Bumla: Indian and Chinese soldiers jointly celebrate the New Year 2019 at Bumla along the Indo-China border, Arunachal Pradesh, Tuesday, Jan 1, 2019. (PTI Photo) (PTI1_1_2019_000150B)

जानें कौन-सी है वो रणनीति, क्यों पीछे हटी चीनी सेना, पढ़े पूरी खबर

पूर्वी लद्दाख में नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गलवन घाटी में चीनी सेना दो किलोमीटर पीछे हट गई है। पैट्रोलिंग प्वाइंट 14 से चीनी सैनिकों के पीछे हटने से साफ है कि चीन पर दबाव बनाने की भारत की चौतरफा रणनीति कारगर होती दिख रही है। सामरिक, कूटनीतिक ही नहीं, आर्थिक घेरेबंदी के भारत के सधे कदमों ने ड्रैगन को तनाव घटाने के लिए सम्मानजनक और लचीले रास्ते पर आने को विवश कर दिया है।

सीधे सैन्य संघर्ष का जोखिम उठाना चीन के लिए आसान नहीं

गलवन घाटी से चीनी सैनिकों के पीछे हटने में सबसे बड़ा योगदान चीन को आमने-सामने के सैन्य संघर्ष के लिए तैयार होने का भारत का दो टूक संदेश माना जा रहा है। एलएसी पर चीन ने जिस तरह कई जगहों पर भारी संख्या में अपने सैनिकों और हथियारों को तैनात किया। उसके बाद भारत ने भी इसी अनुपात में अपने सैनिकों को अग्रिम मोर्चों पर तमाम-अस्त्र शस्त्रों के साथ उतार दिया। इसमें टैंकों, मिसाइलों से लेकर हाई स्पीड बोट भी शामिल हैं। सेना के साथ वायुसेना को भी हाई अलर्ट मोड में कर दिया गया और शनिवार को तो भारतीय वायुसेना के सुखोई, मिग, मिराज, जगुआर लड़ाकू जेट विमानों ने तो एलएसी पर अपने इलाके में उड़ान भर चीन को साफ संदेश दे दिया कि सैन्य ताकत के सहारे एलएसी को नये सिरे से परिभाषित करने की चीनी कोशिश का सैन्य तरीके से ही जवाब देने से भारत नहीं हिचकेगा। भारतीय नौसेना भी हिन्द महासागर में चीनी नौसेना को थामने के लिए पूरी तरह सतर्क है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बीते शुक्रवार अचानक लेह का दौरा कर न केवल हालात का सीधे जायजा लिया, बल्कि चीन को सख्त संदेश देते हुए चौंकाया भी। इसमें कोई दो राय नहीं कि चीन बड़ी सैन्य ताकत है मगर सीधे सैन्य संघर्ष का जोखिम उठाना उसके लिए भी आसान नहीं है।

गलवन घाटी की अहमियत

गलवन घाटी के अतिक्रमण स्थल से चीनी सैनिकों के पीछे हटने भर से ही एलएसी पर तनाव का दौर खत्म नहीं होगा, क्योंकि अभी कई और जगहों से चीनी सैनिकों को पीछे हटना है। लेकिन पैट्रोलिंग प्वाइंट 14 से हटने की शुरूआत करना इस लिए अहम है, क्योंकि इसी जगह 15-16 जून की रात दोनों देशों के सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष हुआ था। इसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे। इस संघर्ष में कई चीनी सैनिक भी मारे गए, मगर चीन ने अभी तक इसका खुलासा नहीं किया है।

 

पाकिस्तान के अलावा चीन के साथ नहीं खड़ा है कोई देश

एलएसी पर चीनी अतिक्रमण के खिलाफ भारत की कूटनीतिक मोर्चे पर सक्रियता से भी चीन पर दबाव बढ़ा है। अमेरिका सीधे तौर पर लगातार चीन को घेर ही नहीं रहा बल्कि उसका साफ कहना है कि चीन अपने पड़ोसियों को परेशान कर रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से लेकर विदेश मंत्री माइक पोंपियो चीन के मसले पर खुलकर भारत का समर्थन कर रहे हैं। अमेरिका ने यूरोप से अपनी सेनाओं को काफी संख्या में हटाकर चीन की चुनौती के लिए तैयार रखने की बात कह साफ कर दिया कि भारत के साथ सैन्य संघर्ष यदि हुआ तो इसका आकार बढ़ भी सकता है। चीन के खिलाफ भारत के आर्थिक प्रतिबंध के फैसलों का भी अमेरिका समेत कई देशों ने समर्थन किया। विश्व बिरादरी के अहम देश फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने भी खुलकर भारत के रुख को सही ठहराया है। यहां तक की चीन के करीब पड़ोसियों वियतनाम, इंडोनेशिया, फिलीपींस जैसे देश भी चीनी रवैये से परेशान हैं। रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ भी पीएम मोदी की पिछले हफ्ते बातचीत हुई और भारत ने तो रूस से 21 मिग-29 विमान खरीदने का एलान भी किया है। कूटनीतिक मोर्चे पर भारत की बढ़त इसी से जाहिर होती है कि पाकिस्तान के अलावा चीन के साथ कोई देश खड़ा नहीं दिख रहा है।

आर्थिक नुकसान पहुंचा भारत ने दबाई ड्रैगन की पूंछ

चीन की घेरेबंदी के लिए भारत ने उसकी आर्थिक मोर्चे पर नकेल कसने शुरू की है तो बीजिंग की बेचैनी बढ़ गई है। हाईवे प्रोजेक्ट से लेकर एमएसएमई सेक्टर में चीनी कंपनियों के रास्ते बंद करने की घोषणा की गई है। इस दिशा में सबसे अहम फैसला चीन के 59 ऐप पर पाबंदी लगाने का जिसमें दुनिया में बेहद लोकप्रिय कई ऐप भी हैं। कोविड महामारी से बढ़ी आर्थिक चुनौती में कमजोर पडऩे वाली भारतीय कंपनियों में चीनी हिस्सेदारी रोकने की दिशा में पहले ही कदम उठाया जा चुका था।

प्राकृतिक चुनौती

गलवन घाटी में चीनी सैनिकों के पीछे हटने की एक वजह यहां की प्राकृतिक स्थिति और आने वाले दिनों में मौसम के बेहद कठिन होने को भी माना जा रहा। इस दुर्गम इलाके में बरसात के मौसम में दोनों देशों के सैनिकों के लिए डटे रहना आसान नहीं है। नवंबर में जब बर्फ ज्यादा गिरेगी और तापमान माइनस 10 डिग्री तक जाएगा तो हालात कहीं ज्यादा कठिन होंगे। ऐसे में बातचीत के सहारे गतिरोध दूर करना चीन के लिए भी सम्मानजनक रास्ता है।

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