सोशल मीडिया एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा आम जनता अपनी बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा सकती है। लेकिन आज के दौर में इस माध्यम का इस्तेमाल गलत तरीके से किया जा रहा है। वॉट्सएप, फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से इतिहास के पन्नों को गलत तरीके से इस्तेमाल में लाया जा रहा है।
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इतिहास के बारे में ज्यादा न जानने के कारण जनता इन बातों और अफवाहों पर यकीन कर इनको सच मान लेती है। पिछले हफ्ते टीपू सुल्तान जयंती के अवसर पर कर्नाटक में फेसबुक और ट्विटर पर एक तस्वीर वायरल हुई जिसके टैग में लिखा था ‘द रियल टीपू सुल्तान’ इसपर व्यंग्यपुर्ण टिप्पणियां लिखी गई।
असल में वह फोटो 19वीं और 20वीं सदी के जांजीबारी स्लेव ट्रेडर जिनका नाम था टिप्पू टिप उनकी थी। किसी ने भी यह सोचने और जानने की कोशिश नहीं की कि क्या यह तस्वीर 18वीं सदी में भी थी या नहीं।
यह काम कई अज्ञात ट्विटर हैंडल से होता है। वो लोग यह झूठी बातें कई फोटो एडिटिंग टूल का इस्तेमाल कर फैलाते हैं। जो बाद में इतनी वायरल हो जाती है कि मशहूर हस्तियां भी इनको सच मान कर इन पर रीट्वीट कर देती है।
एक ऐसा ही ट्विटर हैंडल है ट्रूइंडोलोजी जिसको अगर ‘सीरियल धोकेबाज’ कहें तो गलत नहीं होगा। ट्रूइंडोलोजी के 58,000 फॉलोअर्स हैं। एक बार इस हैंडल से एक फोटो ट्वीच की गई थी। वो 1984 में चांदनी चौक में हुए सिख विरोधी दंगों की थी जिसको इस ट्विटर हैंडल ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं की फोटो बता दी।
फेसबुक पर एक ‘इंडियन हिस्ट्री : रियल ट्रूथ’ नाम का एक समुदाय है जिसके 66,000 सदस्य हैं। हालही में उसमें किसी ने मौलाना आजाद पर एक अत्यधिक आपत्तिजनक पोस्ट शेयर किया। उन लोगों ने उनकी मातृत्व पर सवाल खड़े कर दिए थे यह भी कहा कि मुसलमानों के आने के बाद भारतीय महिलाएं प्रतिष्ठाहीन हो गईं है। जबकि इस बात की कोई पुष्ठी नहीं की गई है।
एक अन्य फेसबुक पेज जिसका नाम है ‘इंडियन हिस्ट्री : रियल ट्रूथ’ उसको 26,000 लोग फॉलो करते हैं। यह पेज भी यही काम करता है। यह सब पढ़ने के बाद पाठक कभी तथ्यों को क्रॉसचेक नहीं करता है बल्कि वो सच जानने के लिए गूगल का सहारा लेता है। गूगल पर भी सर्च करने पर पहले पेज पर ही यही झूठी कहानियां दिखने लगती हैं।
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