सोना (Gold) खरीदने हमेशा से भारतीयों की पसंद रहा है. फिर चाहे शादी-ब्याह का मौका हो या फिर किसी को गिफ्ट देना हो, त्योहार पर खरीदारी करनी हो या फिर निवेश करना हो. भारतीयों को सोने में बेहतर विकल्प नजर आता है, लेकिन जाने-अनजाने में टैक्स से जुड़े नियमों को नजअंदाज कर दिया जाता है. बहुत से लोगों को यह नहीं पता है कि सोना (Gold) खरीदने के बाद उसको बेचने पर टैक्स भी लगता है. आयकर विभाग ने इस संबंध में कई सारे नियम बनाए हैं. ऐसे में सोना बेचने पर भी टैक्स देना होता है.
भारत में सोना खरीदने के चार तरीके हैं. पहला- फिजिकल गोल्ड यानी सोने के गहने या सोने के सिक्के के रूप में. दूसरा- गोल्ड म्यूचुअल फंड या गोल्ड ETFs (Gold mutual funds or ETFs). तीसरा- डिजिटल गोल्ड (Digital gold). चौथा- सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड्स (Sovereign Gold Bonds- SGB). जब आप सोना बेचते हैं तो आप पर टैक्स लगाया जाता है और टैक्स की दर उसके खरीदे गए तरीके पर निर्भर करती है. आइए जानते हैं सोना बेचते समय आपको कितना इनकम टैक्स देना होगा.
1. जूलरी और सिक्कों बेचने पर लाभ पर टैक्स– सोना खरीदने का सबसे आम तरीका गहने और सिक्कों के रूप में है. सोने के इस रूप के लिए टैक्सेशन इस बात पर निर्भर करता है कि आपने कितने समय तक सोने के गहने या सिक्के रखे हैं. अगर आपने सोना 36 महीने के अंदर बेचा है तो इसे शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन माना जाता है. इस बिक्री से होने वाले फायदे पर आपके इनकम टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स लगता है. वहीं अगर गोल्ड को 36 महीने के बाद बेचा है तो इसे लॉग टर्म कैपिटल गेन माना जाता है. इस पर इन्डेक्सेशन का फायदा मिलता है और 20 प्रतिशत टैक्स देना होता है.
2. गोल्ड म्यूचुअल फंड, गोल्ड ईटीएफ से लाभ पर टैक्स- गोल्ड ईटीएफ (Gold ETF) सोने की कीमत को ट्रैक करने के उद्देश्य से अपना पैसा फिजिकल गोल्ड में निवेश करता है. गोल्ड म्यूचुअल फंड (Gold mutual funds) बदले में गोल्ड ईटीएफ में निवेश करते हैं. गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड म्यूचुअल फंड्स से मिलने वाले लाभ पर फिजिकल गोल्ड की तरह ही टैक्स लगते हैं.
3. डिजिटल गोल्ड पर टैक्स- डिजिटल गोल्ड (Digital Gold), सोना खरीदने और संचय करने का एक नया तरीका है. कई बैंकों, मोबाइल वॉलेट्स और ब्रोकरेज कंपनियों ने अपने ऐप के जरिए सोना बेचने के लिए MMTC-PAMP या SafeGold के साथ करार किया है. डिजिटल गोल्ड से लाभ पर फिजिकल गोल्ड या गोल्ड म्यूचुअल फंड्स या गोल्ड ईटीएफ की तरह ही टैक्स लगाया जाता है.
4. सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड पर टैक्स- यह एक सरकारी बॉन्ड है जिसे ग्राम में खरीदा जा सकता है. ये फिजिकल गोल्ड रखने के विकल्प हैं. ये बॉन्ड भारत सरकार की ओर से आरबीआई (RBI) द्वारा जारी किए जाते हैं और 5वें वर्ष से बाहर निकलने के विकल्प के साथ 8साल की परिपक्वता अवधि के साथ आते हैं. 8 साल के अंत में भुनाए जाने पर सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड, रिडेम्पशन के समय उत्पन्न होने वाला कोई भी पूंजीगत लाभ पूरी तरह से टैक्स-फ्री होगा. हालांकि अगर आप रिडेम्पशन विंडो (खुलने के 5 साल बाद) के पहले या सेकेंड्री मार्केट के जरिए बाहर निकलते हैं तो फिजिकल गोल्ड या गोल्ड म्यूचुअल फंड या गोल्ड ईटीएफ पर लगने वाले कैपिटल गेन टैक्स लगेगा. गोल्ड बॉन्ड प्रति वर्ष 2.50% की दर से ब्याज का भुगतान करते हैं और यह ब्याज आपके टैक्स स्लैब के अनुसार पूरी तरह से टैक्सेबल है.