स्तन कैंसर महिलाओं की मृत्यु का बड़ा कारण रहा है। इसके मरीज लगातार बढ़ रहे हैं। इनमें भी खास तौर से ट्रिपल निगेटिव स्तन कैंसर (टीएनबीसी) के मरीज। 50 वर्ष की कम उम्र की महिलाओं में टीएनबीसी बढ़ा है। स्तन कैंसर के 20-25 फीसदी मरीजों में टीएनबीसी की पुष्टि होती है। मामलों के साथ मरीजों की उम्र घटी है।
उम्रदराज मरीजों की तुलना में युवतियों में टीएनबीसी ज्यादा घातक और उपचार जटिल हुआ है। उपचार के बावजूद टीएनबीसी के वापस आने का खतरा बना रहता है। खासकर अगले तीन से पांच वर्षों में चिकित्सकों के लिए ऐसे मरीजों को बचा पाना बड़ी चुनौती है। इसलिए अब और भी जरूरी है कि स्तन कैंसर की पहचान समय रहते हो।
आक्रामक कीमोथेरेपी से उपचार
कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. मुरली सुब्रमण्यम बताते हैं कि स्तन कैंसर को बढ़ाने वाले आम तीन रिसेप्टर एस्ट्रोजेन रिसेप्टर, ह्यूमन ऐपिडर्मल ग्रोथ फैक्टर रिसेप्टर-2 और प्रोजेस्टोरेन रिसेप्टर टीएनबीसी में मौजूद नहीं होते हैं।
जबकि आम स्तन कैंसर के उपचार में इन्हीं तीनों रिसेप्टरों को किमोथेरेपी सहित अन्य लक्षित एकीकृत थेरेपी से निशाना बनाया जाता है। लेकिन टीएनबीसी में ये तीनों रिसेप्टर मौजूद नहीं होते। इसलिए इस कैंसर को ट्रिपल निगेटिव स्तन कैंसर कहा जाता है। टीएनबीसी के उपचार में लक्षित एकीकृत थेरेपी काम नहीं आता। आक्रामक किमोथेरेपी से उपचार होता है।
तो कराएं म्यूटेशन जांच
बीआरसीए-1 और बीआरसीए-2 जीन में म्यूटेशन (उत्परिवर्तन) ट्रिपल निगेटिव स्तन कैंसर का एक बड़ा कारण है। सामान्य कोशिकाओं में मौजूद इन जीनों में ट्यूमर को दबाने की क्षमता होती है। लेकिन जीनों में म्यूटेशन होने पर स्तन कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
परिवार में एक से ज्यादा किसी भी कैंसर के मरीज हों तो अन्य सदस्यों कोभी म्यूटेशन जांच करानी चाहिए। समुदाय आधारित कैंसर स्क्रीनिंग योजनाओं के अभाव में समय पर कैंसर मरीजों की पहचान नहीं हो पाती।