मल्टीमीडिया डेस्क। आकाश मंडल में कोई भी ग्रह जब सूर्य से एक निश्चित दूरी के अंदर आ जाता है, तो सूर्य के तेज से वह ग्रह अपनी शक्ति खोने लगता है। इसे ही ग्रह का अस्त होना माना जाता है। जब कोई ग्रह अस्त हो जाता है, तो उसके फल देने की स्थिति में कमी आ जाती है। यानी यदि वह शुभ फल देने वाला है, तो पूर्ण शुभ फल नहीं दे पाता है। यदि अशुभ फल देने वाला है, तो उसके अशुभ फल देने में कमी आ जाती है। सूर्य के समीप आने पर छहों ग्रह अस्त हो जाते हैं, लेकिन राहु और केतु कभी अस्त नहीं होते हैं। जानें कैसे फल देते हैं अस्त ग्रह...
जानें कौन सा ग्रह देता है कैसे फल
चन्द्र ग्रह- जब चंद्रमा अस्त होता है, तो तो व्यक्ति के जीवन में अशांति बनी रहती है। मां से संबंध खराब हो जाते हैं, मां का स्वास्थ ठीक नहीं रहता। यहि अस्त चन्द्रा अष्टम भाव या अष्टमेश के साथ हो, तो व्यक्ति को काफी मानसिक त्रास होता है। एनीमिया, फेफड़ों के रोग, मानसिक तनाव, डिप्रेशन और अस्थमा जैसे रोग हो सकते हैं।
मंगल ग्रह- मंगल साहस और पराक्रम का कारक है। इसके अस्त होने पर साहस में कमी, क्रोध में वृद्धि, छोटे भाईयों से तनाव, भूमि विवाद, नसों में दर्द, दुर्घटना, कोर्ट कचेहरी के चक्कर, पत्नी को शारीरिक कष्ट जैसी परेशानियां होती हैं। यदि मंगल छठवें भाव में पापी ग्रहों से साथ हो या दृष्टि संबंध बना रहा हो तो दुर्घटना और बीमारियों की आशंका होती है। छठे भाव से मंगल का संबंध व्यक्ति को कर्ज में डाल देता है। 12वें भाव में अस्त मंगल व्यक्ति को नशे का लती बना देता है।
बुध ग्रह- व्यापार और वाणी का कारक बुध यदि अस्त हो, तो बुद्धि सही से काम नहीं करती। वाणी खराब हो जाती है। जातक में विश्वास की कमी, शरीर में ऐंठन, श्वास, चर्म रोग और गले आदि के रोग हो जाते है। 12वें भाव के स्वामी के साथ अस्त बुध संबंध बनाने पर नशे का लती बना देता है।
गुरु ग्रह- देवगुरु बृहस्पति वैसे तो शुभ ग्रह हैं। मगर, इनके अस्त हो जाने पर गुरु से मिलने वाले शुभ प्रभाव कम हो जाते हैं। गुरू के अस्त होने से सन्तान उत्पन्न में बाधा आती है, बुर्जुगों को कष्ट होगा, शिक्षा में रुकावटें आती हैं और व्यक्ति नास्तिक हो जाता है। बृहस्पति की अन्तर्दशा में अस्त गुरु लीवर का रोग, टाइफाइड ज्वर, मधुमेह, साइनस की समस्या, कोर्ट कचेहरी, शिक्षकों से मतभेद, पढ़ाई में अरुचि जैसी समस्या देता है।
शुक्र ग्रह- भोग-विलास और ऐश्वर्य का कारक शुक्र अस्त होने पर विवाह में समस्या, महिलाओं को गर्भाशय के रोग, नेत्र रोग, किडनी रोग, गुप्त रोग देता है। यह चरित्र को बुरी तरह प्रभावित करता है। राहु-केतु से संबंध होने पर मान-सम्मान कम कर देता है। अस्त शुक्र छठवें भाव के स्वामी के साथ संबंध बनाए, तो किडनी, मू़त्राशय व यौन अंगों के विकार देता है।
शनि ग्रह- न्याय के देवता माने जाने वाले शनि कर्म प्रधान ग्रह हैं। इनके अस्त होने पर नौकरी या व्यापार में परेशानी, वरिष्ठ अधिकारियों से अनबन, सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी, नशीले पदार्थों की लत लग जाती है। कमर दर्द, पैरों में दर्द, स्नायु तंत्र के रोग हो जाते हैं। अस्त शनि अगर का छठवें भाव के स्वामी के साथ संबंध रीढ़ की हड्डी में दर्द देता है।