नई दिल्ली। देश में चुनाव के चलते राजनीति और बयानबाजी हावी है। विकास का दम भरने वाली पार्टियां भी अहम मुद्दों से हटकर एक दूसरे पर सिर्फ निशाना साध कर चुनाव जीतने की ख्वाब संजोए बैठी हैं।

इन सबके बीच गाय से शुरू हुई चर्चा अब गधे पर आ रुकी है। अगर गाय या अन्य दुधारू पशुओं पर ही ध्यान रखा जाता तो देश में कुछ सालों बाद आने वाले दूध के संकट से निपटने की नौबत अभी से न आती। फिलहाल भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है।
सबसे बड़ा दूध उत्पादक होने के बावजूद बने ये हालात
विश्व के कुल दूध उत्पादन में भारत का हिस्सा 17 प्रतिशत है। लेकिन अगर अगर हालात नहीं बदले तो भारत को बहुत जल्द दूध के लिए दूससे देशों निर्भर होना पड़ सकता है। देश के 29.90 करोड़ दुधारू पशुओं के लिए चारे की कमी इसका सबसे अहम कारण है।
इंडियास्पेंड का आंकड़ों के मुताबिक भारत में दूध और उससे बने उत्पाद की मांग बढ़ती जा रही है। सरकारी अनुमान के मुताबिक देश को 21 करोड़ टन दूध की जरूरत साल 2021-22 तक इस मांग को पूरा करने के लिए होगी। यानी आने वाले पांच सालों में भारत में दूध की मांग में 36 प्रतिशत बढो़तरी हो जाएगी।
स्टेट ऑफ इंडिया लाइवलिहुड (एसओआईएल) की रिपोर्ट के अनुसार इस मांग को पूरा करने के लिए दूध उत्पादन में हर साल 5.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी चाहिए होगी। साल 2014-15 और साल 2015-16 में दूध के उत्पादन में क्रमशः 6.2 प्रतिशत और 6.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
भारतीय प्रबंधन संस्थान, बैंगलोर के अनुसार 1998 से 2005 के बीच भारत में दूध की सालाना निजी खपत में 5 प्रतिशत से बढ़कर साल 2005 से 2012 के बीच 8.5 प्रतिशत हो गई थी। एसओआईएल के अनुसार मांग और आपूर्ति के बीच के इस अंतर के कारण दूध की कीमतें 16 प्रतिशत बढ़ गईं।
सरकारी आंकड़े के इंडियास्पेंड के विश्लेषण के अनुसार दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश भारत को उत्पादन बढ़ाने के लिए साल 2020 तक 1764 टन अतिरिक्त पशु चारे की जरूरत होगी लेकिन मौजूदा संसाधनों के आधार पर केवल 900 टन पशु चारा ही उपलब्ध हो सकेगा। यानी जरूरत का केवल 49 प्रतिशत पशु चारा ही भारत के पास उपलब्ध होगा।
साल 2004-05 में भारत का कुल दूध उत्पादन 9.2 करोड़ टन से बढ़कर 2014-15 में 14.6 करोड़ टन हो गया। इस तरह एख दशक में भारत के दूध उत्पादन में करीब 59 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
इन सबके बीच चिंताजनक बात ये है कि दूध देने वाले पशुओं के दूध देने की दर भारत में दुनिया की औसत दर से करीब आधा कम है। इसकी बड़ी वजह पर्याप्त पशु चारे की कमी को माना जाता है।
पशुओं के हरा, सूखा और सानी तीनों तरह के चारे का अभाव है। जितनी जरूरत है उससे हरा चारा 63 प्रतिशत, सूखा चारा 24 प्रतिशत और सानी चारा 76 प्रतिशत कम है। सबसे बड़ा दूध उत्पादक भारत केवल चार प्रतिशत कृषि योग्य भूमि का इस्तेमाल पशु चारे के लिए करता है। पिछले चार दशकों में चारा उत्पादन में जरूरी बढ़ोतरी नहीं हुई है।
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