जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए गंभीर नहीं दिख रही दुनिया, आर्थिक मदद पर नहीं बन पा रही आमराय

दुनिया आज भले ही भीषण बाढ़, बारिश व तेजी गर्मी जैसी जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों से जूझ रही है, लेकिन अभी भी वह इससे निपटने के लिए गंभीर नहीं दिख रही है। इसका अंदाजा बाकू (अजरबैजान) में चल रहे कॉप-29 सम्मेलन से लगाया जा सकता है, जहां इस चुनौती से निपटने के लिए दुनिया के प्रमुख देश शुरुआती चर्चा में अपने वादों से दूर भागते दिख रहे हैं। इनमें ऐसे विकसित देश शामिल हैं जिन्हें विकासशील और छोटे देशों को इससे निपटने के लिए वित्तीय मदद मुहैया करानी थी।

राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद अमेरिका के रुख बदलने की संभावना से दूसरे विकसित देश भी पेरिस समझौते के तहत दी जाने वाली वित्तीय मदद से कन्नी काटते दिख रहे हैं। ऐसे माहौल में भारत फिलहाल अपने रुख पर कायम है।

जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ रहे देशों में भारत भी शामिल

वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक बाकू सम्मेलन में भारत फिर से जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकसित देशों की ओर से वित्तीय मदद का मुद्दा रखेगा। साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहे देशों की दिक्कतों को प्रमुखता से सामने रखेगा। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ रहे देशों में भारत भी शामिल है।

सूत्रों की मानें तो भारत सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को कम करने के लिए किए जाने वाले उपायों, जैसे जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कमी, नेट जीरो आदि के लक्ष्य पर सभी देशों से आगे बढ़ने की अपील भी करेगा। ज्यादातर देशों में इसे लेकर बड़े एलान तो कर दिए हैं, लेकिन अभी उन्होंने इस दिशा में कोई कदम नहीं बढ़ाया है। भारत ने भी 2021 में ग्लास्गो में हुए कॉप-26 में 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य दिया है।साथ ही 2030 तक अपनी कुल ऊर्जा जरूरत में से 50 प्रतिशत की पूर्ति नवीकरणीय ऊर्जा से करेगा। नेट जीरो के लक्ष्य में अभी भले कोई तेजी नहीं दिखी है, लेकिन दो वर्षों में देश में नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी दिखी है। हाल में सरकार ने पीएम सूर्य घर योजना शुरू की है।

इसलिए जरूरी है नेट जीरो का लक्ष्य

एक रिपोर्ट के मुताबिक, यदि जलवायु परिवर्तन से निपटने की रफ्तार सुस्त रही तो वर्ष 2100 तक दुनिया का तापमान लगभग 2.6 से 2.8 डिग्री तक बढ़ सकता है। लेकिन अगर नेट जीरो से जुड़े वादे पूरे कर लिए जाएं तो यह 1.9 डिग्री तक गिर सकता है। इसके तहत सभी देशों को अपने ग्रीन हाउस गैसों के उत्पादन को घटना है।अंतिम दिनों में सम्मेलन में शामिल हो सकते हैं पर्यावरण मंत्रीकॉप-29 11 से 22 नवंबर तक चलेगा। इसके शुरुआती सत्र में शामिल होने के लिए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री कीर्ति वर्धन ¨सह की अगुआई में एक दल सम्मेलन में पहुंच गया है। लेकिन अंतिम दिनों में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव भी इसमें हिस्सा ले सकते हैं।

चीन व जी-77 ने क्लाइमेट फाइनेंस का मसौदा ठुकराया

कॉप-29 में मंगलवार को चीन और जी-77 समेत करीब 130 देशों ने क्लाइमेट फाइनेंस के नए लक्ष्य पर वार्ता मसौदे का फ्रेमवर्क ठुकरा दिया। इन देशों ने क्लाइमेट फाइनेंस का नया लक्ष्य 1.3 लाख करोड़ डालर तय करने की मांग की है।दूसरी तरफ विकसित देश चाहते हैं कि जलवायु परिवर्तन से निपटने में सभी (सरकारें, निजी कंपनियां व निवेशक) निवेश करें और न ही ऐसी कोई धनराशि तय की जाए जिसे सिर्फ विकसित देशों को ही उपलब्ध कराना हो। इसी के साथ ही एक फैसले में काप-29 ने पेरिस समझौते के तहत नए संचालन मानकों को अपना लिया जिससे वैश्विक कार्बन बाजार की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो गया है।सम्मेलन में बेलारूस के राष्ट्रपति ए. लुकाशेंको ने कहा कि यह सम्मेलन कितना प्रभावी होगा जब दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषक और मजूबत अर्थव्यवस्थाएं फ्रांस, चीन व अमेरिका अपने सर्वोच्च नेताओं को नहीं भेज रहे हैं और भारत व इंडोनेशिया के शासन प्रमुख भी नहीं आ रहे हैं। इसका मतलब है कि दुनिया की 42 प्रतिशत से ज्यादा आबादी वाले सर्वाधिक आबादी वाले चार देशों के नेता अपनी बात नहीं रखेंगे।

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