जाने किन 5 वजहों से किया जाता था रावण का सम्मान

रावण को बुराई का प्रतीक मानकर हर साल दशहरा पर रावण के पुतले को जलाया जाता है। लेकिन लंकापति रावण में कुछ ऐसे गुण भी थे जिनके बारे में जानकर आपके मन में उनके लिए सम्मान की भावना जाग सकती है। जानें ऐसे कौन-कौन से गुण थे जिनके कारण राक्षस होने के बावजूद रावण को महान ब्राह्मण माना जाता है।

 

दशहरा पर रावण के पुतले को जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत की खुशी मनाई जाती है। रावण को हम बुराई का प्रतीक मानते हैं, लेकिन कई जगहों पर रावण को पूजा जाता है और उनकी मृत्यु का शोक मनाया जाता है। सभी में भी अच्छाई और बुराई दोनों ही मौजूद होते हैं।रावण में भी सिर्फ बुराइयां ही नहीं थी, उनमें कई ऐसे गुण भी थे, जो उन्हें सम्मान के योग्य बनाते हैं। आइए इस दशहरा  पर जानते हैं लंकापति रावण के कुछ ऐसे गुणों के बारे में, जो उन्हें सम्माननीय बनाते हैं।

शिव भक्त

रावण भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। ऐसा माना जाता है कि रावण ने भगवान शिव के निवास स्थान कैलाश पर्वत को अपने साथ लंका ले जाने के लिए उठा लिया था, लेकिन भगवान शिव ने अपनी पैर की छोटी उंगली से दबा कर पर्वत नीचे कर दिया था। इस वजह से रावण की उंगलियां दब गई और वे दर्द के कारण चिल्ला पडे़। लेकिन वे भगवान शिव की शक्ति से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने शिव तांडव स्त्रोत का निर्माण किया। जिससे महादेव ने प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया था।

ब्रह्मदेव के वंशज

रावण के पिता ऋषि विश्रव ब्रह्मदेव के पुत्र प्रजापति पुल्सत्य के पुत्र माने जाते हैं। इस नाते रावण ब्रह्मदेव के परपोते हुए।

वेदों के ज्ञाता

रावण के पिता एक ऋषि थे और माता एक राक्षसी। ऐसा कहा जाता है कि रावण दुनिया के सबसे ज्ञानी पुरुषों में से एक थे। वे सभी वेदों के साथ-साथ विज्ञान, गणित, राजनीति

जैसे अन्य कई शास्त्रों का ज्ञाता थे।इस कारण वे राक्षस कुल के होने के बाद भी उन्हें विद्वान माना जाता है।

कुशल राजा और राजनीतिज्ञ

कई रामायणों में ऐसा माना जाता है कि जब रावण मृत्यु के समीप थे, तब भगवान राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण से कहा था कि जाओ रावण को प्रणाम कर उनसे राजनीति का ज्ञान प्राप्त करके आओ। ऐसा कहा जाता है कि रावण राजनीति के बहुत बड़े ज्ञाता थे और एक कुशल राजा थे। उनकी प्रजा को किसी चीज की कमी नहीं थी और उनका राज्य इतना समृद्ध था कि लंका के सबसे गरीब व्यक्ति के पास भी सोने के बरतन हुआ करते थे।

महान संगीतकार

ऐसा माना जाता है कि लंकापति को संगीत का बहुत शौक था और वे स्वयं भी बहुत कुशल संगीतकार थे। उन्हें बहुत अच्छा वीणा बजाना आता था। साथ ही यह भी माना जाता है कि उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्त्रोत का भी निर्माण किया था।

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