मकर संक्रांति में सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायण में आने का स्वागत किया जाता है। शिशिर ऋतु की विदाई और बसंत का अभिवादन तथा अगहनी फसल के कट कर घर में आने का उत्सव भी मनाया जाता है। उत्सव का आयोजन होने पर सबसे पहले खान-पान की चर्चा होती है। दरअसल मकर संक्रांति पर्व जिस प्रकार देश भर में अलग-अलग तरीके और नाम से मनाया जाता है, उसी प्रकार खान-पान में भी विविधता रहती है। मगर इस दिन तिल का हर कहीं अवश्य विविध रूप में इस्तेमाल होता है।
03 जनवरी, बुधवार का राशिफल: आज ये राशि वाले जल्दबाजी में कोई निर्णय लेने से बचें….
हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार, तिल दान से शनि के कुप्रभाव कम होते हैं। तिल के सेवन से, तिल मिश्रित जल से स्नान करने से, पापों से मुक्ति मिलती है, निराशा समाप्त होती है। श्राद्ध व तर्पण में तिल का प्रयोग दुष्टात्माओं, दैत्यों, असुरों से बाधा होने का डर समाप्त हो जाता है। इसके साथ ही ऐसी मान्यता है कि इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत होती है, तो कड़वी बातों को भुलाकर नई शुरुआत की जाती है। इसलिए तिल से बने चिक्की, लड्डू और बर्फी खाई जाती है।
इसके साथ ही तिल में कॉपर, मैग्नीशियम, ट्राइयोफान, आयरन,मैग्नीज, कैल्शियम, फास्फोरस, जिंक, विटामिन बी 1 और रेशे प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। एक चौथाई कप या 36 ग्राम तिल के बीज से 206 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। वहीं तिल में एंटीऑक्सीडेंट गुण भी पाए जाते हैं। यह रक्त के ‘लिपिड प्रोफाइल’ को भी बढ़ाता है। इसके साथ ही जिनकी गठिया की शिकायत बढ़ जाती है, उन्हें इसके सेवन से लाभ होता है। वहीं तिल बैक्टीरिया तथा इनसेक्टिसाइड का भी शमन करता है।
दरअसल ऐसी मान्यताएं हैं कि मकर के स्वामी शनि और सूर्य के विरोधी राहू होने से दोनों के विपरीत फल के निवारण के लिए तिल का खास प्रयोग किया जाता है। इसके साथ ही उत्तरायण में सूर्य की रोशनी में प्रखरता आ जाती है। हालांकि तिल से शारीरिक, मानसिक और धार्मिक उपलब्धियां भी मिलती हैं। वहीं तिल विष्णु को प्रिय है। ऐसी मान्यता है कि तिल के दान करने से और खिचड़ी खाने से विष्णु की प्राप्ति होती है। साथ ही इससे राहू और शनि के दोष का भी नाश होता है।
आयुर्वेद के अनुसार, तिल शरद ऋतु के अनुकूल होता है। मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से तिल का विशेष महत्व है, इसीलिए हमारे तमाम धार्मिक तथा मांगलिक कार्यों में, पूजा अर्चना या हवन, यहां तक कि विवाहोत्सव आदि में भी तिल की उपस्थिति अनिवार्य रखी गई है। दरअसल तिल वर्षा ऋतु की खरीफ की फसल है। बुआई के बाद लगभग दो महीनों में इसके पौधे में फूल आने लगते हैं और तीन महीनों में इसकी फसल तैयार हो जाती है। इसकी तीन किस्में काला, सफेद और लाल विशेष प्रचलित हैं। इनमें काला तिल पौष्टिक व सर्वोत्तम है। आयुर्वेद के छह रसों में से चार रस तिल में होते हैं, तिल में एक साथ कड़वा, मधुर एवं कसैला रस पाया जाता है।
शास्त्रानुसार, मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं और मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं, जो सूर्य देव के पुत्र होते हुए भी सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं। अतः शनिदेव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें, इसलिए तिल का दान और सेवन मकर संक्रांति में किया जाता है। इसके साथ ही मान्यता यह भी है कि माघ मास में जो व्यक्ति रोजाना भगवान विष्णु की पूजा तिल से करता है, उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। इसीलिए इस दिन कुछ अन्य चीज भले ही न खाई जाएं, किन्तु किसी न किसी रूप में तिल अवश्य खाना चाहिए। वहीं इस दिन तिल के महत्व के कारण मकर संक्रांति पर्व को ‘तिल संक्रांति’ के नाम से भी पुकारा जाता है।