आप यह तो जानते ही होंगे कि महाराष्ट्र के एक गांव शनि शिंगणापुर में शनिदेव का सिद्ध स्थान है। यह बहुत ही चमरिक स्थान है। इसी तरह मध्यप्रदेश के ग्वालियर के पास स्थित है शनिश्चरा मन्दिर। इसके बारे में किंवदंती है कि यहां हनुमानजी के द्वारा लंका से फेंका हुआ अलौकिक शनिदेव का पिण्ड है। मतलब यह कि दोनों ही स्थानों पर एक आलौकिक पत्थर है। परंतु क्या आप जानते हैं कि एक जगह ऐसी भी है जहां पर स्वयं श्रीकृष्ण ही शनिदेव के रूप में विराजमान है। नहीं, तो आओ जानते हैं।
सिद्ध शनिदेव :
1. शनिदेव का यह मंदिर मथुरा के कोसीकलां (कोकिलावन) में स्थित है। इस मंदिर की मान्यता भी शनि शिंगणापुर की तरह ही मानी गई है। उत्तरप्रदेश के कोशी से छह किलोमीटर दूर कोकिलावन स्थित है।
2. इसके बारे में पौराणिक मान्यता है कि यहां शनिदेव के रूप में स्वयं भगवान कृष्ण भी विद्यमान रहते हैं।
3. मान्यता है कि जो इस वन की परिक्रमा करके शनिदेव की पूजा करेगा वहीं कृष्ण की कृपा पाएंगे। उस पर से शनिदेव का प्रकोप भी हठ जाएगा। मंदिर के चारों ओर करीब 3 किलोमीटर के गोल घेरे में परिक्रमा पथ बना हुआ है। यहां आने वाले भक्त भगवान शनि की पूजा करने से पहले मंदिर की परिक्रमा करते हैं।
4. ऐसी मान्यता है कि यहां पर शनिदेव ने श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए कठोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने शनिदेव को कोयल के रूप में दर्शन दिए थे, इसलिए इस स्थान को कोकिलावन के नाम से भी जाना जाता है।
5. जनश्रुति कथा के अनुसार मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था तब स्वर्ग से सभी देवताओं के सात शनिदेव की कृष्ण के बाल रूप को देखने मथुरा आए थे। नंदबाबा को जब यह पता चला तो उन्होंने भयवश शनिदेव को दर्शन कराने से मना कर दिया। नन्द बाबा को लगा कि शनिदेव की दृष्टि पड़ते ही कहीं कृष्ण के साथ कुछ अमंगल न हो जाए। तब मानसिक रूप से शनिदेव ने भगवान श्रीकृष्ण से दर्शन देने की विनती की तो कृष्ण ने शनिदेव को कहा कि वे नंदगांव के पास के वन में जाकर तपस्या करें, वहीं मैं उन्हें दर्शन दूंगा। बाद में शनिदेव की तपस्या से भगवान श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न हुए और कोयल के रूप में उन्होंने शनिदेव को दर्शन दिया।