बिहार में 1990 के दशक में यह घोटाला सामने आया था, जिसमें सरकारी खजाने से करीब 950 करोड़ रुपये की हेराफेरी की गई थी। उस वक्त का यह सबसे बड़ा घोटाला था। यह घोटाला 1990 से लेकर 1997 के बीच बिहार के पशुपालन विभाग में अलग-अलग जिलों में हुआ था।
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तब लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे और पशुपालन विभाग उनके पास ही थी। 1994 में बिहार पुलिस ने गुमला, रांची, पटना, देवघर, चाईबासा और लोहरदगा जैसे कई कोषागारों से फर्जी बिलों के जरिये करोड़ों रुपये की कथित अवैध निकासी के मामले दर्ज किए थे।
सजा : अक्तूबर, 2013 में रांची स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने चाईबासा ट्रेजरी से 37.5 करोड़ रुपये की अवैध निकासी के मामले में लालू प्रसाद यादव को पांच साल के कारावास की सजा सुनाई थी। तब वह जेल भेज दिए गए थे। दिसंबर 2013 में उन्हें जमानत मिल गई और उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया।
नवंबर, 2014 में झारखंड हाईकोर्ट ने भी उन्हें बरी कर दिया। जिसके बाद सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की थी। शीर्ष अदालत ने लालू को उनके खिलाफ लंबित सभी चार मामलों में अदालती कार्यवाही का सामना करने का आदेश दिया था।
500 से ज्यादा दोषियों को मिल चुकी है सजा
चारा घोटाले के 53 में से 44 मामलों में सुनवाई पूरी हो चुकी है। अब तक 500 से ज्यादा आरोपियों को दोषी करार दिया जा चुका है और उन्हें विभिन्न अदालतों द्वारा सजा भी सुनाई जा चुकी है।
ताजा मामला देवघर ट्रेजरी से अवैध निकासी से संबंधित
यह मामला (आरसी64ए/96) देवघर कोषागार से 89.27 लाख रुपये की अवैध निकासी से संबंधित है। इस मामले में शुरू में सीबीआई ने 38 लोगों को आरोपी बनाया था। इसमें 11 की मौत हो चुकी है। तीन आरोपी सरकारी गवाह बन गए, जबकि दो ने फैसले से पहले ही अपना गुनाह स्वीकार कर लिया। इस मामले में लालू प्रसाद के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा समेत 22 अन्य लोग भी आरोपी हैं।