केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली की ओर से दाखिल केजरीवाल के खिलाफ मानहानि के मामले में 1999 से 2014 के डीडीसीए के मिनट्स ऑफ मीटिंग को कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश किया जाए या नहीं, दिल्ली हाई कोर्ट ने इस पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. कोर्ट 31 अक्टूबर को अपना फैसला देगा. कोर्ट तय करेगा कि क्या डीडीसीए के अध्यक्ष के तौर पर अरुण जेटली के 15 साल के कार्यकाल की तमाम बैठकों से जुडें फैसलों को कोर्ट में सबूत के तौर पर शामिल किया जा सकता है या नहीं.रोड शो के दौरान राहुल ने मोदी पर साधा निशाना, कहा- इनके दिल में गरीबों की जगह नहीं, अमीरों के लिए द्वार खुले
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के वकीलों ने सोमवार को कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि डीडीसीए में जो अनियमितताएं अरुण जेटली के रहते हुए हुई उसको सामने लाने के लिए डीडीसीए की बैठकों का ब्यौरा सबूत के तौर पर पेश होना बेहद जरूरी है और उसे समन कर कोर्ट के सामने लाया जाए. जबकि अरुण जेटली के वकीलों का तर्क था कि गवाह के तौर पर जो भी चीजें समन करनी होती हैं, वह केस दायर होने के 15 दिन के भीतर करनी होती हैं. यह बेवजह केस को लंबा करने के लिए किया जा रहा है.
यह मामला अरविंद केजरीवाल के लगाये उस आरोप से शुरू हुआ था जिसमें केजरीवाल ने कहा कि जेटली ने दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) का अध्यक्ष रहते हुए अपने पद का दुरुपयोग किया और फिरोजशाह कोटला मैदान को बनाने में बड़े पैमाने पर धांधली की गई. इसके बाद जेटली ने मुख्यमंत्री और 5 अन्य लोगों के खिलाफ पटियाला हाउस कोर्ट में आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज कराया था. पटियाला हाउस कोर्ट ने इस मामले में मुख्यमंत्री के अलावा कुमार विश्वास, आशुतोष, संजय सिंह, राघव चड्ढा को बतौर आरोपी पेश होने का समन जारी किया था.
अपनी याचिका में जेटली का कहना था कि मुख्यमंत्री द्वारा जिस ’21 सेंचुरी मीडिया प्रा.लि. नामक कंपनी के साथ सांठगाठ के आरोप लगाए जा रहे हैं उससे उनका और उनके परिवार का कोई लेना देना नहीं है. जेटली की ओर से कहा गया कि उन्हें बदनाम करन, राजनीतिक फायदे के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी से जुड़े बड़े नेता उन्हें निशाना बना रहे हैं.