1971- 74 के बीच देश के पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार जनसंघ के एक कार्यक्रम में आरा आए थे। शहर के भलुहीपुर के बाशिंदे जगदीश बाबू के खपरैल के मकान में संघ के प्रमुख लोगों के साथ बैठक कर जमीन पर दरी बिछाकर रात गुजारी थी। दोपहर में नागरी प्रचारिणी सभागार में जनसंघ के कार्यक्रम में शामिल होकर सभा को संबोधित किया।
उस दौरान इनके करीबी रहे जनसंघ के जिलाध्यक्ष डॉ. दुर्ग विजय सिंह अटल बिहारी वाजपेयी के साथ-साथ रहे। उस दौरान देश में कांग्रेस की सरकार थी और इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। जनसंघ के प्रमुख पदाधिकारियों में एक अटल बिहारी उस वक्त संगठन की मजबूती के लिए बिहार में अभियान चला रहे थे। नागरी प्रचारिणी में सभा को संबोधित करने के बाद वे पुन: जगदीश बाबू के मकान पर जाने के लिए जैन स्कूल के रास्ते समर्थकों के साथ शाम में निकले। इस दौरान जैन स्कूल के समीप एक लिट्टी की दुकान देखकर उन्होंने लिट्टी खाने की इच्छा जाहिर की। समर्थकों ने उनके लिट्टी-चोखा खाने की व्यवस्था की।
दूसरी बार 1989 में महाराजा कॉलेज में सभा को किया था संबोधित
अटल बिहारी बाजपेयी वर्ष 1989 में दूसरी बार आरा के महाराजा कॉलेज में एक चुनावी सभा को संबोधित करने पहुचे थे। उस वक्त जनसंघ के प्रत्याशी के पक्ष में सभा को संबोधित किया था।
जब बक्सर के नैनीजोर गांव के लिए अटल जी ने बदलवाया बांध का नक्शा
बक्सर। गंगा तट पर बसे बक्सर को बाढ़ से सुरक्षित रखने के लिए बने बक्सर-कोइलवर तटबंध से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की यादें जुड़ी हैं। तटबंध के पहले बने एलाइनमेंट में नैनीजोर समेत कई गांव बाहर थे। पार्टी विधायक डॉ. स्वामीनाथ तिवारी के अनशन पर बैठने पर अध्यक्ष की हैसियत से अटल जी का पत्र उनके पास आया। उन्होंने लिखा कि आपकी मांग सही है और तटबंध का नक्शा बदलेगा। इसके बाद उन्होंने सरकार से बात की और कहा कि बांध गांव बचाने के लिए बनाया जा रहा है या डुबाने के लिए। उनके दबाव में बांध के नक्शे में परिवर्तन हुआ और नैनीजोर सुरक्षित हुआ।
ऐसे बात नहीं बनेगी, मुझे बक्सर की लिट्टी भी चाहिए
25 अप्रैल 1982 को स्वामी सहजानंद की प्रतिमा के अनावरण और दो दिवसीय सम्मेलन में भाग लेने वाजपेयी जी आए थे। स्वामीनाथ तिवारी के अनुसार कार्यक्रम से पूर्व वाजपेयी जी को गांव में बनी लिट्टी परोसी गई थी। अगले दिन जब वाजपेयी जी दिल्ली लौटने लगे तो उन्होंने आयोजकों से कहा ऐसे बात नहीं बनेगी, मुझे बक्सर की लिट्टी भी चाहिए। तब उनको सिमरी से लिट्टी बनवाकर दी गई। वे ब्रह्मपुर में बाबा ब्रह्मेश्वर नाथ के दर्शन करने भी गए थे।
..और अटल जी ने दिया वापसी का किराया
अटल जी सहृदय तो थे ही लेकिन बक्सर का उनके दिल में खास स्थान था। पूर्व विधायक स्वामीनाथ तिवारी ने बताया कि अस्सी के दशक में अर्जुनपुर का एक युवक राकेश दिल्ली के शिक्षा विभाग का साक्षात्कार देने गया। दुर्भाग्य से ट्रेन में ही उसकी अटैची चोरी हो गई। एडमिट कार्ड व पैसे भी उसी में थे। युवक ने उन्हें दिल्ली स्टेशन से फोन पर इसकी जानकारी दी तो उन्होंने अटल जी का पता देते हुए उनके पास जाने को कहा। वह वहां पहुंचा, अटल जी ने युवक की परेशानी सुनने के बाद तुरंत शिक्षा विभाग के सचिव को फोन कर ट्रेन में एडमिट कार्ड चोरी होने की जानकारी देते हुए साक्षात्कार लेने का अनुरोध किया। साथ ही उस साक्षात्कार के बाद बक्सर लौटने के टिकट के लिए पैसे भी दिए। उन्हीं की बदौलत आज भी युवक दिल्ली में शिक्षा विभाग में नौकरी कर रहा है।
बिहार में हर चुनाव की शुरुआत बक्सर से की
भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य परशुराम चतुर्वेदी बताते हैं कि अटल जी का बक्सर से खास प्रेम था। सन 1980 के बाद उन्होंने अपने हर चुनाव अभियान की शुरुआत बक्सर से ही की। यह भी संयोग रहा कि जब भी वे बक्सर में सभा करने आए, बक्सर लोकसभा क्षेत्र से भगवा परचम लहराया।
एक लाख में जितने सिक्के कम, उतना कम होगा भाषण
बेगूसराय। देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार बेगूसराय आए थे। 1980 में भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार वे पॉलीटेक्निक मैदान में आयोजित सभा में शिरकत करने पहुंचे थे। यहां पार्टी नेताओं को जन संग्रह कर उन्हें एक लाख की राशि मंच पर सौंपी जानी थी। राशि कम रह जाने पर उन्होंने मंच से ही मजाकिए लहजे में कहा था कि जितने सिक्के कम रह गए हैं, भाषण भी उतना ही कम होगा। भाजपा नेता अमरेंद्र कुमार अमर ने बताया कि दूसरी बार वे लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान 1996 में और तीसरी बार विधानसभा चुनाव 2000 के दौरान बरौनी आए थे। बरौनी के जिस रेलवे मैदान में उनकी सभा हुई थी, अब उसके अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा था।
नालंदा में छात्र नेता के अनुरोध पर उसके घर गुजारी थी पूरी रात
बिहार शरीफ : भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की कई यादें नालंदा से जुड़ी हैं। निगम के वार्ड 46 अलीनगर का वह मोहल्ला जहां अटल बिहारी वाजपेयी ने पूरी रात गुजारी थी, आज वहां के कई घरों में चूल्हे नहीं जले। बात 1962 की बात है, अटल जी चुनावी सभा को संबोधित करने नवादा आए थे। उनके साथ वरिष्ठ नेताओं के अलावा जिला छात्र-संघ के नेता राजकिशोर प्रसाद भी थे।
लौटते तेज आंधी-बारिश से अटल जी ने आगे के कार्यक्रम रद कर दिए लेकिन समस्या थी रात कहां गुजारी जाए। राजकिशोर प्रसाद ने अपनी कुटिया में चलने का आग्रह किया, जिसे अटल जी ने सहर्ष स्वीकार किया। काफिला अलीनगर पहुंचा, छात्र नेता राजकिशोर प्रसाद की आंखें जनसंघ के इतने बड़े नेता को घर पर देख कर छलक उठीं। उन क्षणों को याद कर भाव-विभोर हुए राजकिशोर प्रसाद कहते हैं कि वह दिन उनकी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण दिन था। पूरी रात वे अटल बिहारी वाजपेयी के पास अर्धनिद्रा में पड़े रहे। रात को उन्होंने चादर ओढ़ने की इच्छा जाहिर की। मैंने उन्हें चादर दी और सेवा में कोई कमी नहीं हो, इसका पूरा ध्यान रखा।
अटल जी को बहुत पसंद थी खीर
भाजपा के वरिष्ठ नेता राजकिशोर प्रसाद कहते हैं कि अटल जी सादा जीवन उच्च विचार के धारक थे। जब वे उनके आवास पर आए तो उन्होंने घर की खीर खाने की इच्छा जाहिर की। रात में खीर, पूड़ी तथा आलू की सब्जी बनी। उन्होंने बड़े चाव से खीर का आनंद लिया। सुबह प्रस्थान करने वक्त उन्होंने खीर खाने की इच्छा प्रकट की। मेरी मां से उन्होंने आशीर्वाद भी लिया और मेरी पीठ थपथपाते हुए चुनाव प्रचार को आगे निकल पड़े।
पूरी रात पढ़ाया संगठन की मजबूती का पाठ
1962 की रात की बातों को याद करते हुए राजकिशोर जी ने बताया कि भोजन के बाद अटल जी ने थोड़ी चहलकदमी की। सोने से पहले उन्होंने उन्हें संगठन को मजबूत बनाने की नसीहत दी। उन्होंने कहा कि पार्टी के विकास में कार्यकर्ताओं की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। उस वक्त संघ की ओर से उनके ऊपर संगठन तथा आर्थिक मजबूती का दायित्व सौंपा गया था।
प्रधानमंत्री बनने के बाद भी की थी मुलाकात
राजकिशोर जी कहते हैं कि प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने अटल जी से मुलाकात की। मुझे लगा था कि अब वे बदल चुके होंगे लेकिन आश्चर्य तब हुआ जब उन्होंने मुझे पहचान लिया। इतना कहते हुए उनकी आंखें भर आईं। स्वयं पर काबू पाते हुए उन्होंने कहा कि वे महान शख्स नहीं बल्कि फरिश्ते थे, जिन्होंने हमेशा दूसरों की खुशियों को सदैव महत्व दिया।