालू यादव के पास नीतीश से ज्यादा विधायक हो और वोट का प्रतिशत भी नीतीश के जनता दल यूनाइटेड से ज्यादा हो लेकिन सचाई यही है कि जिसके ऊपर ताज होता है उसे सब चीजों में प्राथमिकता मिलती है।
350वें प्रकाश पर्व के दौरान भी नहीं मिली थी मंच पर जगह
इससे पहले भी पटना में आयोजित 350वें प्रकाश पर्व के दौरान 5 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित अन्य गणमान्य हस्तियों के साथ मंच पर लालू प्रसाद को जगह नहीं दी गई थी। काफी हो हल्ला होने के बाद आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने सफाई देते हुए कहा था उन्हें इसको लेकर कोई शिकायत नहीं है।
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हालांकि राजद पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह ने इस मामले में विरोध जताया था। रघुवंश ने कहा था, ‘ऐसा नहीं लग रहा था कि गुरु गोविंद सिंह जी के 350वें प्रकाश पर्व के लिए इंतजाम महागठबंधन की सरकार ने किए थे, बल्कि ऐसा लग रहा था कि सत्ता में शामिल किसी एक पार्टी ने ये इंतजाम किए हों।’