हर साल मनाया जाने वाला गणेश चतुर्थी का पर्व इस साल 22 अगस्त से शुरू हो रहा है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं गणेश जी के स्त्री रूप के बारे में. जी हाँ, आप सभी ने शायद ही कभी उनके स्त्री रूप के बारे में पढ़ा होगा. तो आइए आज जानते हैं उनके स्त्री रूप के बारे में.
जी दरअसल एक बार श्री गणेश ने स्त्री रूप लिया था जिसका नाम था विनायकी. यह नाम वन दुर्गा उपनिषद में बताया गया है. तो आइए जानते हैं इस रूप को लेने के उद्देश्य के बारे में.
कथा के अनुसार एक बार अंधक नामक दैत्य माता पार्वती को अपनी अर्धांगिनी बनाने के लिए इच्छुक हुआ. अपनी इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए उसने जबर्दस्ती माता पार्वती को अपनी पत्नी बनाने की कोशिश की, लेकिन मां पार्वती ने मदद के लिए अपने पति शिव जी को बुलाया. अपनी पत्नी को दैत्य से बचाने के लिए भगवान शिव ने अपना त्रिशूल उठाया और राक्षस के आरपार कर दिया. लेकिन वह राक्षस मरा नहीं, बल्कि जैसे ही उसे त्रिशूल लगा तो उसके रक्त की एक-एक बूंद एक राक्षसी ‘अंधका’ में बदलती चली गई. भगवान को लगा कि यदि उसे हमेशा के लिए मारना हो तो उसके खून की बूंद को जमीन पर गिरने से रोकना होगा. माता पार्वती को एक बात समझ में आई, वे जानती थीं कि हर एक दैवीय शक्ति के दो तत्व होते हैं. पहला पुरुष तत्व जो उसे मानसिक रूप से सक्षम बनाता है और दूसरा स्त्री तत्व, जो उसे शक्ति प्रदान करता है. इसलिए पार्वती जी ने उन सभी देवियों को आमंत्रित किया जो शक्ति का ही रूप हैं.
ऐसा करते हुए वहां हर दैवीय ताकत के स्त्री रूप आ गए, जिन्होंने राक्षस के खून को गिरने से पहले ही अपने भीतर समा लिया. फलस्वरूप अंधका का उत्पन्न होना कम हो गया. लेकिन इस सबसे भी अंधक के रक्त को खत्म करना संभव नहीं हो रहा था. आखिर में गणेश जी अपने स्त्री रूप ‘विनायकी’ में प्रकट हुए और उन्होंने अंधक का सारा रक्त पी लिया. इस प्रकार से देवताओं के लिए अंधका का सर्वनाश करना संभव हो सका. गणेश जी के विनायकी रूप को सबसे पहले 16वीं सदी में पहचाना गया. उनका यह स्वरूप हूबहू माता पार्वती जैसा प्रतीत होता है, अंतर केवल सिर का है जो गणेश जी की तरह ही ‘गज के सिर’ से बना है.