कार्तिक माह की देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह के रूप में मनाने की प्रथा है। इस बार तुलसी जी का विवाह 31 अक्टूबर को है। मान्यता के अनुसार इस तिथि पर भगवान विष्णु जी के साथ तुलसी जी का विवाह होता है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने तक सोने के बाद जागते हैं। भगवान विष्णु को तुलसी बेहद प्रिय होती हैं। तुलसी का एक नाम वृंदा भी है। आइए जानते हैं वृंदा के तुलसी बनने की पूरी कहानी।राशिफल: 29 अक्टूबर 2017 रविवार, जानिए कैसे रहेगा आज आपका दिन…
पौराणिक मान्यता के अनुसार, राक्षस कुल में एक कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम वृंदा रखा गया। वह बचपन से भगवान विष्णु की परम भक्त थी और हमेशा उनकी भक्ति में लीन रहती थी। जब वृंदा विवाह योग्य हुई तो उसके माता-पिता ने उसका विवाह समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए जलंधर नाम के राक्षस से कर दिया। वृंदा भगवान विष्णु की भक्त के साथ एक पतिव्रता स्त्री थी जिसके कारण उसका पति जलंधर और भी शक्तिशाली हो गया।
जलंधर जब भी युद्ध पर जाता वृंदा पूजा अनुष्ठान करती, वृंदा की भक्ति के कारण जलंधर को कोई भी नहीं मार पा रहा था। जलंधर ने देवताओं पर चढ़ाई कर दी, सारे देवता जलंधर को मारने में असमर्थ हो रहे थे, जलंधर उन्हें बूरी तरह से हरा रहा था। दुःखी होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गये और जलंधर के आतंक को समाप्त करने की प्रार्थना करने लगे।
तब भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलांधर का रूप धारण कर लिया और छल से वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। इससे जलंधर की शक्ति क्षीण हो गयी और वह युद्ध में मारा गया। जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का शाप दे दिया।
भगवान को पत्थर का होते देख सभी देवी-देवता में हाकाकार मच गया, फिर माता लक्ष्मी ने वृंदा से प्रार्थना की तब वृंदा ने जगत कल्याण के लिये अपना शाप वापस ले लिया और खुद जलंधर के साथ सती हो गई फिर उनकी राख से एक पौधा निकला जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया और खुद के एक रुप को पत्थर में समाहित करते हुए कहा कि आज से तुलसी के बिना मैं प्रसाद स्वीकार नहीं करुंगा। इस पत्थर को शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा। कार्तिक महीने में तो तुलसी जी का शालिग्राम के साथ विवाह भी किया जाता है।