भारत बंद, कुछ लोगों के लिए यह जश्न मनाने का समय हो सकता है, उन्हें काम पर नहीं जाना होगा, यात्रा नहीं करनी होगी और वह दिनभर अपने परिवार के साथ समय बिता सकते हैं. लेकिन यह जश्न और आराम उन्हें नुकसान पहुंचाने वाला हो सकता है. क्योंकि देश में एक दिन का बंद अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा आर्थिक नुकसान लेकर आता है. इस नुकसान की भरपाई कहीं न कहीं उस एक दिन के जश्न की कीमत चुका कर दी जाती है.
अर्थव्यवस्था को एक दिन के बंद का क्या नुकसान हो सकता है? यह सवाल जितना सरल है आकलन उतना ही कठिन है. प्रतिदिन फैक्ट्रियों में होने वाला उत्पादन, शेयर बाजार में शेयरों की खरीदारी और बिकवाली, रियल एस्टेट सेक्टर में प्रतिदिन रखी जा रही एक-एक ईंट, मॉल से लेकर छोटे किराना स्टोर की बिक्री, सरकारी से लेकर निजी क्षेत्र के दफ्तरों में कामकाज समेत टूरिज्म, बैंकिंग और ट्रांस्पोर्टेशन (रेल, हवाई सफर, सड़क इत्यादी) ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जो बंद या हड़ताल से सीधे तौर प्रभावित होते हैं.
ऐसे सभी क्षेत्रों में प्रतिदिन के कामकाज का आकलन और उसका योग अर्थव्यवस्था को पहुंचने वाले कुल नुकसान को दर्शाता है. लेकिन यह आकलन करना उतना आसान नहीं है लिहाजा इस इसे समझने के लिए अर्थव्यवस्था के कुछ पहलुओं पर गौर करने की जरूरत है जिससे एक दिन के बंद से नुकसान का अंदाजा लगाया जा सके.
गौरतलब है कि सितंबर 2015 में देश के ट्रेड यूनियनों ने एक दिन के बंद का आह्वान किया था. इस एक दिन के बंद में देश की बैंकिंग व्यवस्था समेत ट्रांस्पोर्टशन और अन्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुई थी. इस एक दिन के बंद के बाद चैंबर ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज (सीआईआई) ने आकलन किया कि देश की अर्थव्यवस्था को कुल 25 हजार करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा.
एक बार फिर सितंबर 2016 में सेंट्रल ट्रेड यूनियन ने एक दिन के भारत बंद का आह्वान किया. इस एक दिन के दौरान देशभर में ट्रांस्पोर्ट, मैन्यूफैक्चरिंग और बैंकिंग सेवा बुरी तरह प्रभावित हुई और इंडस्ट्री चैंबर एसोचैम ने इस एक दिन के बंद से अर्थव्यवस्था को 18 हजार करोड़ रुपये के नुकसान पहुंचने का दावा किया
वहीं जनवरी 2018 में दलित संगठनों ने एक दिन के महाराष्ट्र बंद का आह्वान किया और बंद के दौरान जहां राज्य में कारोबार समेट ट्रांस्पोर्टेशन पूरी तरह ठप पड़ गया था वहीं बंद में हिंसा के चलते राज्य की संपत्ति को बड़ा नुकसान पहुंचा था. इस बंद के बाद राज्य में रीटेल कारोबार ने 700 करोड़ रुपये के नुकसान का दावा किया तो राज्य के होटल और रेस्तरां ने 100 करोड़ रुपये से अधिक के नुकसान का दावा किया था.
हाल ही में जुलाई 2018 के दौरान देश में 8 दिनों तक ट्रक चालकों की हड़ताल रही. इन आठ दिनों के दौरान अर्थव्यवस्था को लगभग 50 हजार करोड़ रुपये के नुकसान का आकलन किया गया. इस हड़ताल के चलते 20 जुलाई से लेकर 28 जुलाई तक देशभर में लगभग 90 लाख ट्रक सड़कों पर खड़े हो गए और इसका सीधा असर सरकारी और निजी क्षेत्र के कामकाज के साथ-साथ देश में खाने-पीने की वस्तुओं से लेकर फैक्ट्रियों के उत्पाद पर पड़ा. लिहाजा, महज ट्रक की हड़ताल के चलते अर्थव्यवस्था को प्रतिदिन 6 से 7 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.
अब सवाल राजनीतिक दलों द्वारा किए गए एक दिन के भारत बंद के आह्वान का. इस बंद से अर्थव्यवस्था को पहुंचने वाले नुकसान का आकलन करने के लिए इन पक्षों को देखना जरूरी है:
केन्द्र सरकार को राजस्व का नुकसान
मौजूदा वित्त वर्ष के लिए केन्द्र सरकार ने गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स के तहत कुल 12 लाख करोड़ रुपये के राजस्व का लक्ष्य रखा है. यानी प्रति महीने केन्द्र सरकार को जीएसटी से 1 लाख करोड़ रुपये की आमदनी करने की उम्मीद है. वहीं पिछले वित्त वर्ष के दौरान केन्द्र सरकार को प्रति माह जीएसटी से लगभग 90 हजार करोड़ रुपये के राजस्व की आमदनी हुई थी.
मौजूदा वित्त वर्ष में यदि केन्द्र सरकार एक दिन का जीएसटी राजस्व न प्राप्त करे तो उसे लगभग 3,333 करोड़ रुपये का नुकसान अपने राजस्व में उठाना पड़ेगा. गौरतलब है कि जीएसटी का राजस्व देश में संगठित क्षेत्र की सभी आर्थिक गतिविधियों (उत्पादन एंव सेवाओं) का परिचायक है और राजस्व का यह नुकसान केन्द्र सरकार की कमाई के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था पर सीधे तौर पर पहुंचता है.
वहीं देश में जीएसटी की दर (5%,12%,18%,28%) पर सरकार को 3,333 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है. लिहाजा देश में एक दिन के कारोबार को ठप करने में संगठित क्षेत्र के व्यापारियों को होने वाले नुकसान का अंदाजा सरकार के राजस्व से कई गुना होता है.
भारत बंद से समय-समय पर अर्थव्यवस्था को पहुंचे इस नुकसान के बाद अब राजनीतिक दलों द्वारा आह्वान किए गए एक दिन का बंद अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान पहुंचाने जा रहा है इसका अनुमान इसपर लगेगा कि यह बंद कितना प्रभावी रहा